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न्यायपालिका का पूर्ण विश्वास ः सुब्रत राय

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22 Jun 16
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न्यायपालिका का पूर्ण विश्वास ः सुब्रत राय
उदयपुर। सहाराश्री सुब्रत राय अपनी आभार यात्रा के तहत जयपुर में निवेशकों से मिले। जोधपुर में आभार यात्रा के चरण को पुरा कर वे सुबह अजमेर में दरगाह जियारत कर जयपुर पहुंचे थे जहां सहारा कार्यकर्ताओं, निवेशकों और आमजन ने उनका स्वागत किया। मानसरोवर में आयोजित आभार यात्रा के प्रमुख कार्यक्रम में सहाराश्री ने 5000 से अधिक सहारा कार्यकर्ताओं और निवेशकों को संबोधित और प्रेरित किया। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका पर पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि न्याय किन्हीं वास्तविक व अन्य कारणों से भले देर से मिले पर अन्ततः सही न्याय होता अवश्य है।
इस दौरान सहारा इंडिया परिवार द्वारा बयान जारी कर बार बार पुछे जाने वाले कुछ प्रश्नों के विस्तृत उत्तर प्रस्तुत किये जो कि इस प्रकार हैं-
प्रश्न 1 ः सहारा ने कानून के विरूद्घ जाकर क्यों निवेशकों का धन उठाया? क्या यही आपकी आज की कठिनाइयों की मुख्य वजह नहीं है?
उत्तर - चूंकि यह मामला माननीय न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है इसलिए हम इसके विवरण पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। हालांकि यहां यह कहना पर्याप्त होगा कि इस प्रकार का आरोप सरासर गलत है और आगे दी गयी जानकारी को पढकर आप अवश्य हमसे सहमत होंगे।
वर्ष 2006 में हमने लगभग 1.98 करोड ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) निवेशकों के प्रति रिटर्न कम्पनी रजिस्ट्रार, कोलकाता, से विधिवत अनुमति और स्वीकृति लेकर उनके पास फाइल कराया था। निवेशकों की यहाँ भी संख्या 5॰ से अधिक थी।
तत्पश्चात् 2008 में भी कम्पनी रजिस्ट्रार, उत्तर प्रदेश, व कम्पनी रजिस्ट्रार, महाराष्ट्र, से हमने ओएफसीडी के माध्यम से सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड व सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड हेतु धन जुटाने हेतु लिखित अनुमति प्राप्त की थी। कम्पनी रजिस्ट्रार एक अत्यधिक महत्वपूर्ण सरकारी विभाग है जो सीधा कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के आधीन कार्य करता है।
हमने नियमित रूप से व विधिवत ढंग से अपनी बैलेंस शीट व रिटर्न्स कम्पनी रजिस्ट्रार के पास फाइल किये हैं। उन्होंने भी नियमित रूप से सहारा का निरीक्षण व जांच किया था। इस विधिवत प्रक्रिया में सेबी कभी भी सम्मिलित नहीं था। अतः स्पष्ट है कि हमने ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) सरकारी स्वीकृति के पश्चात व निश्चित रूप से सभी नियमों का पालन करते हुए ही जारी किये थे। इस प्रकार, हम उपयुक्त कानूनी प्रावधानों का पूर्ण रूप से पालन कर रहे थे।
इन तथ्यों के बावजूद सेबी ने वर्ष 2010 से ही हमें दण्ड देना शुरू कर दिया था, वो भी पूर्वगामी (रिट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव से। उन्होंने कारण के रूप में यह कहा कि निवेशकों की बडी संख्या यानी 50 से अधिक निवेशक हैं इसलिए इसे निजी प्लेसमेंट नहीं करार दिया जा सकता है। हालाकि कानून में ऐसी कोई सीमा कहीं भी नहीं दी गयी है। वैसे भी सहारा ने वर्ष 2006 में अपने एक पूर्व ओएफसीडी इश्यू के 1.98 करोड निवेशकों का रिटर्न कम्पनी रजिस्ट्रार, कोलकाता, के पास फाइल कराया था। तब व उसके 5-6 वर्ष बाद तक भी किसी अधिकारी या किसी विभाग ने कभी भी कोई आपत्ति नहीं उठाई। सबसे बडी बात तो यह है कि वर्ष 2008 में हमें दो अन्य कम्पनी रजिस्ट्रारों ने भी ओएफसीडी जारी करने की अनुमति दी। फिर आखिर सेबी इन दो कम्पनी रजिस्ट्रारों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है?
प्रश्न 2ः आप सेबी को और धन क्यों नहीं दे रहे हैं ताकि वह निवेशकों को उनका पैसा चुका पाए?
