मात्र १५ दिन की उम्र, केवल ४७० ग्राम वजन, एक हथेली जितना छोटा बच्चा, हृदय की ऐसी गंभीर बिमारी जिसका अगर तुरंत इलाज न किया जाता तो नवजात मानो कुछ ही समय में दम तोड देता। पर हर विपरीत हालात के चलते उसको जीवन दान मिला। हृदय से निकलने वाली दो मुख्य धमनियों के जुडे होने से दुनिया के मेडिकल इतिहास में पहली बार सबसे छोटे एवं कम वजनी बच्चे की गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर के कार्डियक वेसक्यूलर एवं थोरेसिक सर्जन डॉ संजय गांधी ने हृदय की जटिल बिमारी से निजात दिलाई। यह हार्ट सर्जरी नवजात गहन चिकित्सा ईकाई में हुई। महज ४७० ग्राम वजन के नवजात की यह सफल सर्जरी पूरी दुनिया में चिकित्सा इतिहास का प्रथम मामला है।
क्या था मामला?
उदयपुर निवासी एसपी जैन व उनकी पत्नी ने वर्शों बाद आईवीएफ प्रक्रिया द्वारा संतान प्राप्त की। सात माह में ही प्रसव पीडा षुरु हो गई। समय से पूर्व जन्मे नवजात को पैदा होते ही सांस लेने में तकलीफ और फेफडों का सही से काम न कर पाने के कारण जीवंता हॉस्पिटल के नवजात गहन चिकित्सा ईकाई में नियोनेटोलोजिस्ट डॉ सुनील जांगिड के नेतृत्व में वेंटीलेटर पर भर्ती किया गया। गीतांजली हॉस्पिटल के कार्डियोलोजिस्ट डॉ रमेष पटेल द्वारा की गई एंजियोग्राफी जांच से पता चला कि नवजात के हृदय से निकलने वाली दो मुख्य धमनियां आपस में जुडी हुई है। यह धमनियां जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तब तक जुडी रहती है जिससे बच्चा जीवित रह सके परन्तु जन्म के बाद यह धमनियां प्राकृतिक रुप से बंद हो जाती है। यदि किसी बच्चे की धमनियां प्राकृतिक रुप से बंद नहीं हो पाती है तो उसका उपचार दवाईयों द्वारा भी संभव है परन्तु इस मामले में दवाईयों से भी उपचार नहीं हो पा रहा था।
चिकित्सकों द्वारा षुरुआती इलाज क्या दिया गया?
नवजात के फेफडों एवं हृदय में सूजन आ गई थी और फेफडों में आवष्यकता से अधिक रक्त प्रवाह हो रहा था जिससे वह सांस नहीं ले पा रहा था और उसे वेंटीलेटर द्वारा सांस दी जा रही थी जिस कारण उसे वेंटीलेटर से हटाना संभव नहीं था। धमनियों के जुडे होने से हृदय पर अधिक दबाव पड रहा था जिससे नवजात की कभी भी मृत्यु हो सकती थी। समय से पूर्व जन्मे इस बच्चे के कम षारीरिक विकास के कारण सांस की नली डाली गई और बच्चे को जीवित रखने के लिए ग्लूकोज/पोशण को सेंट्रल लाईन ड्रिप द्वारा दिया गया। नियमित रुप से मस्तिश्क एवं हृदय की सोनोग्राफी भी की गई जिससे आंतरिक रक्तस्त्राव तो नहीं हो रहा है को सुनिष्चित किया जा सके क्योंकि इतने कम वजन के बच्चों में भोजन/डोज की जरा सी भी मात्रा ज्यादा होने से षरीर के किसी भी हिस्से में रक्तस्त्राव होने का खतरा रहता है।
क्यों करनी पडी इस मासूम की हार्ट सर्जरी?
नवजात की धमनियां प्राकृतिक रुप से बंद नहीं हो पाई। और दवाईयों द्वारा उपचार भी संभव नहीं हो सका। इस कारण ऑपरेषन ही एकमात्र विकल्प रह गया था। हृदय के जटिल रोग के कारण नवजात को एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल षिफ्ट करना भी बेहद खतरनाक था। परिजनों को विष्वास में लेकर ऑपरेषन की सहमति लेने के पष्चात् गीतांजली हॉस्पिटल के कार्डियक सर्जन डॉ संजय गांधी जो पहले भी इस तरह की सर्जरी गीतांजली एवं जयपुर के कोकून हॉस्पिटल के नवजात गहन चिकित्सा ईकाई में कर चुके थे को बुलाने का निर्णय लिया गया। नवजात की नाजुक हालत को ध्यान में रखते हुए गीतांजली हॉस्पिटल के कार्यकारी निदेषक अंकित अग्रवाल ने तुरन्त अपनी कार्डियक टीम को जीवंता हॉस्पिटल भेजने का निर्णय ले कर सहयोग प्रदान किया जिसके तहत डॉ संजय गांधी, डॉ रमेष पटेल, डॉ अंकुर गांधी, डॉ कल्पेष मिस्त्री, डॉ मनमोहन जिंदल, डॉ धर्मचंद एवं समस्त ओटी स्टाफ हॉस्पिटल पहुँचे और नवजात गहन चिकित्सा ईकाई में ऑपरेषन किया। आधे घण्टे का समय लगा।
गीतांजली हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने क्या किया?
नवजात की हार्ट सर्जरी के लिए विषेश उपकरणों का इस्तेमाल किया गया जिसमें कोटरी मषीन जिसके द्वारा ऊतकों को खोला गया (विद्युत प्रवाह) ताकि रक्तस्त्राव न हो। इन धमनियों के जुडाव से फेफडों में आवष्यकता से अधिक रक्त प्रवाह हो रहा था जिसको क्लिप व सर्जिकल टांकों (घाव सीने का धागा) से बंद किया गया। इससे रक्त प्रवाह कम एवं सामान्य हो पाया।
इतने छोटे बच्चे में हार्ट सर्जरी क्यों होती है मुष्किल?
डॉ गांधी ने बताया कि ऐसे बहुत कम वजनी बच्चों में ऑपरेषन तकनीकी रुप से बेहद मुष्किल, चुनौतीपूर्ण व जोखिमपूर्ण होते है। इन्हें नवजात गहन चिकित्सा ईकाई से कहीं और ऑपरेषन के लिए षिफ्ट करना संभव नहीं होता। इसके साथ ही ये बच्चे बहुत नाजुक, षरीर के सभी मुख्य एवं अन्य अंग जैसे मस्तिश्क, हृदय, लिवर, किडनी इत्यादि बहुत कमजोर होते है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है जिससे संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा होता है।
दवाओं द्वारा इस जुडाव को खोलने के नुकसान?
यदि इन धमनियों के जुडाव को दवाईयों द्वारा बंद किया जाता है तो ऐसे बच्चों की षारीरिक विकास में देरी, फेफडों की बिमारी, मस्तिश्क का पूर्ण विकसित न होना, पेट फूलना, आंतों में छेद जैसी परेषानियों का सामना करना पडता है।
डॉ गांधी ने यह भी कहा कि यह नवजात हार्ट सर्जरी के बाद सामान्य रुप से विकसित होगा। साथ ही ०.३ प्रतिषत (१००० में से किसी ३-४ बच्चों को) बच्चों में ही यह परेषानी होती है।
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