नरसी भगत की ‘भात’
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16 Jan 18
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उदयपुर । नारायण सेवा संस्थान के लियों का गुडा स्थित सेवामहातीर्थ, बडी में सोमवार को ‘‘नानी बाई रो मायरा’’कथा संस्कार चैनल से सीधे प्रसारित हुईं। इस आयोजन म संस्थान संस्थापक कैलाश ‘मानव’ ने कहा कि कभी किसी की निन्दा नही करनी चाहिए और न ऐसे कटु वचन बोलने चाहिए जिससे किसी को कष्ट पहुंचे। उन्होने कहा कि जो आत्मतत्व को जान जाता है वह परमात्मा को भी सहज रुप में जान लेता है। माया , मोह, ऋोध, लोभ आदी हमारी मानसिक रुग्णता के ही परिचायक है। इनसे बाहर निकलने के लिए इच्छाओं और कामनाओं का त्याग करना होगा । जीवन की सार्थकता भी इसी मे है। उन्होने प्रसंग सुनाते हुए कहा कि प्रसिद्ध कृष्ण भक्त नरसी भगत जन्म से गूंगे व बहरे थे। उनकी दादी की ईश्वर भक्ति से प्रसन्न होकर ठाकुर जी ने सन्यासी के वेश में आकर नरसी भगत के सिर पर हाथ फेरा, जिससे वह बोलने व सुनने लगे। इसके बाद वह ठाकुर जी की सेवा-भजन में लीन हो गए। उन्होंने अपनी भक्ति व विश्वास से ठाकुर जी को प्रसन्न कर उन्हें धरती पर बुला लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें धनधान्य से परिपूर्ण कर दिया। उन्हें इतना धन दे दिया कि उनकी सात पीढियों तक संपन्नता से जीवन गुजार सकती थीं, लेकिन नरसी भगत ने महज एक वर्ष में ही सारा धन निर्धनों, दीन-दुखियों और गरीबों की सेवा में खर्च कर दिया। कुछ समय पश्चात जब उनकी नातिन की शादी का मौका आया और ससुराल पक्ष से लडकी के ननिहाल से ‘भात’ मंगवाने के लिए कुमकुम पत्री में लंबी चौडी मांग आई तब नरसी भगत के घर में देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। नरसी भगत ने सबकुछ ईश्वर पर छोड दिया। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने फिर से नरसी भगत को धनधान्य से परिपूर्ण कर भात की प्रथा को पूरा करवाने में मदद की। संचालन महिम जैन ने किया। वही संस्थान के बडी ग्राम स्थित सेवामहातीर्थ में‘‘अपनों से अपनी बात’’ और दिनबन्धु वार्ता व सत्संग प्रवाह कथा का सीधा प्रसारण आस्था चैनल पर हुआ।
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