उदयपुर । भारत अपने सांस्कृतिक मूल्यों और अपनी सांस्कृतिक विरासत के आधार पर ही इस देश के लिये ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व के लिये मार्गदर्षन करने वाला और प्राचीन संदर्भां में विश्व गुरू बन सकता है। युवा ही भारत को विश्व गुरू बना सकते है। है। हमें अपनी परम्पंराओं, संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। उक्त विचार आज आलोक संस्थान, सेक्टर-11 में आयोजित विशेष सभा में सभी छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुये नारायण पंत के संत लोकेशानंद जी ने कहे।
उन्होंने छात्रों को सम्बोधित करते हुये कहा कि युवा शक्ति फिल्मी सितारों को अपना रोल मॉडल नहीं बनाये युवा महापुरूषों को रोल मॉडल बनाये। सफलता प्रयत्न करने से ही मिलती है। जीवन में यदि सफल होना है तो नियमित रूप से प्रयत्न करने होंगे। छात्र जीवन से ही अच्छी आदतों को अपनाना होगा, भारतीय संस्कृति को अपनाना होगा तभी आगे चलकर छात्र ही भारत को विश्व गुरू बना सकते है।
इस अवसर पर डॉ. प्रदीप कुमावत ने छात्रों को अतुल्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को बताते हुये कहा कि अटक से लेकर कटक तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जिस तरह का स्थापत्य इतिहास और सांस्कृतिक वैभव है वह गर्व करने योग्य है लेकिन उसके सांस्कृतिक संरक्षण की नैतिक जिम्मेदारी भी हम सभी पर है।
उन्होंने कहा कि हमारे इस ज्ञान के साथ-साथ हमारे वेदों, गीता, रामायण जो स्वयं में वैज्ञानिक ज्ञान के भंडार है किसी धर्म विशेष से जोड़कर इन पुस्तकों को नहीं आंका जाना चाहिए । सम्पूर्ण मानवता के ये जो ग्रंथ है वो जीवन जीने की दिशा बताते है ।
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