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प्रकृति के अनुपम खजाने की अपूर्व एवं अनूठी सैर,

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21 Oct 16
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प्रकृति के अनुपम खजाने की अपूर्व एवं अनूठी सैर, डॉ. दीपक आचार्य-उप निदेशक (सूचना एवं जनसम्पर्क),उदयपुर उदयपुर, राजस्थान की वादियों के बीच एक ऐसा भी अनुपम वन सौंदर्य से भरा क्षेत्र है जो देश और दुनिया के किसी विश्वस्तरीय वनीय पर्यटन स्थल या अभयारण्य से कम नहीं। जहां अंग्रेजों के जमाने से नैसर्गिक पर्यटन का दौर जारी है।
आम लोगों और सैलानियों की निगाहों से दूर होने की वजह से यह अपेक्षित वैश्विक पहचान भले ही कायम नहीं कर पाया हो, लेकिन अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, अनुपम वन वैभव और रमणीय दर्शनीय स्थलों के मामले में यह दुनिया का अनुपम पर्यटन तीर्थ है जिसे देखते ही हर कोई आश्चर्य, रोमांच और सुकून से भर उठता है।
सुकून का समन्दर लहराता है यहाँ
कुल जमा 475 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पसरे हुए इस पहाड़ी जंगल में वह सब कुछ है जो तन-मन को यादगार एवं अपूर्व सुकून देने वाला है। प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप ने इन्हीं सघन हरियाली भरी वादियों, घाटियों और गुफाओं को विहार स्थल बनाया।
प्रतिध्वनित होती हैं प्रताप की शौर्य गाथाएँ
यहां का जर्रा-जर्रा उस ऐतिहासिक दिवेर के युद्ध का साक्षी है जिसमें महाराणा प्रताप ने अपनी फौज का शौर्य-पराक्रम दिखाते हुए मुगलों को धूल चटा दी थी। इस मायने में यह पूरा इलाका अपने भीतर इतिहास की कई कही-अनकही गाथाओं को भी समेटे हुए है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार हल्दी घाटी युद्ध के छह वर्ष बाद महाराणा प्रताप ने अकबर की छावनी पर धावा बोलकर सेना नायकों सहित पूरी सेना को नष्ट कर दिया। इससे मेवाड़ इलाके में मौजूद अकबर के अनुचरों एवं सेना के भय पैदा हो गया और मेवाड़ के लोगों में जोश का ज्वार फैल गया।
राणाकड़ा घाटी में महाराणा प्रताप एवं अकबर की सेना के बीच 26 अक्टूबर 1582 विजयादशमी को हुए युद्ध में महाराणा की जीत हुई। इसमें सेना के साथ ही आम लोगों ने भी युद्ध में हिस्सा लिया। इस ऐतिहासिक घाटी को कर्नल जेम्स टाड ने मैराथन ऑफ मेवाड़ की संज्ञा दी।
प्रकृति का अनुपम तोहफा
इतिहास, प्रकृति और पर्यटन की जाने कितनी त्रिवेणियां बहाने वाले इस अभयारण्य की स्थिति ‘तीन लोक से मथुरा न्यारी’ वाली ही है। मीलों तक पर्वतीय क्षेत्रों में पसरा हरियाली का यह समन्दर अपने आप में अनूठा और अद्वितीय है। जहाँ प्रकृति ने इतने उपहार लुटाए हैं कि जो यहाँ एक बार आ गया वह बार-बार आने को उत्सुक बना रहता है।
वन विभाग ने इस अभयारण्य को मौलिकता से ओत-प्रोत नैसर्गिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है और अब इसके बारे में आम लोगों को जागरुक करने, देशी-विदेशी सैलानियों में इसके प्रति आकर्षण जगाने के लिए ख़ास प्रयास आरंभ
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