GMCH STORIES

लाल बत्ती की विदाई

( Read 31377 Times)

22 Apr 17
Share |
Print This Page
लाल बत्ती की विदाई (विवेक मित्तल) रस्सी जल गई पर इसके बल नहीं गये वाली कहावत सही और सटीक है। कहीं ऐसा ना हो आम आदमी को खास बनाने वाली लाल बत्ती तो गाड़ी से उतर जाये लेकिन गाड़ी में बैठे विशेष आदमी का अन्दाज वही पुराना वी.वी.आई.पी. वाला ही होगा तो कुछ फायदा नहीं होने वाला। आज देश में लाल बत्ती उतारने की होड़ लगी हुई है नेताओं और अफसरों में। पर मैं एक बात सोचता हूँ कि क्या गाडियों के ऊपर लगी लाल बत्ती हटा देने मात्र से देश में व्याप्त वी.वी.आई.पी या वी.आई.पी. कल्चर खत्म हो जायेगा? नहीं होगा, तो क्या करें भाई? इसकी पूर्ण विदाई के वास्ते। अरे भाई आपको और मेरे को कुछ नहीं करना, करना तो लाल बत्ती वाले विशिष्ट श्रेणी के लोगों को है। इन लोगों को लाल बत्ती के साथ-साथ दिल-ओ-दिमाग पर सवार वी.आई.पी. होने के एहसास को भी उतार कर फैंकना होगा तभी कुछ बात बनेगी। कुर्सी और पद का क्या है जनता का दिया हुआ है, कल आम थे, आज खास और कल फिर आम हो जायेंगे तो आम ही बने रहना अच्छा है, थोडे़ दिनों की खातिर बने खास का क्या फायदा जब वापिस पुरानी जमात में ही शामिल होना हो? स्थाई चीज को पकड़ कर रखो, आने-जाने वाली चीज को नहीं। वी.आई.पी. (खास) होकर आम बने रहने में ही भलाई है, सत्ता के हाथों से खिसक जाने पर भी आम से जुड़ाव बना रहता है, मोह भंग नहीं होता।
जनता की भलाई, उनके दुःख-दर्द को दूर करने के लिए खास बने हो तो खास बनकर आम आदमी के काम आओ तो ही गाड़ियों से उतारी गई लाल बत्तियों का फायदा होगा। नहीं तो चाहे लाल उतारो चाहे नीली बत्ती कोई फायदा नहीं होने वाला। पद, ताकत और सत्ता का नशा हमारे दिलों-दिमाग पर इस कदर हावी हो चुका है कि बत्ती उतर जाने के बाद भी हमें वी.आई.पी. होने का एहसास से दामन छुड़ाने में काफी तकलीफ होगी, मन को विश्वास नहीं होगा, दिलासा दिलाना पड़ेगा बार-बार क्योंकि इसके गुलाम जो बन बैठे हैं खास लोग। इनके दिलों की धड़कनों में, धमनियों में वी.आई.पी. कल्चर इस कदर रच-बस गयी है, प्रवाहित हो रही है कि बिना इसके शुद्धिकरण के सार्थक नहीं होगा लाल बत्तियों का गाड़ियों से उतारना। वरना गाड़ियों से लाल बत्ती उतारने की खबर मात्र सुर्खियाँ बन कर रह जायेंगी और इनके फोटो सोशल मीडिया में शेयर करने के काम आयेंगे। लाल बत्ती के साथ-साथ वी.आई.पी. और पुलिस निशान वाले स्टीकर्स भी रूतबा बढ़ाने और धौस जमाने का काम करते हैं इनको भी गंगाजी में प्रवाहित कर देना चाहिये। तभी खास और आम में तालमेल बैठेगा, बराबरी का एहसास और अपनत्व की भावना जाग्रत होगी।

मैं और मेरा खासपन अक्सर
तन्हाइयों में बात करते हैं
और यही कहते हैं कि
कितना मुश्किल है यारा
वी.आई.पी. कल्चर से पीछा छुड़ाना।
Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like