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“गरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में आयोजित तीन दिवसीय गुरुकुल महासम्मेलन सम्पन्न”

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16 Jul 18
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“गरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में आयोजित तीन  दिवसीय गुरुकुल महासम्मेलन सम्पन्न” स्वामी आर्यवेश जी के सभापतित्व में कार्यरत सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली का तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय गुरुकुल महासम्मेलन 6-8 जुलाई 2018 आशातीत सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। इसकी विशेषता यह रही कि लगभग 80 गुरुकुलों के आचार्य व आचार्यायें अपने अपने ब्रह्मचारी व ब्रह्मचारिणियों सहित सम्मलित हुए। आर्यसमाज के अनेक प्रसिद्ध विद्वान व ऋषि भक्त भी बड़ी संख्या में सम्मेलन में सम्मिलित हुए। सम्मेलन के तीनों दिन हरिद्वार में गर्मी अत्यन्त तीव्रता पर थी जिससे लोगों का परस्पर मिलना, प्रवचन देना व सुनना सभी किसी न किसी प्रकार से प्रभावित हो रहा था। सम्मेलन में आर्यसमाज के प्रसिद्ध व प्रमुख प्रकाशक एवं पुस्तक विक्र्रताओं ने भी अपने भव्य स्टाल लगाये थे। विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द दिल्ली, श्री घूडमल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी, रामलालकपूर ट्रस्ट, रेवली, अमरोहा के डा. अशोक कुमार चौहान सहित अमरस्वामी प्रकाशन, गाजियाबाद ने भी इस सम्मेलन में अपने अपने भव्य स्टाल लगाये थे। ऋषिभक्त ऋषिदेव आर्य ने भी पुस्तकों का अपना स्टाल लगाया था। श्री प्रभाकर देव आर्य, श्री अजय आर्य, श्री ऋषिदेव एवं डा. अशोक चौहान आदि अपने अपने स्टालों पर अपने सेवा कर्मियों सहित स्वयं भी उपस्थित थे।

प्रथम दिन 6 जुलाई, 2018 को प्रातः 9.00 बजे से आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई के सान्निध्य व ब्रह्मत्व में चार वेद के शतकों से यज्ञ आरम्भ हुआ। मुख्य यजमान दीनानगर के श्री अरविन्द मेहता व उनकी भार्या श्रीमती मधुर वासिनी जी थीं। मंत्र पाठ के लिए अनेक गुरुकुलों के ब्रह्मचारी उपस्थित थे। यज्ञ का संयोजन डा. रवीन्द्र आर्य जी ने किया। इस अवसर पर श्री नरेशदत्त आर्य जी के भजन हुए। स्वामी आर्यवेश जी ने डा. सोमदेव शास्त्री के विषय में बताया कि वह यज्ञ से प्राप्त होने वाली दक्षिणा का निजी जीवन में उपयोग न कर वेद प्रचार के कार्यों में करते हैं। यज्ञ की समाप्ति पर गाजियाबाद के संन्यास आश्रम के प्रधान स्वामी चन्द्रवेश जी का प्रवचन हुआ। स्वामी चन्द्रवेश जी ने 8 वर्ष की आयु में अपना घर छोड़ा था। उसके बाद वह कभी अपने घर नहीं गये। स्वामी चन्द्रवेश जी ने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना व उसके स्वर्णिम काल पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने ऋषि दयानन्द के शिक्षा संबंधी विचारों को मूर्त रूप देने का कार्य कांगड़ी ग्राम में सन् 1902 में गुरुकुल की स्थापना करके किया था। स्वामी चन्द्रवेश जी ने अपने व्याख्यान में यह भी कहा कि हमें आध्यात्मिकता को अपनाना चाहिये और भौतिकवाद में नहीं फंसना चाहिये। इसके बाद झारखण्ड के स्वामी सवितानन्द जी का भी उपदेश हुआ। स्वामी जी ने कहा कि यदि मनुष्य के पास अर्थ बढ़ेगा तो अनर्थ भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि भौतिकवाद ने मनुष्यों को ईश्वर से दूर कर दिया है। स्वामी जी ने जीवन को सुखी बनाने के लिए अपने बच्चों को गुरुकुलों में पढ़ाने की अपील की।

