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इंदि्रय और मन की अनुभूति है सुख ः मुनि सुखलाल

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17 Jul 17
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उदयपुर । तेरापंथ धर्मसंघ के शासन श्री मुनि सुखलाल ने कहा कि सुख और आनंद में बहुत अंतर है। सुख के साथ जब अध्यात्म का मिलन हो जाता है तो वह आनंद बन जाता है। आज के युग में भौतिक सुविधा से परिपूर्ण लोग हो सकते हैं लेकिन सुखी लोगों की संख्या बहुत कम है।
वे रविवार को बिजौलिया हाउस स्थित तेरापंथ भवन में तेरापंथ धर्मसंघ के स्थापना दिवस पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक के पास पैसा है, सुख-सुविधा है लेकिन आनंद नहीं है क्योंकि अध्यात्म नहीं है। यह राग-द्वेष से सीधे-सीधे जुडा हुआ है। जब तक इससे जुडा रहेगा, आनंद नहीं आ सकता। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान दिया। पदार्थ और इंदि्रय मन में सुख नहीं है। एकांत में चिंतन करें कि मैं क्या हूं, आत्मा में भ्रमण करें। पदार्थ से उपर उठकर विचार करें। अध्यात्म नहीं हे तो आनंद नहीं हो सकता। पृथ्वी पर रहकर सुख की अनुभूति करते हुए मोह को जीत लें।
मुनि मोहजीतकुमार ने कहा कि प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर जाते हैं। ध्यान, गोचरी, लोगों तक पहुंचना हमारी प्रवृत्ति है लेकिन प्रवृत्ति के साथ विचारों की पवित्रता हो तो हम निवृत्ति की ओर पहुंच जाते हैं। अमूमन उद्वेग की स्थिति रहती है जो हमें भटकाए रखती है।
तपोमूर्ति मुनि पृथ्वीराज ने कहा कि सुख कैसे मिले? जिसने चेतना को समझ लिया, उसने सुख को जीत लिया। अपनी आत्मा के भीतर जो है, वह सुख है। आत्मा के अंदर रहता है, वह सुखी है। भावना को पवित्र बनाएं। सम्यक दृष्टि, सम्यक चेतना को महसूस करें।




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