>गांव कचुरा जिला चित्तौडगढ निवासी कैलाष गयरी (उम्र २साल) के हृदय में छेद को हाइब्रिड षल्य चिकित्सा एवं परक्यूटेनियस डिवाइस प्रत्यारोपित कर सफलतापूर्वक बंद किया। यह राज्य का पहला सफल मामला है जिसे गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के कार्डियक सेंटर के कार्डियक थोरेसिक एवं वेसक्यूलर सर्जन डॉ संजय गांधी एवं डॉ सुरेंद्र पटेल, कार्डियोलोजिस्ट डॉ सीपी पुरोहित, डॉ हरीष सनाढ्य एवं डॉ रमेष पटेल, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ अंकुर गांधी, डॉ कल्पेष मिस्त्री, डॉ मनमोहन जिंदल एवं डॉ धर्मचंद जैन ने अंजाम दिया।
क्या था मामला?
डॉ रमेष पटेल ने बताया कि बच्चे के जन्म से ही हृदय में छेद था जिसकी वजह से वह बार-बार बिमार हो रहा था एवं उसकी बढत नहीं हो रही थी। मरीज को बगैर षल्य क्रिया कर डिवाइस के माध्यम से छेद बंद करने की कोषिष भी की, जिसे परक्यूटेनियस प्रक्रिया कहते है, (जिसमें हाथ की नसों से वायर के माध्यम से डिवाइस को हृदय के छेद तक पहुँचाया जाता है) परन्तु हृदय के षारीरिक अभिविन्यास उचित न होने के कारण सर्जरी करने की सलाह दी गई और कार्डियक थोरेसिक एवं वेसक्यूलर सर्जन डॉ संजय गांधी के पास रेफर किया गया।
इस बिमारी के उपचार के क्या-क्या विकल्प थे?
डॉ संजय गांधी ने बताया कि इस बमारी का उपचार दो प्रकार से संभव था। दिल के ऊपर छोटा छेद कर के वायर के माध्यम से डिवाइस प्रत्योरोपित किया जाए, जिसे हाइब्रिड षल्य चिकित्सा बोलते है। और दूसरा मरीज को हार्ट-लंग मषीन से जोडकर पूरे दिल को खोलकर ऑपरेषन किया जाए।
किस विधि द्वारा उपचार किया गया?
डॉ गांधी व उनकी टीम ने पहले विकल्प को मरीज के लिए ज्यादा उचित समझा और कार्डियोलोजिस्ट से विचार विमर्ष कर बिना हार्ट-लंग मषीन के हाइब्रिड तकनीक से इलाज करन का निर्णय लिया। इस तरह के ऑपरेषन में हृदय षल्य चिकित्सा एवं हृदय रोग विषेशज्ञ दोनों मिलकर ऑपरेषन करते है और क्योंकि गीतांजली हॉस्पिटल में एक ही छत के नीचे यह सब सुविधाएं उपलब्ध है तो, इस ऑपरेषन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया जिसमें तीन घंटें का समय लगा।
क्यों जटिल था यह मामला?
इस प्रक्रिया द्वारा भी इलाज जटिल था क्योंकि हृदय के बाहर छेद करने से हृदय कभी-भी फट सकता था जिसके लिए हार्ट-लंग मषीन को तैयार रखा गया। इस ऑपरेषन में डॉ गांधी व उनकी टीम ने ईको-कार्डियोग्राफी के दिषा-निर्देष में बच्चे की छाती को खोलकर हृदय के ऊपर वाले हिस्से में अत्यंत सूक्ष्म तरीके से छेद किया और वायर को छेद से पास किया और डॉ रमेष पटेल व उनकी टीम ने ईको-कार्डियोग्राफी जांच की मदद से डिवाइस को प्रत्यारोपित कर छेद को बंद किया। इन दोनों तकनीकों को सम्मलित कर उपयोग किया गया जिसके परिणाम सकारात्मक रहे। बच्चा अब पूर्णतः स्वस्थ है और उसका इलाज राजस्थान सरकार की राश्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत निःषुल्क हुआ।
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