मनुष्य का अहंकार उसे अन्य सबके विरोध मे खड़ा कर देता है। इस अहंकार के शांत होने पर ही सब अपने सगे सम्बन्धी पहचान मे आते है। दुभाषी दृष्टि में जो नर और नारी के भेद है, अज्ञानता का ही द्योतक है चाहे ज्ञान क्षैत्र हो। सती अग्रि समाधि का वर्णन करते हुए यह प्रवचन पं. स्कन्द कुमार पण्ड्या ने भागवत कथा के चौथे दिन श्री जगत शिरोमणि मंदिर मे भक्तों को दिये। पंड्या ने कहा कि हर क्षैत्र मे नारी अनादिकाल से नर के समान रही है, बल्कि नारी वर्तमान मे भी परिवार की समृद्धि हेतू लक्ष्मी बनकर संतान को शिक्षित करने सरस्वती बनकर और बुराईयों को दूर करने दूर्गा की भूमिका मे नजर आती है।
इधर सेक्टर 3 के विवेक नगर स्थित शिव मंदिर में सुबह चौथे दिन की भागवत कथा का वाचन करते हुए पं. स्कन्द कुमार पंड्या ने कपिल जन्मोत्सव का वर्णन करते हुए कपिल जन्मोत्सव मनाया। पंड्या ने जन्म मृत्यू की व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन की अंतिम परिक्षा मृत्यु है। जिसका जीवन सुधरा हुआ है उसकी मृत्यू भी सुधर जाएगी, और मृत्यु तभी सुधरती है जब मनुष्य प्रतिक्षण हरि का स्मरण कर सुधरता रहता है।
शिव - पार्वती विवाह मे दिखा उल्लास
भागवत कथा के प्रसंग के दौरान शिव मंदिर और श्रीजगत शिरोमणि मंदिर मे शिव - पावर्ती के विवाह का प्रसंग जीवंत हो उठा। प्रसंग को सुनाते हुए पं. स्कन्द कुमार पंड्या ने Þनंदी पर होकर सवार, भोले जी ससुराल चले......, जैसे कई शिव - पार्वती विवाह के भजन गाये तो भागवत पांडाल मानों शिव - पार्वती विवाह का साक्षी बन गया। एक तरफ भजनों पर झूमते भक्त बाराती बने तो वहीं दूसरी और भोले बाबा के स्वरूप का पांडाल मे गाजे - बाजे के साथ प्रवेश हुआ। इसके साथ ही पूर पांडाल जय भोलेनाथ के जयकारों से गुंज उठा। विवाहा का प्रसंग कुछ ऐसा जीवंत हुआ मानों भोलेनाथ स्वयं कैलाश पर्वत से पार्वती से विवाह करने के लिए आये हो।
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