प्रथम दिन 11.00 बजे ध्वजारोहण किया गया। ध्वजारोहण आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के प्रधान डा. धीरज सिंह जी ने किया। ध्वजारोहण के साथ राष्ट्र गान भी गाया गया। ध्वजारोहण के बाद गुरुकुल परिचय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन के अध्यक्ष गुरुकुल प्रभात आश्रम के आचार्य स्वामी विवेकानन्द सरस्वती जी थे। इस सम्मेलन में आर्यसमाज के विद्वान डा. योगानंद शास्त्री का विस्तृत भाषण हुआ। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि भारत में ब्रेन सर्जरी आजीवक नाम के चिकित्सक वा वैद्य ने की थी। वह सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे। वह तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़े थे। सम्राट चन्द्रगुप्त ने उनका सम्मान किया था और उनके लिए प्रयोगशाला व विद्यालय स्थापित कराया था। इसके बाद गुरुकुल के आचार्य व आचार्यों ने अपने अपने गुरुकुल का संक्षिप्त परिचय दिया। गुरुकुल शिवगंज की आचार्या धारणा जी ने कहा कि उनके गुरुकुल को स्थापित हुए 20 वर्ष हो गये हैं। गुरुकुल में आर्ष शिक्षा प्रणाली से शिक्षा दी जाती है। गुरुकुल की छात्रायें अन्य स्थानों पर शास्त्रीय प्रतियोगिताओं में जाकर भाग लेती हैं। उनकी छात्रायें गुरुकुल में वेद, वेदांग, उपनिषद आदि अनेक शास्त्रों की अध्ययन करती हैं। आचार्या सूर्या देवी अध्ययन में छात्राओं का मार्गदर्शन करती हैं। इसी प्रकार से अन्य सभी गुरुकुलों के आचार्य व आचार्याओं ने अपने अपने गुरुकुल का परिचय सम्मेलन में दिया। गुरुकुल परिचय सम्मेलन को स्वामी धर्मानन्द सरस्वती, उड़ीसा तथा गुरुकुल महासम्मेलन के अध्यक्ष स्वामी प्रणवानन्द जी ने भी सम्बोधित किया। परिचय सम्मेलन के अध्यक्ष स्वामी विवेकानन्द सरस्वती ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वामी दयानन्द जी ने घोषणा की थी कि संस्कृत विश्व की सर्वप्रथम भाषा है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वामी दयानन्द विश्व में भौतिक मन व अभौतिक आत्मा के प्रथम मनोचिकित्सक थे। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द जी ने लोगों के मन की चिकित्सा कर उनके मन व आत्मा के दोषों को दूर किया।

अपरान्ह 4.00 बजे से गुरुकुल उद्घाटन समारोह हुआ जिसमें स्वामी रामदेव जी और मेघालय के राज्यपाल ऋषिभक्त श्री गंगा प्रसाद जी के मुख्य सम्बोधन हुए। कार्यक्रम के आरम्भ में स्वामी रामदेव जी के द्वारा दीप प्रज्जवलन हुआ। स्वामी आर्यवेश जी ने अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर स्वामी रामदेव जी और राज्यपाल महोदय का सम्मान भी किया गया। गुरुकुल की कन्याओं द्वारा स्वागत गीत हुआ। स्वामी रामदेव जी से पूर्व स्वामी विवेकानन्द सरस्वती, मेरठ का सम्बोधन हुआ। स्वामी यतिश्वरानन्द और दक्षिण अफ्रीका आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री राम विलास जी के सम्बोधन भी हुए। स्वामी रामदेव जी ने एक लम्बा सम्बोधन दिया। उन्होंने आरम्भ में कहा कि यदि महर्षि दयानन्द और स्वामी श्रद्धानन्द जी न होते तो स्वामी रामदेव भी न होते। अपने लम्बे सम्बोधन ने उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर विचार प्रस्तुत किये। उनके भाषण के एक एक शब्द में उनकी ऋषि भक्ति और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के प्रति प्रेम दृष्टिगोचर हो रहा था। स्वामी राम देव जी ने पं. सत्यपाल पथिक जी का एक भजन ‘सूरज बन दूर किया पापों का घोर अन्धेरा वो देव दयानन्द मेरा’ प्रस्तुत किया। उन्हें स्मरण आया कि उन्होंने कहीं पथिक जी को देखा है। मंच से ही अपने संबोधन के मध्य उन्होंने पथिक जी को मंच पर आने की प्रार्थना की। स्वामी जी ने उनके परोपकारमय जीवन और भजनों की प्रशंसा की और उन्हें एक लाख की धनराशि से सम्मानित करने की घोषणा की। अगले ही दिन सम्मेलन के मंच से ही आचार्य बाल कृष्ण जी ने उन्हें एक लाख की धनराशि देकर सम्मानित किया। स्वामी रामदेव जी के बाद मेघालय के राज्यपाल महोदय का व्याख्यान हुआ। उन्होंने ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पर अपने सारगर्भित व प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किये। रात्रि 8.00 बजे से 10.00 बजे तक वैदिक संस्कृति सम्मेलन आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के मंत्री स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी की अध्यक्षता में हुआ। सम्मेलन में अनेक विद्वानों ने वैदिक धर्म और संस्कृति के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किये।

