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कोटा कोचिंग के छात्र: अब नहीं करेगें आत्महत्या

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28 Mar 17
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कोटा कोचिंग के छात्र: अब नहीं करेगें आत्महत्या नई दिल्ली, आत्महत्या की समस्या से जुझ रहे कोटा के कोचिंग छात्रों की समस्या का समाधान ‘‘स्पोर्टसः ए वे आॅफ लाईफ’’ पुस्तक में खेलों के माध्यम से खोजा गया है। इस शोध में कोटा के कोचिंग संस्थाओं का गहन सर्वेक्षण किया गया है। सवाई मानसिंग मेडीकल काॅलेज के अवसाद रोगीयों पर भी इस शोध में गहन अध्ययन किया गया है। राजस्थान राज्य के लिए यह एक उपयोगी शोध है।
दिल्ली विश्वविद्यालय केम्पस लाॅ सेन्टर के द्वितीय वर्ष के छात्र कनिष्क पाण्डेय ने खेल मूल्यों पर एक मौलिक शोध कर इस पुस्तक का रूप दिया है। ‘स्पोर्टस: ए वे आॅफ लाईफ’ का आज सोमवार को नई दिल्ली स्थित इण्डिया इन्टरनेशनल सेन्टर के खचाखच भरे आॅडिटोरियम में विमोचन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन राजीव खेल रत्न, पदम भूषण और अर्जुन सम्मान से सम्मानित पुलेला गोपीचन्द् तथा अर्जुन अवार्डी पैरालम्पियन देवेन्द्र झाझरिया, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष विश्व मोहन कटोच तथा सेंट स्टीफन्स काॅलेज के प्रिन्सिपल प्रो. जाॅन वर्गीज के कर कमलों से हुआ। इस अवसर पर बोलते हुए पुलेला गोपीचन्द ने कहा कि जिस तरह से आज शिक्षा में सिर्फ रिजल्ट को महत्ता दी जा रही है यहा तक की खेलों को भी कम्पीटीशन में जीत और हार की दृृष्टिकोण से देखा जाता है वह सिर्फ फिजीकल और न्यूमेरिकल शिक्षा की बात है। खेल को एक समग्र दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है जो कि स्पोर्टसः वे आॅफ लाईफ में बतायी गई है और यह शोध मील की पत्थर साबित होगी।
झाझडिया जो कि खुद दिव्यांग होते हुए भी अपने आप को जीवन में खेल के सर्वोच्च शिखर पर पहुचाया, इस विमोचन पर उपस्थित होकर इस पुस्तक में प्रतिपादित विषयों की सार्थकता को स्थापित कर दिया। इस अवसर पर बालते हुए यू.जी.सी. के चैयरमेन प्रो. वेदप्रकाश ने कहा कि यह रिसर्च देश में मान्य इस अवधारणा को ध्वस्त करता है कि खेल में जुड़ने से किसी व्यक्ति के केरियर में व्यवधान आता है। शोध इस बात पर बल देता है कि खेल मूल्यों से चरित्र का सम्पूर्ण विकास होता है और यह सतत आपका जीवन साथी बन जाता है। इस अवसर पर बोलते हुए डाॅ विश्व मोहन कटोच ने कहा कि यह शोध पत्र अवसाद और मनोरोग से जूझ रहे लोगों को ईलाज का मार्ग दिखा रहा है। पुस्तक में वर्णित स्पोर्टस थेरेपी मेडिकल साईंस में एक नई विधा के रूप में विकसित हो सकती है।
इस विषय पर सेंट स्टीफन काॅलेज के प्रिन्सिपल जाॅन वर्गीज ने कहा कि हमें गर्व है कि हमारे काॅलेज के ही एक भूतपूर्व छात्र और काॅलेज टीम के खिलाडी़ ने इतनी कम उम्र में खेल विषयों पर इतना गहन शोध प्रस्तुत कर खेल के प्रति लोगों के नजरिया बदलने का प्रयास किया है।
इस अवसर पर विख्यात शिक्षाविद् एवं भूतपूर्व कुलपति श्री आई.वी. त्रिवेदी तथा बिरला इस्टीट््यूट आॅफ टेक्नोलोजी, ग्रेटर नोयड़ा के निदेशक श्री हरिवंश चतुर्वेदी सहित देश के जाने माने शिक्षाविद्् इस विमोचन के अवसर पर उपस्थित रहे।

