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धूम्रपान करने वालेां में डिप्रेशन का खतरा दुगुना

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08 Apr 17
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धूम्रपान करने वालेां में डिप्रेशन का खतरा दुगुना गुरुग्राम वर्तमान में बदलती जीवनशैली से हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जिस कारण डिप्रेशन सहित कई तरह की बीमारियेां से हम ग्रसित होते जा रहे है। इसकार खुलासा हाल ही में हुए एक सर्वे में सामने आया है। देश के 12 राज्यों में तंबाकू, एल्कोहल इत्यादि के तेजी से बढ़ रहे उपयेाग के कारण हो रहे डिप्रेशन के प्रभाव में 40 पार आयु वर्ग आ रहा है। खासतौर पर महिलाअेंा में यह समस्या अधिक सामने आई है जो कि चिंता का विषय है। इसका खुलासा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान ‘निमहांस’ द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में हुआ है। हरियाण में संबध हैल्थ फाउंडेशन की और से रिकवरी कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। जो कि मानसिक रोगों में प्रभावी साबित हो रहा है।
संबध हैल्थ फाउंडेशन के ट्रस्टी रीता सेठ ने बताया कि यह सर्वेक्षण पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, मणिपुर. और तमिलनाडु में लगभग 39532 परिवारों पर किया गया था। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि प्रत्येक 20 में से एक भारतीय डिप्रेशन का शिकार है। वंही दुनियंाभर में 30 करोड़ से अधिक लोग इसकी चपेट में है, जिनमें 15 करेाड़ भारतीय भी शामिल है। महानगरों में रहने वाली 40-49 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में तो यह समस्या सबसे अधिक पाई गई। डिप्रैशन के मामले में बड़ी आयु के लोग विशेषतौर पर प्रभावित होते हैं।
उन्होने बताया कि इस दौरान शोधकर्त्ताओं ने लोगों को उनकी तम्बाकू, अल्कोहल एवं नशीली दवाइयों पर निर्भरता के संबंध में सवाल किए थे और जो आंकड़े उनके सामने आए वे बहुत भारी चिंता का विषय हैं। जिन 12 राज्यों में सर्वेक्षण किया गया वहां सभी जगह 18 वर्ष से ऊपर के लोगों की कम से कम 22.4 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में अल्कोहल, तम्बाकू, नशीली व अवैध दवाइयों पर निर्भर है।
वे बतातीं है कि ऐसी बीमारियेां के प्रभाव से पूरे परिवार की स्थिति खराब हो जाती है, वंही आर्थिक व सामाजिक स्तर पर भी बड़ा नुकसान सहना पड़ता है। वंही तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पाद केवल डिप्रेशन का ही कारण नही बनते बल्कि अन्य बीमारियों का भी जन्मदाता है। इसीलिए दुनियंाभर में हो रही दस मौतों में एक मौत का कारण तंबाकू ही बनता है।
उन्होने बताया कि वर्तमान में हवा में तंबाकू व धूम्रपान उत्पादेां से घुलने वाला जहर भी हम सभी के लिए चितंा का विषय है। क्यों कि अकेले सिगरेट बट में ही तीन हजार तरह के हानिकारण रसायन पाए जाते है जोकि सीधे कैंसर का कारक है। इसलिए इस पर रोक लगे तो युवा पीढ़ी व आमजनता केा हम स्वस्थ स्वास्थ्य दे पाएंगे। दुनिया में तेजी से फैल रहे कैंसर के लिए तम्बाकू के विभिन्न उत्पादों के साथ ही साथ शराब, सुपारी और हमारा मोटापा भी जिम्मेदार है। हांलाकि तंबाकू और इसके उत्पादों के बारे में यह प्रचलित है कि इनसे कैंसर हेाता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि शराब पीने और सुपारी चबाने से भी कैंसर होता है।
