श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा का आगामी 18वां त्रि-दिवसीय वार्षिकोत्सव 1 जून से 3 जून, 2018 तक आयोजित किया जा रहा है। इस उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं। आज गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय जी इन पंक्तियों के लेखक के साथ गुरुकुल के सहयोगी व आर्यसमाज की विचारधारा से जुड़े व अन्य सामान्य लोगों को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करने के लिए उनके निवासों पर पहुंचे। सभी लोगों ने उत्साहपूर्वक निमंत्रण पत्र प्राप्त किया और गुरुकुल के उत्सव में आने का आश्वासन दिया। इस कार्य से जहां गुरुकुल का प्रचार होता है वहीं गुरुकुल से जुड़े लोगों के सुख व दुःख विषयक समाचार भी विदित होते हैं।
आज दिनांक २३-५-२०१८ के प्रचार कार्य की हम तीन घटनाओं को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। आर्यसमाज के एक सदस्य श्री दौलत सिंह राणा हैं। यह देहरादून के रैफेल होम में अपनी पत्नी व पुत्री के साथ निवास करते हैं। राणा जी व उनकी पत्नी बहिन श्रीमती उषा राणा जी को युवावस्था में कुष्ठ रोग हुआ था। देहरादून की ईसाई संस्था रैफेल होम ने निःशुल्क आवासीय सुविधा प्रदान कर इनका उपचार कर उन्हें स्वस्थ किया। वह निरोग हो गये परन्तु समाज ने इन्हें स्वीकार नहीं किया। रैफेल होम में एक शिव-सदन कालोनी है। इसी कालोनी में राणा जी का परिवार विगत 65 वर्षों से निवास कर रहा है। राणा जी की इस समय आयु 81 वर्ष है। युवावस्था में उपचार के दौरान एक अन्य रोगी से आपको आर्यसमाज और सत्यार्थप्रकाश का परिचय मिला था। आपने अल्पशिक्षा के बावजूद सत्यार्थप्रकाश पढ़ा और आर्यसमाज में आने लगे थे। सबसे पीछे बैठकर आप सत्संग सुनते थे। हमें पता भी नहीं था कि राणा जी पर सत्यार्थप्रकाश और सत्संग का चमत्कार हो चुका है। सन् 1994-1995 में श्री अनूप सिंह जी, श्री ईश्वरदयालु आर्य व श्री राजेन्द्र कुमार आदि के हाथों में आर्यसमाज का संचालन आया। प्रा. अनूप सिंह जी आर्यसमाज के सुवक्ता एवं ऋषि भक्त थे। आपने राणा जी से आग्रह कर उन्हें मंच पर बैठ कर प्रवचन देने के लिए कहा। लोगों ने पहली बार उनका प्रवचन सुना तो सब आश्चार्यान्वित हुए। उसके बाद इन विद्वान ऋषि भक्तों के कार्यकाल में राणा जी ने आर्यसमाज सहित नगर में अनेक स्थानों पर आयोजित सत्संगों में भी प्रवचन कराये। सन् 1997 में हिण्डोन सिटी में आयोजित पं. लेखराम बलिदान शताब्दी समारोह में भी आप हमारे साथ वहां गये थे और वहां आपका सम्बोधन भी हुआ था। इस कार्यक्रम में कैप्टेन देवरत्न जी, स्वामी सुमेधानन्द सरस्वती, प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी तथा श्री अरूण अबरोल जी आदि आर्य नेता पधारे थे। राणा जी वक्ता के साथ एक कवि भी हैं। आपकी रैफेल होम में दसग्दस वर्गफीट की एक कुटिया है जिसमें आप अपने परिवार सहित रहते आ रहे हैं। इस कुटिया में देश के राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी, पूर्व राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद की धर्मपत्नी बेगम आबिदा अहमद भी आपसे आकर मिले हैं। पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीएस अब्दुल कलाम ने भी रैफेल होम के एक कार्यक्रम में राणा जी की उन पर एक कविता को सुनकर प्रसन्न होकर उनकी पीठ थपथपाई थी।
आज हम आर्यसमाज के एक पुराने 85 वर्ष की आयु वाले सदस्य श्री विनय मोहन सोती जी से भी मिले। इस आयु में भी आप स्वस्थ हैं, गुरुकुल के उत्सव में अपने पुत्र के साथ प्रत्येक वर्ष आते हैं और गुरुकुल को दान देते हैं। आज प्रश्न करने पर आपने बताया कि मैं अपने सभी कार्य स्वयं करता हूं। प्रातः वायु सेवन के लिए भी जाता हूं। सन्ध्या करता हूं और सत्यार्थप्रकाश का पाठ भी करता हूं। आचार्य धनंजय जी और हमें आपने आशीर्वाद दिया। आपने कहा कि इस आयु व अवस्था में मुझे किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। मैं पूर्ण प्रसन्न और अपने जीवन से सन्तुष्ट हूं।
