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मायावती की जीत क्या सामाजिक न्याय की हार होगी?

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30 Apr 16
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मनुवादी एमके गांधी द्वारा आमरण अनशन को हथियार बनाकर बाबा साहब को कम्यूनल अवार्ड को त्यागने को मजबूर किया गया। दुष्परिणामस्वरूप पूना पैक्ट अस्तित्व में आया। जिसके तहत सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े उन वर्गों को, जिनका राज्य (सरकार) की राय में प्रशासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, प्रशासनिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी। जिसके तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अजा, अजजा एवं ओबीसी को आरक्षण प्रदान किया जा रहा है। जिसका मूल मकसद सामाजिक न्याय की स्थापना करना था।

इसके विपरीत संघ की राजनैतिक शाखा भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा संविधान को धता बताकर आरक्षण प्रदान करने हेतु आर्थिक आधार को आगे बढ़ाया जाकर भाजपा की सरकारों द्वारा राजस्थान और गुजरात में सामाजिक न्याय की हत्या करने की शुरूआत की जा चुकी है। जिसके समर्थन के लिए पासवान, उदितराज और अठावले को भाजपा द्वारा पहले ही अपने साथ मिलाया जा चुका है। मायावती के विरुद्ध जारी आपराधिक मामलों के दबाव के जरिये उसे भी संघ द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन करने को मजबूर किया जा चुका है। संविधान के विरूद्ध जाकर मायावती राज्यसभा में सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की अन्यायपूर्ण मांग कर चुकी हैं।

इस सबके बावजूद भी संविधान में संशोधन के बिना आर्थिक आधार पर आरक्षण को लागू नहीं किया जा सकता। मगर सबसे बड़ा पेच यह है कि राज्यसभा में भाजपा के बहुमत के अभाव में संविधान संशोधन सम्भव नहीं है। राज्यसभा में बहुमत के लिए भाजपा और संघ द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा के अगले आम चुनाव के बाद बदलने वाली तस्वीर का इन्तजार किया जा रहा है।

चूंकि वर्तमान परिदृश्य में राजनैतिक समीक्षकों को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बहुमत में आने के आसार बहुत ही कम नजर आ रहे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव के बाद मुझे निम्न संभावनाएं और आशंकाएं दिखाई दे रही हैं :-
1. उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा को बहुमत मिले जिससे राज्यसभा में बसपा की ताकत बढ़े। मायावती तो सीबीआई जांच के शिकंजे में छूट/ढिलाई मिले और बदले में मायावती अपनी पूर्व घोषित नीति के अनुसार सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिलाने के बहाने संघ/भाजपा के संविधान संशोधन के एजेंडे का समर्थन करे।
2. उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा को बहुमत मिले जिससे राज्यसभा में भाजपा की ताकत बढ़े। जिसके बल पर भाजपा अपने एजेंडे को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करे।
3. उक्त बिंदु एक संघ और भाजपा की पहली आकांक्षा है, क्योंकि बसपा के समर्थन से संविधान में संशोधन करके सामाजिक न्याय की हत्या करने में कथित रूप से दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बसपा की सहमति भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से दूरगामी लाभ का सौदा होगा।
4. उत्तर प्रदेश में बसपा को जिताने के बदले में केंद्र सरकार बसपा सुप्रीमों को सीबीआई से संरक्षण प्रदान करेगी, जिसके प्रतिफल में मायावती अन्य राज्यों में कांग्रेस को हराने के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करके भाजपा को जिताने में योगदान करेगी।
5. संविधान संशोधन के जरिये एक बार यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में जुड़ गया तो आज नहीं तो कल, सीधे नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के मार्फत अजा एवं जजा के आरक्षण का मूल आधार भी आर्थिक किया जाना आसान हो जाएगा। जो संघ का मूल मकसद है। इसके बाद आराक्षण का आधार जाति या वर्ग नहीं बीपीएल कार्ड होगा। जिसे खरीदना आसान होगा। आर्थिक आधार लागू होते ही पदोन्नति का आरक्षण अपने आप ख़त्म हो जाएगा और सामाजिक न्याय एक कल्पना मात्र रह जाएगा।

अत: उपरोक्त संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा में मायावती को जिताना वंचित वर्ग के लिए कितना घातक हो सकता है, यह वंचित MOST वर्ग के लिए समय रहते गंभीर विचार और चिंतन का विषय होना चाहिए।
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी, सब एक समान।।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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