उदयपुर कृषि उत्पादन बढाने के लिए नई आधुनिक तकनीकों क साथ हमें पारम्परिक तरीके भी अपनाने होंगे साथ ही पुराने तरीको प्रभावी बनाने के लिए उस पर रिसर्च भी जरूरी है। इसके लिए आधुनिक साधनों के साथ सामंजस्य की आवश्यकता है। उक्त विचार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग एवं प्रबंध अध्ययन संस्थान की ओर से सोमवार को ’’एग्री बिजनेस मैनेजमेंट एज्युकेशन फोर द इमरजिंग ग्लोबल एग्रीकल्चर एकोनोमी केपीसीटी बिल्डिंग एंड ट्रेनिंग‘‘ विषयक पर आयोजित देा दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार के उद्घाटन के अवसर युनिवर्सिटी अमेरिका के प्रो. एस.पी. सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होने कहा कि वर्तमान में खाद्यान्न की बढती मांग को देखते हुए भारत में भूमि की कम उपलब्धता के कारण हमें मिट्टी उर्वरता पर ध्यान केन्दि्रत करना होगा। कम जमीन कम समय में अधिक से खाद्यान्न का उत्पादन करना होगा। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि वर्तमान में जनसंख्या बढने के साथ पैदावार बढाने की आवश्यकता भी बढती जा रही है। वर्तमान मे किसान पुरानी पद्धति को छोडकर नई पद्धति को अपना रहे है जिससे पुरानी पद्वति विलुप्त होती जा रही है। पुर्व में हाईब्रिड बिज नही होते थे लेकिन नई पद्वति के कारण हाई ब्रिड के बिज भी आ गये है जो पैदावार तो ज्यादा देते है लेकिन उनमें गुणवत्ता नहीं होती है। विशिष्ठ अतिथि बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के प्रो. राजेश सिंह ने कहा कि वर्तमान में कृषि की उन्नति की ओर ले जाने के लिए पुरानी व नई तकनीक को साथ लेकर चलना होगा। खेती के लिए पुरखों द्वारा अपनाई गई तकनीक जरूरी है। हमारे देश में वर्षो से कृषि का व्यवसाय चला आ रहा है जिसका हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से गहरा सम्बंध हैं हमारे देश में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहा हमारे रीति रिवाज एवं त्यौहारेां में कृषि की झलक देखने को नहीं मिलती है। सेमीनार के प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन निदेशक डॉ. मंजू मांडोत ने दिया। विशिष्ठ अतिथि प्रो. एन.एस. राव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ. हीना खान ने किया जबकि धन्यवाद डॉ. निरू राठौड ने दिया। सेमीनार में समस्त विभाग के डीन डायरेक्टर एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
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