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स्वाभिमानी देशभक्त महाराणा प्रताप

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27 May 17
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स्वाभिमानी देशभक्त महाराणा प्रताप

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल-लेखक एवं पत्र्कार, कोटा स्वाभिमानी, देशभक्त, वीरयोद्धा, हौंसले का धनी, घास की रोटी खाकर जिन्दा रहने तथा दोबारा मेवाड राज्य का आधिपत्य स्थापित करने वाले महाराणा प्रताप रा६ट्र नायक के रूप में इतिहास और दुनिया में अमर हो गये। महाराणा प्रताप के समय में जब मुगल शासक राजपूताने के राज्यों को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना रहे थे, उस समय अनेक राजपूत शासकों ने मुगल शासक से विविध प्रकार संधि व समझौते कर लिए और नतमस्तक हो गये। ऐसे वातावरण में मेवाड के शासक महाराणा प्रताप किसी भी प्रकार से अकबर के सामने नहीं झुके। अकबर ने चार बार संधि के लिए दूत भेजे परन्तु स्वाभिमानी प्रताप ने संधि के बदले या अकबर के सामने झुकने की जगह युद्ध को चुन कर स्वाभिमान और देशभक्ति का परिचय दिया।


महाराणा प्रताप अकबर की सेना से युद्ध करने पर कायम रहे और इसी का परिणाम ”हल्दीघाटी युद्ध“ के रूप में सामने आया। एक ओर महाराणा प्रताप की सेना थी तो दूसरी ओर मानसिंह के नेतृत्व में मुगलों की सेना थी। मुगलों की सेना में जहां युद्ध कोशल में दक्ष सेनिक तलवारों आदि से लेस थे वहीं प्रताप की सेना में भील धनुषबाण लेकर मुकाबले को तैयार थे। मुगल सेना हाथियों पर तो प्रताप की सेना घोडो पर युद्ध लडी। पहाडी क्षेत्र् होने व हल्दीघाटी का एक सकरा रास्ता होने के स्थान पर एक ओर प्रताप की सेना थी, वहीं दूसरी ओर मुगलों की सेना थी। यह रास्ता इतना तंग था कि कई लोग एक साथ इस रास्ते से नहीं निकल सकते थे।
हल्दीघाटी के युद्ध को “राजस्थान का थर्मोपोली” कहा जाता है। इस युद्ध में जहां प्रताप की सेना में कुल 20 हजार सैनिक थे वहीं मुगल सेना 85 हजार सैनिक थे। मुगलों की इतनी बडी सेना को देखकर भी प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्र्ता के लिए संघषर् किया। यह युद्ध 18 जून 1576 इस्व में लडा गया। मुगलो की सेना राजामानसिंह और आसफ खाँ के नेतृत्व में लडी। मुगलों के पास जहां सैन्य शक्ति अधिक थी वहीं प्रताप के पास जुझारू शक्ति का बल था। भीषण युद्ध में दोनों तरफ के योद्धा घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने स्वामीभक्त घोडे चेतक पर सवार होकर शत्र्ु की सेना में मानसिंह को खोजने लगे। युद्ध में चेतक ने अपने अगले दोनों पैर सलीम (जहांगीर) के हाथी की सूंड पर रख दिये। प्रताप के भाले से महावत मारा गया और सलीम भाग खडा हुआ। महाराणा प्रताप को युद्ध में फंसा हुआ देखकर झाला सरदार मन्नाजी आगे बडा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर स्वयं अपने सिर पर रख लिया और तेजी से कुछ दूरी पर जाकर युद्ध करने लगा। मुगल सेना उसे ही प्रताप जानकर उस पर टूट पडे और प्रताप को युद्ध भूमि से दूर जाने का अवसर मिल गया। उनका पूरा शरीर अनेक घावों से लहुलुहान हो चुका था। स्वामीभक्त घोडा चेतक 26 फीट लम्बे नाले को पार कर गया और अपने स्वामी के प्राण बचाये। इस प्रयास में चेतक की मृत्यु हो गयी और प्रताप के भाई शक्तिसिंह ने उन्हें अपना घोडा दिया। प्रताप यहां से जंगलो की ओर निकल पडे। यह युद्ध केवल एक दिन चला परन्तु इस युद्ध में 17 हजार लोग मारे गये।
जिस समय 1579 से 1585 तक मुगल अधिकृत प्रदेशों उत्तरप्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात में विद्रोह हो रहे थे उसी समय महाराणा प्रताप फिर से मेवाड राज्य को जीतने में जुट गये। अकबर अन्य राज्यों के विद्रोह दबाने में उलझा हुआ था जिसका लाभ उठाकर महाराणा ने भी मेवाड मुक्ति के प्रयास तेज कर दिये और उन्होंने मेवाड में स्थापित मुगल चौकियों पर आक्रमण कर उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर अधिकार कर लिया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया। उस समय सम्पूर्ण मेवाड की भूमि उनकी सत्ता फिर से कायम हो गयी थी। यह युग मेवाड के लिए स्वर्ण युग बन गया। उन्होंने चावण्ड को अपनी नई राजधानी बनाया और यहीं पर उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु सुनकर अकबर ने भी उनकी शूरवीरता की प्रशंसा की और उसकी आंख में आंसू आ गये।
महाराणा प्रताप का जन्म कुभंलगढ दुर्ग में हुआ था। उनकी माता जैवन्ताबाई पाली सोनगरा अखैराज की बेटी थी। बचपन में प्रताप को कीका के नाम से पुकारा जाता था। इनका राज्याभि६ोक गोगुन्दा में हुआ। विभिन्न कारणों से प्रताप ने 11 विवाह किये। महाराणा प्रताप से सम्बंधित सभी स्थलों पर स्मारक बनाये गये है।
हल्दीघाटी में घोडे चेतक का स्मारक भी बनाया गया है तथा एक पहाडी पर महाराणा प्रताप स्मारक के साथ-साथ इसकी तलहटी में एक निजी ट्रस्ट द्वारा आकषर्क प्रताप संग्रहालय स्थापित किया गया है। प्रताप के जीवन से जुडी तमाम घटनाओं को इस संग्रहालय में मॉडल, झांकी एवं चित्रें द्वारा बखूबी दशार्या गया है। यहां प्रताप के जीवन से सम्बंधित एक लघु फिल्म भी दशर्कों को दिखाई जाती है। उदयपुर के सिटी पैलेस में बनी प्रताप दीर्घा में महाराणा प्रताप का 81 किलो का भाला, 72 किलो का छाती का कवच, ढाल, तलवारों सहित अन्य स्मृतियां देखने को मिलती है।

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