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सारा मंच भरा लगता था जब स्वामी दीक्षानन्द जी अकेले ही मंच पर बैठे होते थेः पं. सत्यपाल पथिक

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17 May 18
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सारा मंच भरा लगता था जब स्वामी दीक्षानन्द जी अकेले  ही मंच पर बैठे होते थेः पं. सत्यपाल पथिक वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव 13-5-2018 को सम्पन्न हो चुका है। इस दिवस को आश्रम में 15 हवें स्वामी दीक्षानन्द स्मृति दिवस के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम का बहुत ही प्रभावशाली एवं निपुणता से संचालन कर रहे केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अनिल आर्य जी ने पं. सत्यपाल पथिक जी को इस अवसर पर एक भजन प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। पथिक जी ने भजन प्रस्तुत करने से पूर्व स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती को स्मरण कर कहा कि वह 40 वर्षों तक स्वामी दीक्षानन्द जी के साथ रहे। वह दोनों साथ-साथ प्रचार में जाया करते थे। स्वामी दीक्षानन्द जी जब मंच पर अकेले ही बैठे होते थे तब भी मंच भरा भरा सा लगता था। उनके व्यक्तित्व में आकर्षण था। स्वामी जी में अनेक प्रशंसनीय गुण थे। उनके जीवन से सम्बन्धित मेरे बहुत सुखद व रोचक संस्मरण हैं। इस भूमिका को प्रस्तुत कर आर्यसमाज के प्रचार व ऋषि भक्ति में प्रमुख स्थान रखने वाले गीत व संगीत सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी ने एक भजन सुनाया। इस भजन के बोल थे ‘वैदिक धर्म समर्पित आर्य कैसे होते हैं? लेखराम, श्रद्धानन्द, गुरुदत्त जैसे होते हैं। कथनी व करनी में जिनकी कोई भेद नहीं होता, मिलकर सत्य निभाते दिल में भेद नहीं होता, जैसे अन्दर होते वैसे ही बाहर होते हैं।। लेखराम, श्रद्धानन्द, गुरुदत्त जैसे होते हैं।।’

पथिक जी से पूर्व समारोह में द्रोणस्थली आर्य कन्या गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी का सम्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आयोजित सत्संगों में प्रतिदिन ज्ञान की गंगा बहती है। लोगों में अन्धविश्वास है कि गंगा में स्नान करने से उनके पाप धुलते हैं। बिना ज्ञान की प्राप्ति और सदाचरण से मनुष्य पाप से दूर नहीं हो सकता। एक बार पाप हो जाने पर तो उसका फल भोगना ही पड़ता है। प्रायश्चित से हम उस पाप को भविष्य में न दोहराने का अभ्यास कर सकते हैं। आचार्या जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सुख व शान्ति का जीवन चाहता है। इसके लिए हमें वेद और वैदिक शास्त्रों के मार्ग पर चलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह सारा संसार परमात्मा की उपासना करता है। हमें काम, क्रोध, लोभ व मोह को अपने जीवन से पृथक करना होगा। यह हमारी आत्मा को दूषित करते हैं। हम ईश्वर से इन्हें दूर कर देने की प्रार्थना करें और स्वयं भी प्रयत्नपूर्वक इनसे दूर रहने का संकल्प लेकर उसका अभ्यास करें। आचार्या जी ने कहा कि गुण, कर्म व स्वभाव श्रेष्ठ होने से आर्य महान होता है। हमें आर्यसमाज के संगठन को सशक्त बनाना चाहिये। उन्होंने कहा कि संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है। आचार्या जी ने आर्यों के आठ गुणों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि सत्याचरण, दूसरों के सुखों का ध्यान रखने वाला, सबके दुःख-दर्द बांटने वाला, वृद्धों की सेवा करने वाला तथा बदले की भावना से कार्य न करने वाला व्यक्ति ही आर्य होता है। आर्यों को आर्यसमाज बनाने व वेदों का प्रचार करने की उन्होंने सलाह दी। आचार्या जी ने आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी द्वारा युवकों को समाज में उचित स्थान दिये जाने संबंधी विचारों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आज की युवापीढ़ी में अच्छे संस्कार नहीं हैं। युवा पीढ़ी को समाज से जोड़ने की उन्होंने प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि यदि जड़ों में पानी डालोगे तो पौध लगेगी, पुष्ट होगी व बढ़ेगी। तभी हमारा देश विश्व का गुरु बनेगा। बच्चों को वैदिक धर्मी बनने व बनाने पर उन्होंने बल दिया। आर्यसमाज के संगठन को सुदृण बनाने की बात भी उन्होंने की। मनु के श्लोक ‘एतद्देशस्यप्रसुतस्य ...’ का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि युवाओं को शास्त्रों का ज्ञान दें। उन्होंने कहा कि वेदों के प्रचार व प्रसार से ही भारत विश्व गुरु बन सकता है। इन्हीं शब्दों को बोल कर उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

