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जहाँ सत्य और शुद्धि... वहाँ लक्ष्मी, धन, दान और यक्ष का वास

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19 Jan 18
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 जहाँ सत्य और शुद्धि... वहाँ लक्ष्मी, धन, दान और यक्ष का वास उदयपुर। सोलह श्रृँगार से सजी धजी महिलाएं, हाथों मे फूल और भजन किर्तन करते हुए अन्र्तमन मन और मुख पर सिर्फ भगवान लक्ष्मीनारायण का नाम। नृत्य भी ऐसा की मानों स्वयं माता लक्ष्मी गरबा रास कर रही हो। गरबा रास की ऐसी लय जो करीब 20 मिनट तक ऐसी चली की पांडाल मे मौजूद हर नारायण भक्त खुद को झूमने से नही रोक पाया। गरबा रास मे महिलाएं ऐसी रमी की भजन पूर्ण होने के बाद भी उनका किर्तन चलता ही रहा। माँ लक्ष्मी के गरबा रास का यह प्रसंग शुक्रवार को भुवाणा स्थित आईटीपी गार्डन के नारायणपुरम मे नारायण भक्ति पंथ मेवाड द्वारा आयोजित श्री विष्णुपुराण ज्ञान कथा यज्ञ के पांचवे दिन तब जीवंत हो उठा जब कथा वाचक श्री नारायण भक्ति पंथ के प्रवर्तक संत लोकेशानन्द महाराज ने अपने पांचवे दिन की कथा मे माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु के रासलीला के प्रसंग को सुनाया। प्रसंग के साथ ही पिछले 15 दिनों से गरबा रास की तैयारी कर रही महिलाओं ने भगवान लक्ष्मीनारयण के समक्ष गरबा नृत्य करते हुए अपनी पवित्र भक्ति को प्रस्तुत किया।
शुक्रवार को कथा मे विशेष रूप से महालक्ष्मी महोत्सव का आयोजन किया गया। गरबा रास से पूर्व संत लोकेशनन्द ने पांडाल के मध्य माँ लक्ष्मी का आसन लगवाकर उन्हे बिराजित किया और आरती की जिसके बाद महिलाओं ने महालक्ष्मी की प्रतिमा के इर्द-गिर्द गरबा रास किया।
महालक्ष्मी उत्सव पर संत लोकशानन्द ने भक्तों से कहा कि जहां सत्य और शुद्धि है वहाँ लक्ष्मी, धन, दान और यक्ष का वास होता है। उन्होने माँ लक्ष्मी की पसन्द और नापसन्द को लेकर भक्तों को छोटी - छोटी बातों का ध्यान रखने के लिए कहा। भक्तों को भक्ति के मार्ग पर चलने की सीख देते हुए संतश्री ने मींरा की भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया और कहा कि मींरा ने प्रभु की भक्ति करते हुए कभी यह नही सोचा की दुनिया क्या कहेगी और आज भक्ति के नाम पर मींरा का स्मरण सबसे पहले आता है। उन्होने कहा कि आज कल की नौजवान पीढ़ी व्यसन करने और अन्य गलत संगत के समय यह नही सोचती की लोग क्या कहेंगे तो फिर भगवान की भक्ति और भजन करने से पहले हम यह क्यों सोचे की लोग क्या कहेंगे।
पांचवे दिन की कथा के दौरान संत लोकेशानन्द ने श्री विष्णु पुराण कथा के अंशों मे भगवान विष्णु के पार्षद जय और विजय को सन्कादीत मुनियों के श्राप से राक्षस योनी मे जन्म लेना और भगवान द्वारा विभिन्न अवतार ले उन राक्षसों का उद्धार करना, राम चरित्र, विश्वामित्र के यज्ञ की राम द्वारा रक्षा, शबरी की भक्ति, सीता से विवाह, वनवास, ययाति चरित्र, विभिन्न अवतारों की कथा, वंश परंपरा सहित आदि प्रसंगो का वर्णन किया।
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