GMCH STORIES

OMG-बांध का उद्घाटन से पहले ही ढह जाना!

( Read 9854 Times)

22 Sep 17
Share |
Print This Page
OMG-बांध का उद्घाटन से पहले ही ढह जाना! -ललित गर्ग -एक बांध उद्घाटन होने से पहले ही ढह गया, भ्रष्टाचार के एक और बदनुमे दाग ने राष्ट्रीय चरित्र को धंुधलाया है, समानान्तर काली अर्थव्यवस्था इतनी प्रभावी है कि वह कुछ भी बदल सकती है, कुछ भी बना और मिटा सकती है। यहां तक की लोगों के जीवन से खिलवाड़ भी कर सकती है। गुजरात में एक बांध का उद्घाटन नयी संभावनाओं के द्वार खोल रहा है तो बिहार में एक बांध राष्ट्र के जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा है। देश को सम्भालने एवं सृजन करने वाले हाथ जब दागदार हो जाते हैं तो वहां जीवन का उजाला नहीं बल्कि अंधेरा ही प्रतीत होता है। दिन-प्रतिदिन जो सुनने और देखने में आ रहा है, वह पूर्ण असत्य भी नहीं है। पर हां, यह किसी ने भी नहीं सोचा कि जो हाथ राष्ट्र की बागडोर सम्भाले हुए हैं, क्या वे बागडोर छोड़कर अपनी जेब सम्भाल लेंगे? ऐसा जब भी होता है, समूचा राष्ट्र शर्मसार होता है।
भ्रष्टाचार सीमित संख्या में लोगों को अमीर बनाता है परन्तु यह असंख्य लोगों के जीवन के ताने-बाने को कमजोर भी करता है। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये कडे़ और कठोर कानून बनाये जाते हैं। कानून बनते हैं उससे पहले ही उनका तोड़ ढूंढ लिया जाता है। नये-नये तरीके भ्रष्टाचार के इजाद कर लिये जाते हैं। बिहार में सृृजन संस्था ने तो भ्रष्टाचार के मामले में कमाल ही कर दिया। महिलाओं से पापड़-वड़ी बनवाकर बाजार में व्यापार करने वाली यह संस्था भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है, यो भी बिहार भ्रष्टाचार एवं घोटालों के मामलों में कीर्तिमान बनाती रही है, लेकिन सृजन ने जो भ्रष्टाचार का विध्वंसक खेल खेला उसकी जद में बड़े-बड़े लोग भी आ चुके हैं। किसने कितना कमाया, किसने भ्रष्टाचार की कमाई को कहां डाला, सब कुछ धीरे-धीरे सामने आ रहा है। वैसे तो बिहार का भागलपुर इलाका पहले से ही कई कारणों से काफी चर्चित रहा है लेकिन अब यह इस खबर के कारण चर्चा में है क्योंकि भागलपुर में बटेश्वर गंगा पम्प नहर परियोजना कहलगांव लगभग 38 वर्ष बाद पूरी होकर भी धराशाही हो गई, ढह गयी।
इस बहुआयामी परियोजना को पूरी करने के लिए बैठकों पर बैठकें होती रही और करोडों़ का खर्चा भी हुआ लेकिन इससे पहले कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उद्घाटन करते, उससे एक दिन पूर्व ही बांध ध्वस्त हो गया। मुख्यमंत्री क्या करते, उन्हें अपना दौरा रद्द करना पड़ा। इससे शिथिल निगरानी, निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और पूर्व से लेकर वर्तमान तक के इंजीनियरों की कार्यशैली को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं। बांध की मजबूती का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बांध अपने उद्घाटन तक भी पानी का दबाव सहन नहीं कर सका और टूट गया। बांध का हिस्सा टूट जाने की वजह से आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। जो बांध लोगों को जीवन का उजाला देने वाला था, जिसका 38 वर्षों से लोग इंतजार कर रहे थे, वह अंधेरे का सबब बन गया, बिहार के मस्तक पर एक काला दाग लगा गया।
