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भाव के भूखे हैं, भगवान

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10 Feb 18
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उदयपुर । मन बडा चंचल है जो मनुष्य को भटकाता है। इसे भक्ति के माध्यम से नियंत्रण में रखा जा सकता है। मन पर विजय प्राप्त करना ही जीवन की सबसे बडी सफलता है।सुसंगति सदैव ऊंचाइयों की ओर ले जाने में मददगार होती है जबकि कुसंगति मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है। जीवन का उद्देश्य सेवा के साथ परोपकारी होना चाहिए।यह बात शनिवार को नारायण सेवा संस्थान की ओर से दिव्यांगों की निःशुल्क चिकित्सा के लिए धार (म.प्र) में आयोजित ‘‘श्रीमद् भागवत कथा’’ के दूसरे दिन कथा वाचिका राधा स्वरुपा जया किशोरी ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान किसी व्यक्ति या वस्तु को नहीं देखते, वो सिर्फ भाव देखते हैं। भाव से प्रभु को भजने वाले का बेडा पार होता है। श्रीमद् भागवत कथा वृद्धों तथा प्रौढों की बजाय युवा शक्ति के लिए अधिक फलदायी है। यदि जीवन में बडा बनना है तो दूसरों को कभी भी नीचा मत दिखाओ। जो दूसरों को नगण्य समझते हैं वह जीवन में कभी भी सफलता हासिल नहीं कर सकते। कार्यऋम का सीधा प्रसारण संस्कार चैनल पर किया गया। संचालन कुंज बिहारी मिश्रा ने किया।


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