परमात्मा की वाणी शेरनी के दूध समानःनीलजनाश्री
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13 Jul 17
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उदयपुर साध्वी नीलांजना श्रीजी ने कहा कि परमात्मा की वाणी शेरनी का दूध समान है जो सिर्फ स्वर्ण पात्र में टिक सकता है। अपने हृदय को स्वर्ण समान बनाएं।
वे बुधवार को वासुपूज्य स्थित दादावाडी में नियमित चातुर्मासिक प्रवचन सभा को संबोधित कर रही थी। उन्होंने आगम क्या है, किसने बनाये, क्या स्वरूप हैं कितने भेद हैं आदि के बारे में जानकारी दी। आगम सूत्र वेदांत का एक दार्शनिक विवेचन है। वेदों का कोई निर्माता नही है लेकिन आगम परमात्मा से आयें। महावीर की स्तुति करते हुए उन्हें ३ विशेषण दिए गए। शब्द की सीमा है लेकिन परमात्मा का व्यक्तित्व सीमित शब्दों में नही कहा जा सकता।
उन्हने कहा कि समुद्र के खारे पानी को लेकर बादल बरस कर उसे मनुश्य को मीठा पानी के रूप में उपलब्ध कराता है। आत्मा जीव है लेकिन जीव ने ज्ञान अर्जित नहीं किया तो वह ज्ञान के बिना वो जड बन जाएगी। जड तो क्षण भंगुर है। नष्ट हो जाएगी। जीव कभी नष्ट नही होता, आत्मा अमर है। पांच इंद्रियां होती हैं जिसमें स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, आंखें देखने, कान सुनने और नाक सूंघने का काम करती है सिर्फ जीभ दो काम करती है। स्वाद और बोलने का काम। ज्यादा बोल गए तो मार पडती है। संभाल कर चलो तो बहुत ऊंचाई पर नही तो बिल्कुल नीचे।
उन्हने कहा कि १० किमी ऊपर भी कुछ है भले ही हम देख नही पाते लेकिन उनका अस्तित्व तो है। उसके बारे में सिर्फ गुरु भगवंत जानते हैं। तभी वो देशना देते हैं। पांच ज्ञान हैं, मति ज्ञान, सुध ज्ञान, अवधि (सीमा) ज्ञान, मनरू पर्यव और केवल ज्ञान।
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