कार्यक्रम में आरम्भ में श्री मनीष आर्य, रोहतक के दो भजन हुए। पहला भजन था ‘अपनी वाणी में अमृत घोल ओ प्यारे ओम् ओम्। ये बोल बड़े अनमोल ओ प्यारे ओम् ओम्।। सबके मन मन्दिर में रहता कर्मानुसार वह न्याय करता। बुरे कर्म करके जीवन में जीवन को मत रोल, ओ प्यारे ओम् ओम्।।’ श्री मनीष आर्य ने कहा कि लोगों में जोश जगाने वाला भाव आर्यसमाज की ही देन है। उनका दूसरा भजन था ‘जरुरत परिवर्तन की है। परिवर्तन की है जरुरत हित चिन्तन की है।’ इस भजन के बाद हाल के भीतर ही ध्वजारोहण हुआ। इस अवसर पर आश्रम द्वारा संचालित वैदिक तपोवन विद्या निकेतन की छात्राओं ने स्वागत गान प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘स्वागतम् स्वागतम् स्वागतम् करते अर्पित सुकर्म आज हम।’ इसके बाद कुछ छात्राओं ने उत्तराखण्ड की बोली गढ़वाली में स्वरित गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया। इसके बाद मंच पर उपस्थित स्वामी सच्चिदानन्द जी, स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी, मुख्य अतिथि विधायकश्री उमेश शर्मा, भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक, पं. रुहेल सिंह, आचार्या डा. नन्दिता शास्त्री आदि का शाल एवं ओ३म् पट्ट घारण कराकर सम्मान किया गया।

दिल्ली से पधारी बहिन श्रीमती प्रवीण आर्या जी ने एक पंजाबी धुन में एक भजन प्रस्तुत किया। भजन के बोल थे ‘नाम जप ले प्रभु गुण गा ले, प्रभु जी तुझे मिल जायेंगे। प्रभु जी तुझे मिल जायेंगे, नाम जप ले।’ जब भजन गाया जा रहा था तो श्रोता वर्ग के प्रायः सभी लोग भाव विभोर होकर भजन की ताल के अनुसार कर-तल-ध्वनि कर अपनी प्रसन्नता को व्यक्त कर रहे थे। सारे सभागार में इस भजन ने लोगों में उत्साह भर दिया।

समारोह में शास्त्रीय गायन में सुदक्ष श्री सुचित नारंग जी के भजन भी हुए। उनके भजन से भी लोगों में असीम उत्साह उत्पन्न हुआ। पहला भजन था ‘ओ३म् है जीवन हमारा ओ३म् प्राणाधार है। ओ३म् है करता विधाता ओ३म् पालन हार है। ओ३म् सबका पूज्य है सब ओ३म् का पूजन करें। ओ३म् के ही ध्यान से सब शुद्ध अपना मन करें।।’ श्री सुचित नारंग द्वारा प्रस्तुत दूसरे भजन के बोल थे ‘हम आर्य पुत्र हम आर्य श्रेष्ठ यह आर्यसमाज हमारा है। इस आर्य धर्म और आर्य संस्कृति का हर आर्य रखवाला है।।’ इसके बाद स्वामी दीक्षानन्द जी के 15 हवें स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में 8 ऋषि भक्त विद्वानों को शाल, ओ३म् पट्ट, वैदिक साहित्य एवं ग्यारह हजार रूपये की धनराशि देकर सम्मानित किया गया। कुछ नाम हैं डा. कृष्णकान्त वैदिक सम्पादक ‘पवमान’, श्री वेदप्रकाश आर्य, रोहतक, श्री महेन्द्र भाई, दिल्ली, श्रीमती स्वधा आर्या, सुश्री अर्चना पुष्करण, श्री देवेन्द्र शास्त्री आदि। समारोह में मुख्य अतिथि श्री उमेश शर्मा जी की उपस्थिति में द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की छात्राओं द्वारा एक सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया जिसके बोल थे ‘एक तेरी दया का दान मिले एक तेरा सहारा मिल जाये। भवसागर में बहती मेरी नय्या को किनारा मिल जाये।।’

हम दिनांक 13-5-2018 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आयोजित समारोह व इससे पूर्व के चार दिनों के उत्सव का लगभग पूरा वृतान्त अनेक लेखों, वीडीयोज् आदि के माध्यम से फेस बुक के अपने मित्रों के लिए प्रस्तुत कर चुके हैं। लोगों की इन लेखों पर उत्साहवर्धक प्रशंसनीय प्रतिक्रियायें मिली है। हम सभी मित्रों का हार्दिक अभिनन्दन एवं धन्यवाद करते हैं। ओ३म् शम्।

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