GMCH STORIES

तो क्या अच्छे दिनों में भी जारी रहेगा रेल की लैट्रीन में

( Read 30604 Times)

28 Jun 15
Share |
Print This Page
तो क्या अच्छे दिनों में भी जारी रहेगा रेल की लैट्रीन में रामजी मिश्र मित्रभारतीय ट्रेनों में भीड़ के चित्र पहले भी देखने में आते रहे हैं लेकिन पटरियों के ऊपर से गुजरी विद्युत लाइन ने इस भीड़ की तस्वीर में परिवर्तन कर दिया है। तस्वीर बदली है लेकिन हालत सुधरने के बजाय और बदतर ही हुई है और जो इंतजाम न होने से लाजमी भी है।

लेकिन मसला यह भी है कि अब वह भीड़ छतों पर नहीं दिखती। अगर हालात की बात की जाए तो भारतीय रेलवे किराया तो सबसे बराबर लेता है लेकिन किसी को शीट मिलती है तो कोई खड़े खड़े यात्रा करता है। ऐसी कई ट्रेनों का जायजा लेने के लिए एक संघर्ष की दरकार थी जो आम जन रोज करते हैं। शुरुआत हुई जननायक एक्सप्रेस से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में पड़ने वाले मैगलगंज स्टेशन पर जननायक एक्सप्रेस रुकी और फिर उसमे जगह न होते हुए भी और यात्री भर गए।

यात्री पहले ट्रेन में चढ़ने के लिए बड़ा संघर्ष करते दिखे और फिर चढ़ने के बाद भी उसमे खड़े होने की जगह तलाश किया जाना भी एक बड़ी चुनौती थी। देखते ही देखते आपस में धक्का मुक्की झगड़ा और फिर कुछ शान्ति प्रिय लोगों द्वारा समझोता किया जाने लगा। ट्रेन स्टेशन छोड़ चुकी थी झगड़ा शांत हो गए थे कुछ व्यक्ति एक पैर पर खड़े थे। कुछ व्यक्तियों को भयंकर रूप से लघुशंका और दीर्घशंका महसूस हो रही थी पर भीड़ को चीड़ कर वह आगे नहीं जा पा रहे थे। जब कैमरा से फ़ोटो लिए जाने का प्रयास किया गया तो कैमरा भी भीड़ को चीर कर तस्वीर लेने में असमर्थ साबित हुआ। कैमरा में कैद तस्वीरों में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। सबसे बड़ी विडम्बना की बात तो यह थी कि लोग ट्रेन के पिशाब घर में भी यात्रा करने को मजबूर थे। उनकी चंद तस्वीरें बड़े संघर्ष के बाद आ सकीं। बरेली के बाद भीड़ और बढ़ते देख आगे उसमे रिपोर्टिंग करने की शक्ति न बची थी। चार घंटे से अधिक एक पैर पर खड़े खड़े की गयी यात्रा ने मुझे शक्तिविहीन कर दिया था। राजरानी से लौटते वक्त भी इसी प्रकार की स्थितियां सामने थी। सच बात तो यह है कि भारत की ट्रेनों में आम आदमियों के लिए प्रतिदिन की ऐसी ही यात्राएं होती हैं। रेलवे यह जानता है लेकिन उसे उन असुविधाओं की कोई फिकर नहीं है। आम जनता का सफर एक भयानक संघर्ष भरा होता है। रेलगाड़ी की छतों पर बिजली के तारों के कारण अब यात्रा संभव नहीं रह गयी लेकिन स्थितियां बिलकुल वैसी ही हैं बस द्रश्य में कुछ परिवर्तन जरूर हुआ है। आम जन का संघर्ष हर यात्रा में बहुत भीषण होता है जो एक सुखद यात्रा कही से नहीं कही जा सकती। कभी कभार संघर्ष न कर पाने पर यात्रियों की ट्रेन छूट जाती है और वह उसमे चढ़ नहीं पाते। बच्चों और बूढ़ों के लिए भी रेलवे के साधारण डिब्बों की यात्रा बहुत कष्टप्रद है। कुछ भी हो अच्छे दिनों की ट्रेनो में आम यात्रियों के दिन कब बहुरेंगे देखने वाली बात होगी।
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines , Rail info News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like