सम्मलेन के दूसरे दिन 7 जुलाई, 2018 को प्रातः 9.00 बजे से यज्ञ हुआ। यज्ञ के बाद श्री सहदेव बेधड़क जी के भजन हुए। अनेक विद्वानों सहित आर्यवेश जी ने भी श्रद्धालु ऋषि भक्तों को सम्बोधित किया। पूर्वान्ह 11.00 बजे से गुरुकुल शिक्षा प्रणाली सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता पतंजलि योगपीठ के आचार्य बाल कृष्ण जी ने की। इस सम्मेलन को आचार्य बालकृष्ण जी सहित आर्य विद्वान डा. रघुवीर वेदालंकार, आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय, आचार्य सोमदेव शास्त्री, आचार्या सूर्यादेवी आदि अनेक विदुषी आचार्योंओं ने भी सम्बोधित किया। इस सम्मेलन के संयोजक गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा. धनंजय जी थे। मध्यान्ह 1.30 बजे से 3.00 बजे तक ‘वर्तमान शिक्षा प्रणाली का विकल्प सम्मेलन’ ठाकुर विक्रम सिंह जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। डा. वेद प्रताप वैदिक विशिष्ट अतिथि थे। इस कार्यक्रम को अनेक आर्य विद्वानों ने सम्बोधित किया। गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली को वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विकल्प के रुप में अनेक विद्वानों द्वारा स्वीकार किया। इसके बाद सायं 3.30 बजे से सायं 6.00 बजे तक हरिद्वार में विशाल शोभा यात्रा निकाली गई। इस शोभा यात्रा का नेतृत्व स्वामी प्रणवानन्द, स्वामी विवेकानन्द सरस्वती, स्वामी धर्मानन्द, स्वामी यतीश्वरानन्द आदि विद्वानों ने किया। सायं 6.30 बजे से आचार्य प्रेमपाल शास्त्री जी के ब्रह्मत्व में सम्मेलन स्थल पर यज्ञशाला में हुआ। यज्ञ के अनन्तर भजन एवं प्रवचन भी हुए। रात्रिकालीन सत्र में ‘भवत्येकनीडम् सम्मेलन’ स्वामी धर्मानन्द सरस्वती जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। अनेक विद्वान आचार्यों एवं विदुषी आचार्यायों ने इस सम्मेलन को सम्बोधित किया और अपने ओजस्वी विचार प्रस्तुत किये।

