वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के दूसरे दिन रात्रि सत्र में आज 10-2-2018 को आर्य भजनोपदेशकों के भजनों के पश्चात स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती तथा पाणिनी कन्या गुरुकुल, वाराणसी की प्रधान आचार्या डा. नन्दिता चतुर्वेदा जी के व्याख्यान हुए। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा हम सबके साथ विराजमान है। स्वामी जी ने कई बार ओ३म् का उच्चारण कराया। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने हमें अनमोल तन दिया है। हम मानव शरीर को नहीं बना सकते। हमारे माता-पिता और गुरुजन भी मानव शरीर को नहीं बना सकते। परमात्मा ने शरीर में सभी आवश्यक अंग प्रत्यंग बनाकर हमें दिये हैं। परमात्मा ने हमें सुनने के लिए कान, चलने के पैर, काम करने के लिए हाथ, विचार करने के लिए मन व बुद्धि तथा बोलने के लिए वाणी आदि सभी प्रकार के साधन प्रदान किये हैं। ईश्वर दयालु है। हमारे शरीरों को अभी भी वही चला रहा है। हम एक दिन में 21,600 बार श्वांस लेते हैं। इन्हें भी परमात्मा ही चलाता है। हृदय की घड़कन चौबीस घंटे घड़कती है। कभी रूकती नहीं है। इसे कौन चलाता है? स्वामी जी ने कहा कि इसे भी हमारा प्रिय परमात्मा ही चलाता है। स्वामी जी ने कहा कि हमारे शरीर में पाचन तंत्र व अन्य सब उपकरण व अवयव काम कर रहे हैं। यह सब परमात्मा की ही व्यवस्था है। भोजन से रस सहित 6 पदार्थ बनते हैं। इन्हें परमात्मा ही बना रहा है। शरीर के भीतर अनेक कामों को सम्पादित करने वाला कारखाना रात दिन चल रहा है परन्तु हमें उसकी आवाज तक नहीं आती। ईश्वर की कितनी अच्छी व्यवस्था है यह।
हम जो नाना प्रकार के भोजन करते हैं उन सभी अन्न, फल व ओषधियों सहित गोदुग्ध आदि पदार्थों को भी परमात्मा ही हमारे लिए बनाता है। स्वामी जी ने प्रश्न किया कि क्या किसान अन्न पैदा करता है? किसान तो मात्र बीज बोता है व फसल की देखभाल करता है परन्तु अन्न को उत्पन्न करने के अन्य सभी काम तो परमात्मा ही करता है। स्वामी जी ने कहा कि किसान नहीं जानते कि कैसे बीज से पौधा उग जाता है और उसमें अन्न के दाने आ जाते हैं। मनुष्य आदि प्राणियों को उनके पूर्व व वर्तमान कर्मों के फल देने सहित सृष्टि के आदि काल में वेदों का ज्ञान देना परमात्मा के काम हैं। परमात्मा ही वायु, जल, अग्नि व आकाश सहित हमारी पृथिवी व समस्त ब्रह्माण्ड को बनाता है। परमात्मा का प्रयोजन है हमें अनेक प्रकार के सुख प्रदान करना। स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति जड़ है। उसे ज्ञान नहीं है। परमात्मा सबको देख रहा है। मैं परमात्मा में हूं। इसे हमें अपनी स्मृति में रखना है। परमात्मा की निकटता को अनुभव करना ही ईश्वर की उपासना है। परमात्मा आत्मा में भी विद्यमान है। आत्मा सूक्ष्म है। सूक्ष्मतम परमात्मा आत्मा के भीतर व बाहर विद्यमान है। स्वामी जी ने कहा कि जल सूक्ष्म है तथा अग्नि जल के परमाणुओं से भी सूक्ष्म है। इसी कारण अग्नि जल के भीतर प्रविष्ट होकर उसे उष्णता प्रदान करती है।
परमात्मा सूक्ष्मतम होने से सूक्ष्म आत्मा के भीतर भी विद्यमान है। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा संसार के सभी पदार्थों में सबसे सूक्ष्म अर्थात् सूक्ष्मातिसूक्ष्म है। वह सदा सदा का हमारा साथी है। हम आत्मा तो परमात्मा की तुलना में तुच्छ भी नहीं हैं। नासा द्वारा प्रदत्त जानकारी के हवाले से स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारी गलैक्सी में 3 अरब सौर मण्डल हैं जिन्हें वैज्ञानिकों ने अपने यंत्रों व ज्ञान से जाना है। यह ब्रह्माण्ड ऐसी अनेक गलैक्सियों से युक्त होने के कारण अनन्त व असीम है। परमात्मा मनुष्य आदि सभी योनियों में प्राणियों को बनाता व उनका पालन करता है। परमात्मा ने अनेक पदार्थ व जीव-जन्तुओं की योनियां बनाई हैं। सृष्टि में अनेक चक्र चल रहे हैं जिन्हें परमात्मा चला रहा है। हम शरीर व दूसरों का मुख देखकर एक दूसरे को जानते व पहचानते हैं परन्तु हमने किसी की आत्मा को कभी नहीं देखा। हम अपने निकटतम परिवारजनों की आत्मा को भी नहीं देख सकते व जान सकते हैं। स्वामी जी ने कहा ‘वाह परमात्मा क्या कमाल है तेरा?’ हम इस मनुष्य योनि में आये तो हमें अपने पूर्वजन्म के परिवारजनों व मित्रों का किंचित भी ज्ञान नहीं रहा, सब विस्मृत हो गया। पूर्वजन्म की सभी बातों को हम भूल गये, इसमें भी तेरी हम पर बहुत बड़ी कृपा है।
