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प्रतिदिन नाम लेने से मिट जाते है सात जन्मों के पाप

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25 Feb 18
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प्रतिदिन नाम लेने से मिट जाते है सात जन्मों के पाप डॉ.प्रभात कुमार सिंघल-लेखक एवं पत्रकार, कोटा सृश्टि के पालक भगवान षिव का महानपर्व महाषिवरात्री यूं तो साल में एक बार आता है परन्तु देष का कोई भी कोना ऐसा नहीं है जहां प्रतिदिन षिव की स्तुति नहीं की जाती हो। सुन्दर वर प्राप्ती के लिए कन्याऐं षिव के नाम पर सोलह सोमवार का व्रत रखती है। भगवान षिव के प्रति पुराणों में वर्णित मान्यता के अनुसार जहां-जहां षिव स्वयं प्रकट हुऐ थे उन बारह स्थानों पर षिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि प्रतिदिन सवेरे व षाम इन ज्योतिर्लिंगो को स्मरण करने मात्र से सात जन्मों के पाप मिट जाते हैं। सर्वव्यापी भगवान षंकर के बारह ज्योतिर्लिंग का दर्षन एवं स्पर्ष करने से सब प्रकार के आनन्द की प्राप्ती होती है। यहां हम उन बारह ज्योतिर्लिंगो का क्रमवार विवरण दे रहे है जो षिवपुराण में वर्णित हैं।
सौराश्ट्र में सोमनाथ (गुजरात)
श्रीसोमनाथ सौराश्ट्र (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर को अतीत में छहः बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है। १०२२ ई. में इसकी समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सर्वाधिक नुकसान पहचा। यह चन्द्रमा के दुख का विनाष करने वाला है। पूर्वकाल में चन्द्रमा ने इसकी पूजा की थी।
श्रीषैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन (आन्ध्र प्रदेष)
आन्ध्रप्रदेष प्रान्त के कृश्णा जिले में कृश्णा नदी के तटपर श्रीषैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान है। इसे दक्षिण का कैलाष कहते है। पुत्र प्राप्ति के लिए इनकी स्तुति की जाती है। इनके दर्षन महासुखकारक हैं।
उज्जयिनी में महाकालेष्वर (मध्य प्रदेष)
श्री महाकालेष्वर (मध्यप्रदेष) के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर पवित्र उज्जैन नगर में विराजमान है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अंवतिकापुरी कहते थे। इनके दर्षन से सारी कामनाएं पूर्ण होती है और उसे परमगति की प्राप्ति होती है।
औंकार में अमरेष्वर महादेव (मध्य प्रदेष)
मालवा क्षेत्र में श्री औंकारेष्वर स्थान नर्मदा नहीं के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नाम स्टेषन है, वहां से यह स्थान १० मील दूर है। यहां औंकारेष्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है। विन्ध्यगिरी ने भक्तिपूर्वक विधिविधान से षिव का पार्थिवलिंग स्थापित किया।
केदारनाथ (उत्तरांचल)
श्री केदारनाथ हिमालया के केदार नामक षिखर पर स्थित हैं। षिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पष्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ है। यह स्थान हरिद्वार से १५० मील और ऋशिकेष से १३२ मील दूर उत्तरांचल राज्य में है।
डाकिनी में भीमाषंकर (महाराश्ट्र)
श्री भीमाषंकर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्यदि्र पर्वत के एक षिखर का नाम डाकिनी है। षिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमषंकर ज्योतिलिंग को असम के कामरूप जिलें में गुवाहाटी के पास ब्रह्यपुर पहाडी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काषिपुर नामक स्थान में स्थित विषाल षिवमंदिर भीमषंकर का स्थान है। इस रूप में षिव ने भीमासुर का विनाष किया और कई प्रकार की लीलाएं की। कामरूप देष के राजा सुदक्षिण की प्रार्थना पर षंकर जी यहां ज्योतिर्लिंग स्वरूप में स्थित हुए।
काषी में विष्वनाथ (उत्तर प्रदेष)
वाराणासी (उत्तर प्रदेष) स्थित काषी के श्री विष्वनाथजी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक है। गंगा तट स्थित काषी विष्वनाथ षिवलिंग दर्षन हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र है।
गोमती के तट पर त्रयम्बकेष्वर (महाराश्ट्र)
श्री त्रयम्बकेष्वर ज्योतिलिंग महाराश्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से १८ मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोमती के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है। यहां गौतम ऋशि की प्रार्थना पर भगवान षंकर षिवलिंग स्वरूप स्थित हैं।
चिताभूमि में वैद्यनाथ (महाराश्ट्र)
महाराश्ट्र में पासे परभनी नामक जंक्षन है, वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेषन से थोडी दूर पर पाली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है। परम्परा और पौराणिक कथाओं से परली स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है।
दारूकवन में नागेष्वर (गुजरात)
श्री नागेष्वर ज्योतिर्लिंग बडौदा क्षेत्रांतर्गत गोमति द्वारका से ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढा ग्राम में स्थित षिवलिंग को ही कोई-कोई नागेष्वर ज्योतिर्लिंग मानते है। कुछ लोगों के मत से अल्मोढा से १७ मील उत्तर-पूर्व में योगेष (जागेष्वर) षिवलिंग ही नागेष ज्योतिर्लिंग है।
सेतुबन्द पर रामेष्वर (तमिलनाडु)
श्रीरामेष्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहां लंका विजय के पष्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव षंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेष्वर या श्रीरामलिंगेष्वर के नाम से जाना जाता हैं। रामेष्वरम की अद्भुत महिमा की भूतल पर किसी से तुलना नहीं की जा सकती।
षिवालय में घुष्मेष्वर (महाराश्ट्र)
श्री घुष्मेष्वर (गिरीष्वेर) ज्योतिर्लिंग को घुसृणेष्वेर भी कहते है। इनका स्थान महाराश्ट्र प्रांत में दौलताबाद स्टेषन से बारह मील दूर बेरूल गांव के पास हैं।

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