उदयपुर| यू पी एस सी, सिविल सर्विसेज 2017 से इंडियन अकॉन्ट्स एंड ऑडिट सर्विसेज में आये 26 आई ए एंड ए एस प्रशिक्षुओं का दल रविवार को उदयपुर पंहुचा । दल में भूटान के दो प्रशिक्षु सहित भारत के विभिन्न प्रान्तों के युवा अधिकारी शामिल थे। दल ने उदयपुर झील तंत्र को पर्यावरणीय ऑडिट के संदर्भ में समझा।
सी ए जी (केग ) के पर्यावरण ऑडिट व सतत विकास प्रशिक्षण संस्थान के पदाधिकारियों अनुपम व पवन के समन्वयन में आये इन प्रशिक्षु अधिकारियों ने स्वयं श्रमदान किया तथा कचरे, खरपतवार , उफनते सीवर मैनहोल, घाटों पर अतिक्रमण को गंभीरता से देखा। दल ने राष्ट्रीय झील संरंक्षण योजना में हुए सुधार कार्यों की जानकारी ली।
प्रशिक्षण सत्र में डॉ अनिल मेहता ने झील प्रबंधन के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया। मेहता ने कहा कि उदयपुर झील संरक्षण योजना वित्तीय ऑडिट की दृष्टि से ठीक हो सकती है, लेकिन पर्यावरण ऑडिट की दृष्टि से यह सफल नही मानी जा सकती है। मेहता ने केचमेंट एरिया सुधार , बांध सुरक्षा, कचरा विसर्जन के खात्मे , पहाड़ो की कटाई पर रोक को झील संरंक्षण के लिए आवश्यक बताया।
डॉ तेज राज़दान ने कहा कि प्रशिक्षु आई ए एंड ए एस युवा अधिकारियों की पर्यावरण पर विकसित समझ से झीले, नदिया, पहाड़ बच सकेंगे। राज़दान ने कहा कि एन एल सी पी का सहारा लेकर झीलों का क्षेत्रफल कम कर दिया गया है । आई ए ए एस ऐसे षडयंत्रो को पकड़े । यदि झील किनारे के सुधार के नाम पर सड़के बना देशी प्रवासी पक्षीयों के आवास उजड़ते हैं तो इसे पर्यावरणीय सुधार नही माना जा सकता है।
तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि संरंक्षण योजनाओं में भारी भरकम निर्माण व बड़ी मशीनों के बजाय जैविक उपचार कम लागत के होकर ज्यादा प्रभावी होते हैं। उन्होंने खरपतवार नियंत्रण में लिए ग्रास कार्प मछलियों की उपयोगिता को समझाया।
नंद किशोर शर्मा ने कहा कि योजनाओं में नागरिक सहभागिता व जनजागृति के लिए वितीय प्रावधान होते है। लेकिन इन पर कुछ कार्य , गतिविधि नही होती है। केवल् खानापूर्ति कर ली जाती है।
दिगम्बर सिंह, पल्लब दत्ता तथा कुशल रावल ने कहा कि झील योजनाओं से जैव विविधता में आये सुधार का आकलन होना चाहिए।
डॉ निष्ठा जैन , रमेश चंद्र राजपूत, द्रुपद सिंह , मोहन सिंह चौहान, रामलाल ने प्रशिक्षु अधिकारियों को पीछोला के घाटों का इतिहास व वर्तमान स्थिति से अवगत कराया।
प्रशिक्षु अधिकारी अजय यशवंत,ओंकार, अभिषेक , लोकेश, प्रोमी, प्रियंका, मोनाली, मोनिषा ने कहा कि संरक्षण योजना क्रियान्वयन उपरांत ऑडिट के बजाय क्रियान्वयन अवधि में ही निरंतर वितीय, भौतिक व पर्यावरणीय ऑडिट होना चाहिए। झील व नदी सुधार में उपयुक्त तकनीक का चयन , नागरिक सहभागिता, निहित सामाजिक व पारिस्थितिकीय उद्देश्यों की प्राप्ति जैसे बिंदू पर्यावरणीय ऑडिट के आयाम होने चाहिए।
प्रशिक्षण कार्यक्रम झील संरक्षण समिति, झील मित्र संस्थान , गांधी मानव कल्याण समिति के तत्वावधान में आयोजित हुआ।
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