मुख्य बिन्दुः

ऽ स्पोर्ट्स में एकेडमिक रिसर्च न के बराबर है। कारण है कि खिलाड़ी एकेडमिक्स से कट जाता है और एकेडमिशियन स्पोर्टस से सरोकार नहीं रखते है। स्पोर्टस की वैल्यूज, एथिक्स, उसमें छिपे हुए रत्न खेल के मैदान के बाहर साहित्य के माध्यम से जन-जन तक नहीं पहुॅच पाते। कनिष्क ने एकेडमिक्स और स्पोर्टस के सन्तुलन व सामान्जस्य के माध्यम से व्यक्तित्व विकास, समाज निर्माण एवं चरित्र निर्माण का प्रयास किया है। कनिष्क का मेधावी छात्र होने के साथ-साथ स्पोर्टस से गहरा जुड़ाव होने के कारण ही खेल के ये रत्न आज इस पुस्तक के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत हुए है।
ऽ ‘स्पोर्टसः ए वे आॅफ लाईफ’ रिसर्च तीन साल की समयावधि में स्वप्रेरणा से एवं पूर्णरूपेण व्यक्तिगत प्रयासों से पूरा किया गया है।
ऽ एक ऐसा रिसर्च जो शोध के लिए निर्धारित अहर्ताओं को पूरा न करने वाले छात्र द्वारा किया गया, परन्तु शोध मापदण्ड़ों पर इसे 22 विश्वविद्यालयों ने अब तक उत्कृष्ट एवं अनूठा बताया है।
ऽ कदाचित यह खेलों पर किया गया दुनिया का प्रथम रिसर्च है।।
ऽ स्पोर्ट्स वेल्यूज के माध्यम से प्रशासनिक, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजा गया।
ऽ खेलों के माध्यम से राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की संकल्पना बताई गई।
ऽ व्यक्तित्व विकास एवं मजबूत व्यक्तित्व के निर्माण का खेल के जरिये मार्ग बताया गया।
ऽ इस रिसर्च को लेकर ‘‘मेडिकल साईंस के विशेषज्ञ एवं विश्वविद्यालय‘‘ स्पोर्ट्स को एक मेडिकल थैरेपी के रूप में इस्तेमाल करनें का अध्ययन कर रहे हैं। सुसाइडल टेन्डेन्सी, डिप्रेशन, कमजोर मनःस्थिति, अधूरें व्यक्तिव का ईलाज स्पोर्टस के माध्यम से करने का रास्ता खोजा गया है।
ऽ ’’खेलोगे, कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाब’’ की धारणा को बदलकर “खेलोगे, कूदोगे और पढ़ोगे लिखोगे तो ही बनोगे नवाब” बनाने बल दिया गया।
ऽ खेल को आन्दोलन बनाने का सुझाव दिया गया। शिक्षा के सभी स्तरों के पाठ्यक्रमों में खेल को अनिवार्य स्थान देने का सुझाव दिया गया है।
ऽ भूतपूर्व खिलाड़ियों को विज्ञापन एवं पैसों की दुनिया से निकालकर समाज के निर्माण के लिए आगे आने का आव्ह्ान किया गया है।
ऽ खेलों की पवित्रता पर बल और इसके व्यवसायिकरण का विरोध किया गया।
ऽ सचिन तेन्दुलकर सरीखे महानतम् खिलाड़ियों को खेल की दुनिया में महात्मा गाॅधी की भूमिका में आना चाहिए।
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