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“ऋषिभक्त श्री ललित मोहन पाण्डेय विषयक हमारे कुछ संस्मरण”

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20 Mar 17
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ओ३म्
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी हमारे पुराने मित्र हैं। लगभग 40 वर्ष से अधिक समय से हम परस्पर परिचित हैं। आप भी आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सदस्य रहें और हम भी। आरम्भ से ही हमारी निकटता रही है। हम प्राय मिलते रहते हैं और जब भी अवसर होता है तो एक दूसरे के निवास स्थान पर आते जाते रहते हैं। हमारी भेंट का उद्देश्य एक दूसरे के हालचाल जानने के अतिरिक्त आर्यसमाज के सिद्धान्तों व संगठन से जुड़ी चर्चाओं सहित देश व समाज की स्थिति पर विचार करना होता है। जब भी मन करता है हम परस्पर फोन पर भी चर्चा कर लेते हैं। आज भी हमने अनेक विषयों पर लम्बी वार्ता की। ज्ञान व जानकारियों के आदान प्रदान से दोनों को ही लाभ होता है। विगत दिनों हमने आर्यसमाज के दो ग्रन्थ मंगाये जिनमें एक पं. गंगा प्रसाद उपाध्याय जी की मनुस्मृति थी और दूसरा ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश कवितामृत’ था। प्रथम ग्रन्थ की 6 व द्वितीय की 5 प्रतियां प्रकाशक व साहित्य प्रचार संस्था से प्राप्त की थी। इसका एक सैट पाण्डेय जी लिया। पाण्डेय जी से हमें उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायक विचार मिलते रहते हैं। प्रायः अपने अपने जीवन की सभी बातें हम एक दूसरे से कर लेते हैं। पाण्डेय जी की ही तरह हमारे एक सुहृद मित्र श्री आदित्यप्रताप सिंह हैं जो हमारे सुख-दुःख व हितों का ध्यान रखते हैं। सप्ताह में एक बार अवश्य मिलते हैं। हमारे निवेदन पर वह इस वर्ष ऋषि जन्म भूमि टंकारा भी गये थे। इससे पूर्व वह कम से कम 10 बार टंकारा जा चुके हैं। इस समय उनकी अवस्था 78 वर्ष है फिर भी प्रेम व स्नेहवश वह 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित अपने निवास से पैदल हमारे निवास आते हैं और इतनी दूरी वापिस जाने में भी तय करते हैं। हम उन्हें अपने दो पहिया वाहन से घर छोड़ने की बात करते हैं परन्तु वह टाल जाते हैं। उनकी इस मित्र भक्ति को देखकर हम गदगद हो जाते हैं। ऐसे हमारे अनेक मित्र हैं। पाण्डेय जी का स्थान अपना अलग ही है।

श्री ललित मोहन जी ऋषि भक्त है।योगाभ्यास में उनकी विशेष प्रवृत्ति है। अपने जीवन में वह स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती, योगधाम, हरिद्वार से निकट से जुड़े रहे हैं। आर्यसमाज के अन्तर्गत योग में प्रवृत्त अनेक योगाभ्यासियों के बारे में आपको ज्ञान हैं। एक बार आपने हमारा परिचय देहरादून के ही श्री चरण सिंह जी नामी वानप्रस्थी व्यक्ति से कराया था जो अपने जीवन मे सरकारी सेवा में उच्च अधिकारी थे तथा सेवा निवृत्त होकर योगाभ्यास में प्रवृत्त हो गये थे। आप नित्यप्रति यज्ञ भी करते थे और चार-पांच घंटे की निद्रा लेने के अतिरिक्त शेष समय में ईश्वर के ध्यान व स्वाध्याय में ही लगे रहते थे। पाण्डेय जी एक बार हमें उनके निवास पर ले गये थे। तब वह वानप्रस्थी थे और काषाय वस्त्र धारण करते थे। उस दिन आपने मौन व्रत रखा हुआ था। आरम्भ में उनके पुत्र ने हमें मिलने से यह कह कर मना कर दिया था कि उनका मौन व्रत होने से वह मिल नहीं सकेंगे। हमारे इस आग्रह कि हम वार्ता नहीं करेंगे, दर्शन करने आयें हैं व दूर से दर्शन कर ही सन्तुष्ट हो जायेंगे। यह बात उनके पुत्र द्वारा उन्हें कही गई तो वह मिलने के लिए तैयार हो गये थे। हम दोनों मित्रों को बैठक में बैठाया गया। वह बैठक में आये और हमें आसान देकर आप भी हमारे निकट एक आसन पर बैठ गये। तत्पश्चात आपने बोलकर ईश्वर से प्रार्थना की और अतिथियों का सत्कार करने के लिए मौनव्रत तोड़ने के लिए ईश्वर से क्षमा प्रार्थना की थी। तब हम लगभग 1 घंटा व कुछ अधिक उनके सान्निध्य में रहे थे। इस अवसर पर अनेक चर्चाओं में मुख्य चर्चा ऋषि दयानन्द व ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना विषयक बातों पर हुई थी। ईश्वर की स्तुति व प्रार्थना कैसे करें, इसका स्वरूप उन्होंने प्रार्थना करके प्रस्तुत किया था। निरन्तर धाराप्रवाह व ईश्वर के अनेक विशेषणों का प्रयोग करते हुए प्रार्थना करते जा रहे थे जिसे देख कर हम हतप्रभ रह गये थे। इस भेंट से पूर्व व पश्चात हमें उन जैसा महात्मा नहीं मिला था। हम अनुमान करते हैं कि वह आर्यसमाज में ऐसे संन्यासी हैं जिन्होंने शायद् ईश्वर साक्षात्कार कर रखा है। वर्तमान में वह आर्य वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम, ज्वालापुर (हरिद्वार) में रहते हैं और स्वामी केवलानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