उत्तर - विगत 43 माह में सेबी ने सम्मानित निवेशकों को मात्र 50 करोड रूपये ही लौटाए हैं। वह भी देश भर के 144 समाचार पत्रों में विज्ञापन देने के बाद। ऐसे विज्ञापनों के 4 राउंड पूरा कर चुकने के बावजूद सेबी को कुल धन वापसी (रीपेमेंट) की मांग मात्र 50 करोड रूपये के लगभग ही मिल पायी है। वैसे भी अब इससे अधिक मांग उन्हें मिलेगी ही नहीं क्योंकि अपने आखिरी ऐसे विज्ञापन में सेबी स्पष्ट रूप से कह चुका है कि धन वापसी हेतु यह अन्तिम अवसर होगा।
अतः सेबी की ऐसी कुल धन वापसी 100 करोड रूपये से अधिक नहीं होगी जबकि हम सेबी को पहले से ही 14,000 करोड रूपये (फिक्स डिपाजिट पर प्राप्त ब्याज सहित) दे चुके हैं। साथ ही, सेबी के पास सहारा की 20,000 करोड रूपये मूल्य की अचल सम्पत्तियों के मूल दस्तावेज भी हैं।
आप यह तो मानेंगे कि अगर हमने अपने 3 करोड सम्मानित खाता-धारकों को उनकी धनराशि वापस अदा नहीं की होती तो अब तक उनके मध्य खून-खराबा, हिंसा व आत्महत्याएं हो चुकी होतीं। इन तथ्यों एवं परिस्थितियों से केवल एक ही निष्कर्ष निकलता है कि समस्त निवेशक वास्तविक हैं और उनको उनकी जमा की गयी धनराशि वापस मिल चुकी है।
दूसरी ओर सेबी तो यह कह रहा है कि चूंकि कोई निवेशक रकम मांगने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं तो इसका यह अर्थ है कि सब निवेशक खाते फर्जी हैं। इसके विपरीत सहारा का दावा है कि एक भी खाता गलत या फर्जी या जाली नहीं है। सहारा के दावे की सशक्तता इसी से स्पष्ट हो जाती है कि सेबी निवेशक सत्यापन प्रक्रिया को टालता ही चला जा रहा है। क्योंकि सेबी जानता है कि यदि सत्यापन सही ढंग से किये जाएंगे तो सहारा निश्चित रूप से सच्चा साबित होगा। वह स्थिति सेबी के लिए यकीनन बेहद शर्मनाक होगी। क्योंकि तब मुकदमे का फैसला सहारा के हक में होगा और सहारा का सारा धन उसके पास वापस आ जाएगा।
प्रश्न 3ः सहारा अपना यह दावा किस बलबूते पर करता है कि इन दोनों कम्पनियों में सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा की भूमिका किसी भी गिरफ्तारी के लिए मान्य नहीं थी?
उत्तर - सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा न तो इन दोनों कम्पनियों, जिनके विरूद्घ माननीय उच्चतम न्यायालय ने 31.08.2012 में आदेश पारित किया था, में से किसी के भी निदेशक थे और न ही उन्होंने इनमें कोई कार्यकारी भूमिका ही निभाई थी। वे इनमें मात्र एक शेयरहोल्डर थे और हैं। उन्हें प्रमोटर शेयरहोल्डर के तौर पर हिरासत में लिया गया था। कम्पनीज एक्ट के अनुसार कोई भी शेयरहोल्डर कभी भी कम्पनी की गलती के प्रति गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा के मामले के बाद अब कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी प्रमोटर शेयरहोल्डर को गिरफ्तार कर सकता है क्योंकि हर एक प्रमोटर तो शेयरहोल्डर होता ही है।
प्रश्न 4ः सहारा के द्वारा तनख्वाहें आदि क्यों नहीं दी जा रही हैं?
उत्तर - विगत 30 माह से पूरा सहारा समूह एक प्रतिबंध के तले दबा है। अर्थात हम अगर कोई भी सम्पत्ति उधार रखकर या बेच कर रकम जुटाते हैं तो वह पूरा धन सेबी-सहारा के खाते में ही जाएगा। अतः हम अपने समूह के लिए एक रूपया भी नहीं जुटा सकते हैं। यह यकीनन काफी कठिन परिस्थिति है। दरअसल, हमसे अपेक्षा की जा रही है कि हम चलें, जबकि हमारे हाथ-पाँव बंधे हुए हैं और उसके बाद हम पर सवाल उठ रहे हैं कि हम चल क्यों नहीं रहे हैं।


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