आयोजन के समापन दिवस 8 जुलाई, 2018 को प्रातः 9.00 बजे से चार वेदों के शतकों से किये जा रहे यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। यज्ञ आर्ष गुरुकुल, नजीबाबाद की आचार्या डा. प्रियंवदा वेदभारती के ब्रह्मत्व में सम्पन्न हुआ। गुरुकुल की ब्रह्मचारिणियों का एक भजन होने के अनन्तर गुरुकुल गोमत, उत्तर प्रदेश के आचार्य स्वामी श्रद्धानन्द जी का प्रवचन हुआ। स्वामी आनन्द वेश, आचार्य गुरुकुल शुक्रताल ने अपने प्रवचन में कहा कि जिस स्थान पर यज्ञ होता है वह भूमि पवित्र हो जाती है। उन्होंने कहा स्वर्ग वह स्थान है जहां पर यज्ञ होते हैं, स्वाहा स्वाहा की ध्वनि होती है और विद्वान वेदोपदेश करते हैं। समापन दिवस पर 11.00 बजे से डा. महावीर अग्रवाल जी की अध्यक्षता में ‘वेद एवं संस्कृत सम्मेलन’ हुआ। संचालन दिल्ली के आर्य विद्वान डा. धर्मेन्द्र कुमार शास्त्री ने किया। इस अवसर पर अध्यक्षीय भाषण सहित आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय, आचार्या डा. प्रियंवदा वेदभारती, डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार एवं उत्तराखण्ड विधान सभा के अध्यक्ष श्री प्रेम चन्द्र अग्रवाल के सम्बोधन हुए। आचार्य वेद प्रकाश श्रोत्रिय ने कहा कि वेदों से संस्कृत प्रतिष्ठित है व शोभा पा रही है। वेदों का ज्ञान परमात्मा में सदैव विद्यमान रहता है इसलिये यह कहना उचित नहीं कि सृष्टि के आरम्भ में वेद उत्पन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने महाभारत काल के बाद वेदों की जो प्रतिष्ठा की है वह उनसे पूर्व अन्य कोई विद्वान नहीं कर सका। डा. प्रियंवदा जी ने कहा कि जिस प्रकार जल से कमल की शोभा होती है उसी प्रकार गुरुकुलों से आर्यसमाज शोभायमान है। डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने कहा कि आर्यसमाज के विद्वानों को आर्यसमाज के तीसरे नियम विषयक भ्रान्तियों को दूर कर उन्हें बताना चाहिये कि वेद वस्तुतः सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद एवं संस्कृत सम्मेलन के समापन पर उत्तराखण्ड विधान सभा के अध्यक्ष श्री प्रेम चन्द्र अग्रवाल एवं सम्मेलन के अध्यक्ष डा. महावीर अग्रवाल जी का सम्बोधन भी हुआ। अपरान्ह 1 बजे से 2 बजे तक विद्वानों एवं कार्यकर्ताओं का सम्मान किया गया। समापन समारोह 2 बजे से 4 बजे तक चला। इस सम्मेलन में बिहार के राज्यपाल श्री सत्यपाल मलिक, स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, स्वामी आर्यवेश, प्रो. विट्ठलराव आदि अनेक विद्वान व नेताओं के सम्बोधन हुए। शान्तिपाठ के साथ तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय गुरुकुल महासम्मेलन समाप्त हो गया।

सम्मेलन में सहस्रों की संख्या में ऋषि भक्तों ने पधार कर आर्यसमाज के प्रति अपनी निष्ठा व समर्पण की भावना का परिचय दिया। इस समारोह की मुख्य उपलब्धि यह रही की पहली बार लगभग 80 गुरुकुलों के आचार्य व आचार्यायें तथा उनके कुछ विद्यार्थी एक स्थान पर एकत्र हुए जहां गुरुकुल से जुड़े विषयों पर विद्वानों व नेताओं ने विचार मन्थन किया। ऋषि भक्तों को स्वामी रामदेव जी और आचार्य बाल कृष्ण जी के प्रेरक विचार सुनने को भी मिले। अनेक प्रकाशकों का साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था जिसमें चार वेदों के हिन्दी भाष्यों सहित सत्यार्थ प्रकाश व सभी प्रकार के ग्रन्थ उपलब्ध थे। भोजन की भी अच्छी व्यवस्था थी। स्वामी रामदेव जी ने उद्घाटन समारोह के अपने संबोधन में आर्यसमाज में सभी पक्षों के विवादों को हल करने की चर्चा की और उन्हें एक साथ लाने के लिए अपने प्रयास आरम्भ करने की सूचना दी। उन्होंने आशा व्यक्ति की कि अक्तूबर, 2018 में दिल्ली में होने वाले बृहद आर्य महासम्मेलन के अवसर पर वह सभी पक्षों को संगठित कर पाने में सफल होंगे और सभी पक्ष मिलकर उस सम्मेलन में भाग लेंगे। मनुष्य के सभी कार्यों में सुधार की गुजांइश सदैव रहती ही है। हो सकता किसी को भोजन, आवास व वाहन आदि की समस्या आयी हो।

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