एक बार पाण्डेय जी ने हमें अपने एक पुराने योगाभ्यासी वानप्रस्थी बन्धु अमर मुनि जी से भी मिलाया था। हम लोग लगभग तीन-चार वर्ष पहले वैदिक साधन आश्रम तपोवन के ग्रीष्मोत्सव पर मिले थे। आपने भी हमें लगभग डेढ़ घंटे तक अपनी योग विषयक दिनचर्या और उपलब्धियों के बारे में बताया था। हमने वीडियो रिकार्डिंग की थी परन्तु एक घंटे की अवधि से अधिक हो जाने के कारण वह नष्ट हो गई थी। हमारा जो मोबाइल था उसमें एक घंटा व उससे कम अवधि की वीडियों ही एक बार में बन सकती थी। महात्मा अमर मुनि जी स्वामी दिव्यानन्द जी के शिष्य रहे हैं। सम्प्रति आप दिल्ली के आस पास रहते हैं। वयोवृद्ध हैं। कई कई घण्टों तक ध्यान में बैठते हैं। उस वीडियों के नष्ट हो जाने का हमें दुःख हैं अन्यथा हम उसके कुछ भाग व पूरा वीडियों ही अपने मित्रों से साझा करते हैं। उस वीडियों के नष्ट होने के बाद हमने दूसरा वीडियों बनाया था जो हमारे कम्प्यूटर में कहीं उपलब्ध है। पहली वीडियों की बातें मुख्य थी जबकि दूसरी वीडियों की बातें कम महत्वपूर्ण हैं। एक बार वह वीडियो देखकर उसमें यदि हमें प्रस्तुत करने योग्य कुछ लगा तो उसे फेस बुक पर प्रस्तुत करेंगे।

पाण्डेय जी ने हमें स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी से भी एक बार मिलाया था। उस साक्षात्कार पर एक आलेख हम यथासमय, लगभग 10 माह पूर्व, फेस बुक पर डाल चुके हैं। स्वामी दिव्यानन्द जी ने उस अवसर पर बताया था कि एक बार वैदिक साधन आश्रम तपोवन की पहाड़ियों पर स्थित वनाच्छादित आश्रम में कई घंटे की समाधि लगी थी।

पाण्डेय जी देहरादून में ही निवास करते हैं, अतः माह में कई बार हमारी परस्पर बैठक हो जाती है और हम आर्यसमाज व योग विषयक चर्चायें कर लेते हैं। इस प्रकार की अधिकांश चर्चायें हम या तो पाण्डेय जी या श्री कृष्णकान्त वैदिक शास्त्री जी से ही कर पाते हैं। आप दोनों को आर्यसमाज व वैदिक सिद्धान्तों का अच्छा ज्ञान है। वैदिक जी तो अध्ययन व लेखन आदि में विशेष रूचि रखते हैं। आपका पुस्तकालय भी आर्य साहित्य से समृद्ध है। ऐसे मित्रो का होना हमारे लिए प्रसन्नता का कारण हैं।

-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121




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