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झांसी जहां गूजती हैं रानी लक्ष्मी बाई के शोर्य की गाथााएं

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26 May 18
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झांसी जहां गूजती हैं रानी लक्ष्मी बाई के शोर्य की गाथााएं उत्तर-प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित झांसी भारत की आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम १८५७ के इतिहास का गवाह है। सुभद्राकुमारी चौहान की ये पंक्तियों [1]बुन्देलखंड का गढ़ माने वाले झांसी के संघर्षशील इतिहास को सटीक परिभाषित करती हैं। 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई [2] ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के स्थान पर उनके विरूद्ध संघर्ष करना उचित समा। वे अंग्रेजों से वीरतापूर्वक लड़ी और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुईं। झांसी नगर के घर-घर में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्से सुनाए जाते हैंघ्घ्झांसी को पौराणिक क्षेत्र बुन्देलखण्ड का प्रवेश द्वार माना जाता है। करीब १५ एकड में फैला झांसी का किला आज भारत सरकार के केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के अधीन है, जहां एक संग्रहालय भी बना दिया गया है। बगरा नामक पहाडी पर स्थित इस किले का निर्माण १६१३ ई. में बुन्देलखण्ड के राजा बीर सिंह जुदेव ने करवाया था तथा बाद में इसमें कई परिवर्तन किये गये और इसे शंकर गढ के नाम से भी बुलाया जाने लगा। किले की ऊँचाई २८५ कि.मी. है। यहां १८५७ ई. में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने एक हजार महिला सैनिकों के साथ युद्ध में भाग लिया था जिसकी गवाही यह किला देता है। किले में दो तरफ रक्षा खाई एवं २२ बुर्जे बनी हैं। नगर दीवार में १० दरवाजे और ४ खिलडकियां बनाई गई हैं। दुर्ग में कडक बिजली तोप, फांसी घर, पंच महल, बारादरी, शंकर गढ तथा मराठा स्थापत्य कला के शिव एवं गणेश मंदिर दर्शनीय हैं। रानी झांसी गार्डन, गुलाम गौस खान, मोती बाई एवं खुदा बक्श के मजारें भी यहां हैं।
झांसी में किले के साथ-साथ रानी झांसी महल महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है। दुमंजिले इस महल में १८५७ की लडाई की रूप रेखा और व्यूरचना तैयार की जाती थी। यहां की दीवारों एवं छतों पर तेज रंगों से वनस्पति एवं जीवजन्तुओं के चित्र बनाये गये हैं। महल में ६ कक्ष हैं जिनमें दरबार महल मुख्य है। यहां अब एक संग्रहालय बना दिया गया है, जहां झांसी की ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ पूरे बुन्देलखण्ड की धरोहर को देखा जा सकता है। चन्देल शासन के समय के अस्त्र-शस्त्र, मूर्तियां, वस्त्र, तस्वीरे, कांस्य, चांदी, सोना एवं तांबे के सिक्कों व मूर्तियों का प्रदर्शन किया गया हैं।
झांसी में महालक्ष्मी एवं भगवान गणेश के मंदिर भी दर्शनीय हैं। भगवान गणेश मंदिर में महाराजा गंगाधर एवं लक्ष्मी बाई का विवाह हुआ था।
ओरछा
झांसी से १८ कि.मी. ओरछा का इतिहास 8वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने इसकी स्थापना की थी। इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी एक मंदिर की है। दरअसल, यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति स्थापना के वक्त यह अपने स्थान से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। वैसे, भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।

जहांगीर महल
बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की यह निशानी ओरछा का मुख्य आकर्षण है। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। तीन मंजिला यह महल जहांगीर के स्वागत में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था। वास्तुकारी से दृष्टि से यह अपने जमाने का उत्कृष्ट उदाहरण है।
राज महल
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यह महल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह ने 17 वीं शताब्दी में करवाया था। राजा बीरसिंह देव उन्हीं के उत्तराधिकारी थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। महल में धर्म ग्रन्थों से जुड़ी तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं।
रामराजा मंदिर[
यह मंदिर ओरछा का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंदिर है। यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि राजा मधुकर को भगवान राम ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपना एक मंदिर बनवाने को कहा।

यह महल राजा इन्द्रमणि की खूबसूरत गणिका प्रवीणराय की याद में बनवाया गया था। वह एक कवयित्री और संगीतकारा थीं। मुगल सम्राट अकबर को जब उनकी सुंदरता के बार पता चला तो उन्हें दिल्ली लाने का आदेश दिया गया। इन्द्रमणि के प्रति प्रवीन के सच्चे प्रेम को देखकर अकबर ने उन्हें वापस ओरछा भेज दिया। यह दो मंजिला महल प्राकृतिक बगीचों और पेड़-पौधों से घिरा है। राय प्रवीन महल में एक लघु हाल और चेम्बर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर[
यह मंदिर 1622 ई. में बीरसिंह देव द्वारा बनवाया गया था। मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है। मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं। चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं जसे वह हाल ही में बने हों। मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी हुई हैं।
चतुर्भुज मंदिर[

राज महल के समीप स्थित चतुभरुज मंदिर ओरछा का मुख्य आकर्षण है। यह मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर ने करवाया था। अपने समय की यह उत्कृष्ठ रचना यूरोपीय कैथोड्रल से समान है। मंदिर में प्रार्थना के लिए विस्तृत हॉल है जहां कृष्ण भक्त एकत्रित होते हैं। ओरछा में यह स्थान भ्रमण के लिए बहुत श्रेष्ठ है।
फूलबाग
बुन्देल राजाओं द्वारा बनवाया गया यह फूलों का बगीचा चारों ओर से दीवारों से घिरा है। पालकी महल के निकट स्थित यह बाग बुन्देल राजाओं का आरामगाह था। वर्तमान में यह पिकनिक स्थल के रूप में जाना जाता है। फूलबाग में एक भूमिगत महल और आठ स्तम्भों वाला मंडप है। यहां के चंदन कटोर से गिरता पानी झरने के समान प्रतीत होता है।
१२३ कि.मी. पर पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण देवगढ तथा १७८ कि.मी. पर खजुराहो ;मध्य प्रदेशद्ध के मंदिर दर्शनीय स्थल हैं।

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