उन्होंने बताया कि भारत में हर वर्ष 10 लाख कैंसर के नए मामले सामने आ रहे है इससे मरने वालों की संख्या छह से सात लाख तक है। अप्रैल 2014 में प्रकाशित एक रिपेार्ट में बताया गया है कि भारत में सभी प्रकार के कैंसरों से मरने वालों में करीब 40 फीसदी मौतें तम्बाकू जनित कैंसर से होता है। इस बीमारी पर केन्द्र और राज्य सरकारों का संयुक्त रूप से पानी,सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता पर होने वाले खर्च से भी अधिक खर्च होता है। (चीन, भारत और रूस, में प्रभावी कैंसर नियंत्रण की चुनौतियां- अप्रैल 2014 -लासेंट ऑन्कोलॉजी)।
वे बतातें है कि शराब के सेवन और इसके कैंसर के साथ संबंध के बारे में उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय कैंसर शोध एजेंसी( आईएआरसी) ने इस बात की पुष्टि की है कि शराब के सेवन से कैंसर होता है। बताया गया है कि शराब के सेवन का मुहं,गला,ग्रसनी, जिगर घेघा और स्तन कैंसर का संबंध है। शराब के सेवन से ग्रसनी कैंसर का 17 गुना और मुंह के कैंसर का खतरा 10 गुना बढ़ जाता है। कैंसर का खतरा तब बहुत बढ़ जाता है जब शराब के साथ तम्बाकू का भी सेवन किया जाए। कैंसर के अलाव शराब के सेवन से कई अन्य तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। दुनिया भर में करीब दो अरब लोग शराब का सेवन करते हैं और 76.3 मीलियन (763 लाख) लोग 60 तरह की बीमारियों और चोटों के शिकार हैं। शराब के कारण 1.8 मीलियन (18 लाख) (3.2 प्रतिशत) लोगों की मृत्यु हो जाती है। अस्सी के दशक में तम्बाकू की तरह ही दशकों से शराब के छल पूर्वक मार्केटिंग के कारण इसे समाज में बड़ी स्वीकार्यता मिली हुई है।
वरिष्ठ चिकित्साधिकारी ब्रहमदीप सिंधू ने बताया कि बर्गर, पिज्जा, चॉकलेट, ठंडा, नुडूल्स आदि के खाने- पीने को समाज में स्वीकार्यता भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। इसके साथ ही हमारी जीवन शैली के कारण हम व्यायाम पर ध्यान नहीं देते जिससे शहरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा मोटापे का शिकार हो रही है।
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम की प्रेाजेक्ट डायरेक्टर आशिमा सरीन बतातीं है कि दुनियंाभर के शोध में भी सामने आया है कि नान स्मोकर की बजाय जो लेाग स्मोक करते है वे डिप्रेशन के अधिक शिकार होते है। उन्होने बताया कि भारत में 5500 बच्चों को बच्चे हर दिन तंबाकू सेवन की शुरुआत कर रहें है और वयस्क होने की आयु से पहले ही तम्बाकू के आदी हो जाते हैं। वे बतातें है कि ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे (जीवाईटीएस) 2009 कक्षा 8, 9 और 10 के छात्राओ के इस तथ्य को उजागर किया की 14.6 प्रतिशत विद्यार्थी किसी न किसी रूप में तम्बाकू का उपयोग कर रहे है। वहीं तंबाकू उपयोगकर्ताओं में से केवल 3 प्रतिशत ही इस लत को छोड़ने में सक्षम हैं। इसीलिए यह आवश्यक है की हम बच्चों को तम्बाकू सेवन की पहल करने से ही रोके।
इसलिए इस तरह के जो हानिकारक उत्पाद है उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ताकि आमजनता के स्वास्थ्य को और बेहतर बनाया जा सके।
वर्ल्ड हैल्थ डे के अवसर पर सिविल अस्पताल में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से मानसिक रोगों से बचाव पर जानकारी दी गई। इस दौरान टीम के सदस्यों ने समाज में किस प्रकार से मानसिक रोगों के प्रति जो सोच है उसको दिखाया और बताया कि वे बीमारी न समझे बल्कि इसका इलाज करवाए।
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