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धर्मनिरपेक्षता की बातें हिन्दुओं के लिये ही क्यों

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22 Mar 17
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हिन्दुस्तान ही विश्व में अकेला ऐसा देश है जहा बहुमत में रहते जन के प्रतिनिधि के राजनीति के उच्य स्थल पर आना हमेशा ही विवेचना का विषय बना दिया जाता है। कितना आश्चर्य है लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू होने के बावजुद एक हिंदू प्रचारक के तख्त पर बैठने पर देश के कई बुद्धिजीवियों और राजनेताओं के मन में भुचाल सा आ गया है। उनके अनुसार हिन्दू होने का मतलब हर धर्म का आदर करने वाला और जो हिन्दू नही है वह केवल अपने धर्म को कट्टता से पालन करने वाला होना चाहिए।
वैसे देश के कई बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को हिंदू होना हमेशा कटोचता रहा है पर फिर भी वह हिन्दुओ पर राज करने की चाहत में हिन्दू धर्म का चौंगा ओडे तब तक पड़े दिखते है जब तक उनके विरोध में कोई हिन्दू संगठन खड़ा न हो और उनके हिन्दुओं को कोसने का मौका न मिल जाये। अल्पसंख्यकों की चिंता में धर्मनिरपेक्षता की बात केवल हिन्दुओं को सिखाने वाले अपने इतिहास से भी परिचित नही कि उनके पुर्वज कौन थे। धर्म की कट्टता से ही देश टूटते है। जब लोगो को देश से ज्यादा धर्म पर विश्वास होता है तो वे क्रुर होती है खुद के मजहब के लोगो को भी मारने में वे संकोच नही करते फिर भी अन्य धर्म को ज्ञान देने में बाज नही आते है।
हिंदू की उदारता का हमेशा ही अन्य धर्मावल्मबियों ने फायदा उठाया है। विकास की बात कर लोगो को आगे बढ़ने की पहल करने के बावजुद दर्द सहते सबको साथ ले कर चलने की पहल करते हिन्दुओं को कोसने में हमेशा से ही लोगो का समूह खड़ा रहता है और अपनी ही राग में जीवन जीता रहता है। यह हिन्दू धर्म की ही खासियत है कि वह विरोधियों की बाते ही नही सुनता उनके साथ रच-बस जाता है और अपने धर्म को भूल कर भी जीना जानता है। पर इस बार देश की राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुविकरण के लिये लोगो को मौत देते लोगो को चुनावी ध्रुविकरण परेशान कर रहा है।
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