श्री सोती जी के बाद हम आर्यसमाज के एक 86 वर्षीय वयोवृद्ध सदस्य श्री ईश्वर दयालु आर्य व उनके परिवार जनों से मिले। श्री ईश्वर दयालु आर्य जी फेस बुक पर भी सक्रिय हैं। आपके साथ बैठकर हमने आर्यसमाज के विषय में लम्बी चर्चायें की और जलपान किया। आपने गुरुकुल के लिए एक अच्छी धनराशि दान में दी। आपने उत्सव में आने का आश्वासन भी दिया। श्री ईश्वर दयालु आर्य के छोटे पुत्र श्री सुधांसु आर्य भारतीय सेना में कर्नल है। वह इस वर्ष अक्तूबर के महीने में सेना से सेवानिवृत हो रहे हैं।
इसके साथ हम एक अन्य घटना का उल्लेख भी करना चाहते हैं। आज जब हम एक आर्य बन्धु श्री ललित मोहन आर्य जी के निवास पर जा रहे थे उनके निवास से पूर्व हमने एक दुकान पर ‘आर्य सिलाई भवन’ नाम का बोर्ड लगा देखा। आचार्य धनंजय जी ने इसे देखकर उत्सुकता प्रदर्शित की। हम समझ गये और उस दुकान के स्वामी जो 63 वर्ष की आयु के श्री वेदप्रकाश आर्य हैं, उनसे मिलकर आर्य शब्द के विषय में पूछताछ की। उन्होंने बताया कि उनके पिता श्री रामचन्द्र आर्य थे। वह आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के सत्संगों में जाया करते थे। सन् 1984 में उनका देहान्त हुआ। हम कभी कभार आर्यसमाज जाया करते हैं। श्री वेदप्रकाश आर्य के दो पुत्र हैं। विचारधारा से यह व्यक्ति व इनका परिवार आर्यसमाजी है। यह किसी को बताते नहीं और आर्यसमाज का कोई अधिकारी वा सदस्य इन्हें जानता नहीं। उन्होंने बताया कि उनके निवास से कुछ दूरी पर ही एक आर्यसमाज भक्त श्री मंगल मोहन जी निवास करते हैं। वह वहां से लगभग 7 किमी. दूरी पर आर्यसमाज कौलागढ़ के सत्संग में जाया करते हैं। हमने उन दोनों महानुभावों के लिए निमंत्रण पत्र दिये और उन्हें गुरुकुल पौंधा के उत्सव में आने का अनुरोध किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह गुरुकुल के उत्सव में आयेंगे।
आज हमने लगभग 22 परिवारों से जनसम्पर्क किया। सभी ने प्रसन्नचित्त होकर हमारा आतिथ्य किया। कुछ ने कुछ दान राशि भी प्रदान की। सभी ने उत्सव में आने का आश्वासन दिया। पूरा दिन भ्रमण कर हमने आज के कार्य को सम्पन्न किया। आचार्य धनंजय जी विगत कई दिनों से इसी प्रकार देहरादून के 40 से 42 डिग्री तापक्रम में गुरुकुल प्रेमी परिवारों में जा जाकर लोगों को उत्सव में आने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। इससे पूर्व गुरुकुल के 17 वार्षिकोत्सव हो चुके हैं जो उपस्थिति, आर्य समाज के चोटी के विद्वानों व भजनोपदेशकों की संख्या की दृष्टि से अत्युत्तम कहे जा सकते हैं। उत्सव उत्सव न होकर आर्यो का एक विशाल मेला होता है। भोजन व निवास की उचित व्यवस्था की जाती है। इस वर्ष उत्सव में उत्तराखण्ड के राज्यपाल जी एवं मुख्यमंत्री जी भी पधार रहे हैं। ऋषि भक्त स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में गुरुकुल का उत्सव यहां आने वाले ऋषि भक्तों के लिए तीन दिनों तक निवास का एक उत्तम व सन्तोष उत्पन्न करने वाला सुखद अनुभव होता है। गुरुकुल के उत्सव में वेद पारायण यज्ञ होता है और आर्यजगत के चोटी के वैदिक विद्वानों के उपदेशों सहित भजनोपदेशकों के ईश्वर, वेद, ऋषि दयानन्द एवं आर्यसमाज की महत्ता पर भजन होते हैं। इससे गुरुकुल पौंधा का वार्षिकोत्सव एक सच्चा तीर्थ बन गया है। जो व्यक्ति इस उत्सव में भाग लेता है उसे धर्म वा पुण्य लाभ अवश्य होता है। ओ३म् शम्।
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