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ऑडिसी में ‘वर्षा’ और गायन में सुरों ने अहसास करवाया मलहार

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21 Aug 16
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ऑडिसी में ‘वर्षा’ और गायन में सुरों ने अहसास करवाया मलहार उदयपुर, पश्चिम क्षेत्र् सांस्कृतिक केन्द्र तथा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर की ओर से शिल्पग्राम में आयोजित दो दिवसीय शास्त्रीय नृत्य व संगीत संध्या ‘‘मल्हार’’ की शुरूआत शनिवार को हुई। जिसमें सुधा रघुरामन ने अपने गायन से जहां सुरो की वर्षा की वहीं ऑडिसी में ‘‘वर्षा’’ की प्रस्तुतियों ने कला रसिको को श्रावण भादो में ‘‘मल्हार’’ का आभास करवाया।


शिल्पग्राम के दप्रण सभागार में आयोजित दो दिवसीय सांझ की शुरूआत कर्नाटक शैली की प्रख्यात गायिका सुधा रघुरामन के गायन से हुई। कई देशो में अपने गायन की रस वर्षा कर चुकी सुधा रघुरामन ने अपने गायन की शुरूआत राग अमृत वर्षिणी से की। जिसमें उन्होने आलाप, ताल, कृति व सरगम के माध्यम से वर्षा ऋतु का वर्णन किया। मुथ्थुस्वामी दीक्षित की इस रचना व आदि ताल में निबद्ध राग अमृत वर्षिणी में सुधा का गायन व कंठ माधुर्य श्रेष्ठ बन सका। इनके साथ बांसुरी पर जी. रघुरामन ने सुरों से वर्षा की। इसके बाद सुधा ने मीरा बाई का भजन सुनाया। कर्नाटक में जन्मी सुधा ने मांड राग में निबद्ध रचना ‘‘मोर मुकुट पीताम्बर सोहे गल बैजन्ती माल’’ में गायन की गहराई और कंठ से प्रस्फुटित स्वरों ने श्रोता दर्शकों पर जादू सा कर दिया।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पुरस्कार से सम्मानित सुधा रघुरामन ने इस अवसर पर राग मेघ मल्हार पर आधारित मराठी अभंग सुरीले अंदाज में सुनाया। अभंग में सुर और लयकारी का अनूठा मिश्रण देखने को मिल सका। सुधा ने अपने गायन के आखिर में प्रसिद्ध कवि सुब्रमण्यम भारती की एक नव रचना को विशेष तौर पर यहां प्रस्तुत किया। ‘‘टिक गळ एट्टूम सिरली....’’ रचना में वर्षा के वातावरण को उत्कृष्ट ढंग से अभिव्यक्त किया गया। राग मालिका पर आधारित इस रचना ‘‘वर्षा’’ में बूंद बूद कर पानी गिरने, बरसात की तैयारी में उमडे बादलों तथा बरसात के माहौल का वर्णन श्रांगारिक अंदाज में किया गया।
सुधा के साथ बांसुरी पर जी. रघुरामन, मृदंगम पर एम.वी. चन्द्रशेखर तथा तबले पर शंभू नाथ भट्टाचार्य ने संगत की। इनकी प्रस्तुति हिन्दुस्तानी शास्त्रीय तथा कनार्टक संगीत के मिश्रण की अनूठी मिसाल बन सकी।
कार्यक्रम में लावण्य बिखेरा निवेदिता महापात्र् के दल के ऑडिसी नृत्य ने जिसमें संगीत, लय और भाव मुद्राओं का अनुपम युग्म था। ऑडिसी शैली की शुरूआत त्र्दिेव ब्रम्हा, विष्णु व महेश की आराधना से हुई। सुरीले श्लोकोच्चार के साथ नृत्यांगनाओं ने अपनी भाव भंगिमाओं व दैहिक मुद्राओं से त्र्दिेव को मंच पर साकार किया तथा उनकी स्तुति से सुंदर दृश्य चित्र् दर्शकों के सम्मुख रखा।

ऑडिसी शैली में सर्वाधिक आनन्द उस समय आया जब नृत्यांगनाओं ने ‘‘वर्षा’’ में अपने हाव-भाव व दैहिक संचालन से वर्षा ऋतु के साथ-साथ प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को मोहक अंदाज में अभिव्यक्त किया। राग मेघ में निबद्ध रचना ‘‘बरसो रस नयन अना...’’ में प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का वर्णन किया गया।
उदयपुर के कला रसिकों को ऑडिसी नृत्य शैली का शुद्ध पक्ष संकरा वर्णन में देखने को मिल सका। राग संकरावरण पल्लवी पर आधारित इस रचना में नृत्य पक्ष जहां लावण्य पूर्ण था वहीं संगीत ने प्रस्तुति को रस प्रदान किया तथा नृत्यांगनाओं ने अपनी मोहिनी मुद्राओं से दर्शकों को मंत्र् मुध सा कर दिया। कार्यक्रम में दशावतार पर आधारित नृत्य रचना ‘‘कृष्णाय तुभ्यम नमः....’’ भक्ति भावन से ओत प्रोत होने के साथ-साथ दर्शकों पर अपनी मोहक छवि अंकित कर गई।
ऑडिसी शैली में गायन पर प्रशांत बेहरा ने अपने स्वर दिया तो मर्दल पर ्रदीप महाराणा ने ताल संगत प्रदान की, बांसुरी परधीरज पाण्डे व सितार पर लावण्या कुमार ने संगत की।
इससे पूर्व कार्यक्रम के मख्य अतिथि क्षतीय रेलवे प्रशिक्षण केन्द्र के प्राचार्य श्री सत्यपाल मेड तथा विशिष्ट अतिथि राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के सचिव श्री महेश के. पंवार व केन्द्र निदेशक श्री फुरकान ख्ाान ने दीप प्रज्ज्वलित कर दो दिवसीय समारोह का उद्घाटन किया। केन्द्र निदेशक श्री खान ने अतिथी कलाकारों का पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किय।
पश्चिम क्षेत्र् सांस्कृतिक केन्द्र तथा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित दो दिवसीय ‘‘मल्हार’’ के दूसरे दिन शिल्पग्राम में नई दिल्ली के साध्या दल मिस्टिक फॉरेस्ट द्वारा छाऊ नृत्य शैली पर आधारित नृत्य नाटिका तथा नई दिल्ली के जयपुर घराने के सुविख्यात नर्तक प्रवीण गंगानी व उनके साथी कत्थक की प्रस्तुति दगे।


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