आजकल राष्ट्र में थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद ऐसे-ऐसे घोटाले, काण्ड या भ्रष्टाचार के किस्से उद्घाटित होते हैं लेकिन कुछ ही देर समाचार की सुर्खी बनने के बाद पृष्ठभूमि में चले जाते हैं। पुरानी कहावत तो यह है कि ”सच जब तक जूतियां पहनता है, झूठ पूरे नगर का चक्कर लगा आता है।“ इसलिए शीघ्र चर्चित प्रसंगों को कई बार इस आधार पर गलत होने का अनुमान लगा लिया जाता है। पर यहां तो सभी कुछ सच है, कभी कुछ काला ही काला है। घोटाले झूठे नहीं होते। हां, दोषी कौन है और उसका आकार-प्रकार कितना है, यह शीघ्र मालूम नहीं होता। तो फिर बांध प्रकरण इतना जल्दी क्यों चर्चित हुआ? सच जब अच्छे काम के साथ बाहर आता है तब गूंँगा होता है और बुरे काम के साथ बाहर आता है तब वह चीखता है। बांध जैसे राष्ट्र निर्माण एवं विकास के कार्यों में भ्रष्टाचार का होना त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण हैं। दुखद तो यह भी है कि बांध के परीक्षण के दौरान लीकेज सामने आने पर भी लीकेज रोकने के लिए खानापूर्ति की गयी। परियोजना से जुड़े लोगों ने ऐसा करके न केवल घोर लापरवाही का परिचय दिया बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों में धूल झोंकने का भी प्रयास किया। ऐसे भ्रष्ट एवं लापरवाह अधिकारियों को दंडित किया ही जाना चाहिए। बांध परियोजना से जुड़े लोगों की सम्पत्ति और उनके धन के स्रोतों की जांच की जानी चाहिए। आम आदमी जानता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में बड़े लोग बच निकलते हैं, उनका बच निकलना इस समस्या को और गहराता है।
यह बांध न केवल बिहार के मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजना थी बल्कि बिहार एवं झारखण्ड के जनजीवन को राहत देने एवं विकास की ओर अग्रसर करने का उपक्रम था। इससे बिहार और झारखंड के किसानों को सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था हो जाती लेकिन करोड़ों रुपए पानी में बह गए, जनजीवन के विकास की संभावनाओं पर पानी फिर गया। बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह अब भी लीपापोती कर रहे हैं। वे इससे पहले भी विवादों में रहे हैं। विवादास्पद बयान एवं भ्रष्ट आचरण ने उनके सफेद चमकते चेहरों पर कालिख लगाई है। बाढ़ के दिनों में भी जल संसाधन मंत्रालय की घोर लापरवाही सामने आई थी। अहम सवाल यह है कि आखिर बांध बहा क्यों? इस परियोजना में घपले के संकेत मिल रहे हैं। ट्रायल के दौरान लीकेज पर लीपापोती न कर अगर सत्यता की गंभीरता से जांच होती तो सब कुछ सामने आ जाता।
प्रजातंत्र एक पवित्र प्रणाली है। पवित्रता ही इसकी ताकत है। इसे पवित्रता से चलाना पड़ता है। अपवित्रता से यह कमजोर हो जाती है। ठीक इसी प्रकार अपराध के पैर कमजोर होते हैं। पर अच्छे आदमी की चुप्पी उसके पैर बन जाती है। अपराध, भ्रष्टाचार अंधेरे में दौड़ते हैं। रोशनी में लड़खड़ाकर गिर जाते हैं। चाहे बांध हो या सड़क निर्माण, ब्रिज हो या स्कूलों में दोपहर का भोजन- हर जगह भ्रष्टाचार के शैतान विराजमान हैं। यह राष्ट्रीय लज्जा का ऊंचा कुतुबमीनार है। इस बांध के ढहने से यह स्पष्ट है कि राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों एवं अपराधी तत्वों के बीच साँठ-गाँठ है तथा सबने गैर-कानूनी ढंग से धन प्राप्त किया है। यह देश की रक्षा, विकास एवं सार्वजनिक जीवन के लिए एक गंभीर खतरा है।
बांध ध्वस्त होने का कारण भ्रष्टाचार है। जो बांध भ्रष्टाचार के खम्भों पर खड़ा हो उसकी नियति यही होनी ही थी। कुछ दिन पहले बाढ़ के दौरान लापरवाही बरतने के आरोप में जल संसाधन विभाग ने 19 अभियंताओं को निलम्बित कर दिया था। लोगों का कहना था कि इस वर्ष बाढ़ आई नहीं बल्कि लाई गई है। बाढ़ लोगों के लिए बड़ी मुसीबत होती है लेकिन बाढ़ राहत कोष से राजनीतिज्ञों और अफसरों के चेहरे पर लाली आ जाती है। यह लाली भ्रष्टाचार का कारण बनती है लेकिन असंख्य लोगों के जीवन को लील कर। आज भ्रष्टाचार राष्ट्रीय जीवनशैली का अंग बन गया है, इसको दफना देना जरूरी हो गया है। यह सच है कि आज हमारे अधिकांश कर्णधार सोये हुए हैं, पर सौभाग्य है कि कुछ सजग भी हैं। मीडिया एवं न्यायालयों भी जागरूक हैं। नागरिकों का जागृत व चैकन्ना रहना सबसे प्रभावी अंकुश होता है।
Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like