उदयपुर, माइनिंग इंजीनियर एसोसियेशन व सी.टी.ए.ई. उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में ’’बजरी खनन-समस्या व समाधान’’ पर तकनीकी वार्ता का आयोजन सीटीएई कॉलेज के खनन अभियांत्रिकी विभाग में किया गया। वार्ता में माइनिंग इंजीनियर एसोसियेशन के सदस्य, सी.टी.ए.ई. कॉलेज के माइनिंग अभियांत्रिकी संकाय के छात्र, खनन व्यवसायी व खान एवं भू-विज्ञान विभाग के अधिकारी व अन्य उद्योगों से कुल 150 प्रतिभागी शामिल हुए।
तकनीकी वार्ता में खान एवं भू-विज्ञान विभाग के अतिरिक्त निदेशक (खान) श्री एन. के. कोठारी व श्री एम. एस. पालीवाल तथा एमईएआई के वरिष्ठ सदस्य श्री वाई. सी. गुप्ता ने प्रजेन्टेशन से प्रासंगिक जानकारी दी। प्रजेन्टेशन में बताया कि वर्ष 1986 से पूर्व, बजरी खनन के लिए विभाग द्वारा परमिट जारी किये जाते थे व 1986 से दिनांक 21.10.2013 तक विभाग द्वारा पूर्व में जिला बीकानेर को छोडकर सम्पूर्ण राजस्थान में एम.एम.सी.आर., 1986 के तहत खनिज बजरी (रिवर सेन्ड) पर अधिशुल्क एवं परमिट शुल्क की वसूली ठेकों / विभागीय नाकों के माध्यम से की जाती थी। बीकानेर जिले में बजरी पेलियो चेनल में उपलब्ध है न कि नदी में इसलिए यहॉ बजरी के खनन पट्टे अन्य खनिजों के खनन पट्टों की तरह ही आवंटित किए जाते हैं।
पर्यावरण अनुमति प्राप्त कर खनन पट्टे स्वीकारने का सुझाव
सर्वोच्च न्यायालय दीपक कुमार व अन्य बनाम हरियाणा राज्य में दायर एस.एल.पी. में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 27.2.2012 को पारित आदेश के क्रम में खनिज बजरी के खनन पट्टे नदी में स्ट्रेचवाइज जारी किये जाने, नदी में खनन 3 मीटर की गहराई से अधिक नहीं होने एवं नदी में पुल, एनिकट व अन्य स्ट्क्चर से सुरक्षित दूरी छोडकर खनन कार्य किये जाने की शर्तों पर पर्यावरण अनुमति प्राप्त कर खनन पट्टे स्वीकार किये जाने का सुझाव दिया गया।
अस्थाई कार्यानुमति जारी कर खनन की अनुमति के आदेश
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय व पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के क्रम में राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2012 में नियमों में वांछित परिवर्तन कर राज्य में बजरी खनन के लिये 128 प्लॉट चिन्हित कर निविदा की प्रक्रिया की गई, जिनमें से 105 प्लॉट की निविदाएॅ प्राप्त होने पर एल.ओ.आई.जारी की गई। दिनांक 25.11.2013 को 82 एल.ओ.आई. धारकों ने पर्यावरण मंत्रालय (भारत सरकार) में पर्यावरण अनुमति हेतु आवेदन किये जाने के कारण सर्वोच्च न्यायालय में दायर एस.एल.पी. में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इन एल.ओ.आई धारकों को अस्थायी कार्यानुमति जारी कर खनन की अनुमति के आदेश दिये।
सर्वोच्च न्यायालय ने बजरी खनन पर रोक लगायी
दिनांक 16.11.2017 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व आदेश दिनांक 25.11.2013 व दिनांक 27.3.2014 को दी गई खनन की अनुमति को निरस्त किया, जिसके कारण सम्पूर्ण राजस्थान में बजरी खनन बन्द हो गया। उक्त एल.ओ.आई. धारकों द्वारा पर्यावरण स्वीकृति (ई.सी. हेतु) आवेदन किया हुआ है तथा एल.ओ.आई. धारकों को ई.सी. जारी हो चुका है, किन्तु इसमें रिप्लेनिशमेंट (पुनर्भरण) स्टॅडी नहीं होने से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बजरी खनन पर रोक लगा दी।
रिवर सेन्ड के विकल्प की तलाश
इस रोक के पश्चात् राज्य सरकार द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निवेदन किया गया कि जिन खनन पट्टेधारियों अथवा कार्यानुमतिधारी द्वारा पर्यावरण अनुमति प्राप्त की जा चुकी है एवं खनिज बजरी की रिप्लेनिशमेंट (पुनर्भरण) स्टडी की जा चुकी है, उन प्रकरणों में खनन करने की शीघ्रातिशीघ्र अनुमति प्रदान करावें, जिससे कि आम जनता में हो रही असुविधा को दूर किया जा सके। साथ ही उद्योगपति, तकनीकी विशेषज्ञों तथा बजरी खनन से जुड़े व्यक्तियों द्वारा रिवर सेन्ड के स्थान पर अन्य सामग्री के उपयोग की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है।
उक्त तकनीकी वार्ता में श्री एम. एस. पालीवाल एवं श्री वाई.सी. गुप्ता द्वारा बताया गया कि रिवर सैण्ड के भण्डार मांग के अनुपात में कम हैं, अतः इसका व्यावहारिक विकल्प तलाशने की दिशा पुनःचक्रित भवन निर्माण सामग्री, क्वारी डस्ट, मैन्यूफैक्चर्ड सेन्ड एवं सीमेन्ट-कंकरीट के मकानों के स्थान पर लकड़ी व अन्य सामग्री से भवन निर्माण के सुझाव दिये गये।
खनन व्यवसायियों की ओर से उपस्थित रहे श्री दयालाल दया एवं श्री राजेश मूंदड़ा ने बताया कि उनके द्वारा भी मैन्यूफैक्चर्ड सेन्ड के उत्पादन हेतु प्लान्ट लगाये जा चुके हैं, जिससे शीघ्र ही व्यावसायिक उत्पादन आरम्भ होने की संभावना है।
ध्वस्त निर्माण से प्राप्त मलबे से पुनः बजरी व गिट्टी के लिये लगें संयंत्र
वार्ता के दौरान हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के श्री एस.के.वशिष्ट द्वारा जानकारी दी गई कि दक्षिण भारत में मैन्यूफैक्चर्ड सेन्ड का काफी उत्पादन हो रहा है तथा पुनः चक्रित भवन निर्माण सामग्री तैयार करने के लिये नई दिल्ली में आईएलएंडएफएस ;एन्वायरमेंटद्ध दिल्ली द्वारा संयंत्र लगाया हुआ है, जिसमें ध्वस्त निर्माण से प्राप्त मलबे से पुनः बजरी व गिट्टी तैयार की जा रही है। इसी तरह का संयंत्र राजस्थान में भी लगाने के लिये प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
माइनिंग इंजीनियर्स एसोसियेशन ऑफ इण्डिया के सदस्यों द्वारा निकट भविष्य में ‘‘बजरी -वर्तमान स्थिति एवं वैकल्पिक संभावनाएं’’ विषयक एक दिवसीय सेमीनार आयोजित किये जाने का निर्णय लिया गया।
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