हमारे पास जो धन व दौलत है वह सभी यहीं छूट जाने वाली है। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य जीवन में हमारी आत्मा का शुद्धिकरण कितना हुआ है, यह महत्वपूर्ण है। संसार में रहते हुए आप अपने आप को संसार से अलग रखिये। इसमं लिप्त न हों। स्वामी जी ने कहा कि जब हम संसार से चले जायेंगे तो हमारा नाम आदि भी कुछ समय में ही खत्म हो जायेगा। स्वामी जी ने कहा कि सृष्टि के आदि काल से इस सृष्टि में कितने बड़े बड़े ऋषि महात्मा राजाधिराज हुए होंगे, उन सबके नाम क्या हमें याद हैं? उन्होंने कहा कि हमारा इस जन्म का नाम व कार्य भी एक दिन सब भूल जायेंगे। स्वामी जी ने कहा कि जीवन का मुख्य लक्ष्य सभी प्रकार के दुःखों से छूट जाना है। दुःखों से छूट कर हमकों मोक्षानन्द प्राप्त करना है। ईश्वर में ही सुख है और आपको सुख ईश्वर में ही मिलेगा। ईश्वर सदा, हर क्षण व हर पल हमारे साथ रहता है। अन्तरतम परमात्मा हमारे साथ रहता है। स्वामी जी ने उदाहरण देकर बताया कि घुंवे को देखकर अग्नि का ज्ञान होता है। उन्होंने कहा कि अनुमान प्रमाण भी सच्चा होता है। बाढ़ का कारण कहीं दूर वर्षा होना या किसी बांध आदि का टूट जाना होता है। अनुमान से हम सब परमात्मा को तो जानते ही हैं। स्वामी जी ने कहा कि आंख प्रकृति का रूप दिखाती है। परमात्मा प्रकृति का नियन्ता है। जड़ होने के कारण प्रकृति की ईश्वर तक पहुंच नहीं है। परमात्मा नित्य है और मैं भी नित्य हूं। इस दृष्टि से हम दोनों सजातीय हैं। परमात्मा की अनुभूति आत्मा करती है। स्वामी जी ने कहा कि जब हम सोने जाते हैं तो उस समय हमें अपना नाम, शिक्षा व अन्य सभी बातें स्मरण नहीं रहती। यदि रहें तो नींद नहीं आयेगी। सभी कुछ भुलाने पर हमें नींद का सुख मिलता है।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारा काम परमात्मा को प्राप्त करना है। परमात्मा से अधिक संसार की कोई वस्तु हमें सुलभ नहीं है। परमात्मा की प्राप्ति से कठिन भी कोई काम नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि मैं शरीर नहीं अपितु शरीर से भिन्न हूं व शरीर से रहते हुए भी एक पृथक सत्ता हूं। आत्मा में ही परमात्मा का साक्षात्कार होता है। गुणों से गुणी को जाना जाता है। आनन्द का गुण परमात्मा का निज व स्वाभाविक गुण है। हमें सुख व आनन्द परमात्मा से ही मिल सकता है। विद्वान संन्यासी स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने कहा कि परमात्मा सच्चिदानन्द आदि गुणों से युक्त है। जब हम परमात्मा के आनन्द को भली भांति अनुभव कर लेंगे तो हम कह सकेंगे कि हमने परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया है। परमात्मा ज्ञानस्वरूप है। स्वामी जी ने प्रेरणा की कि रोज परमात्मा रूपी ज्ञान व आनन्द के सागर में डुबकी लगाईये। परमात्मा हमारा ऐसा सहायक है कि उसकी उपासना व उसके गुणों को धारण करने से हमारे विरोधी भी सहायक बन जाते हैं। भगवान हम सबको शक्ति व सद्बुद्धि दें। परमात्मा हम सबका मंगल ही करेंगे। यह कहकर स्वामी जी ने अपनी वाणी को विराम दिया।
स्वामी जी का यह व्याख्यान हमने यथासम्भव पूरा देने का प्रयास किया है। डा. आचार्या नन्दिता शास्त्री चतुर्वेदा जी का व्याख्यान देने से यह लेख अधिक विस्तृत हो जायेगा। उसे इसके बाद पृथक से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करेंगे। वैदिक साधन आश्रम तपोवन का मंच आज अनेक विद्वानों व आर्य भजनोपदेशकों से सुशोभित एवं देदीप्यमान हो रहा था। वातावरण शान्त था तथा सभी ईश्वर के आनन्दरस का अनुभव कर रहे थे। शान्तिपाठ के साथ रात्रि सत्र का शयन हुआ। हम आशा करते हैं कि हमारे पाठक मित्र स्वामी जी के उपर्युक्त व्याख्यान को पसन्द करेंगे। ओ३म् शम्।
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