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कविता-क्यों न आए आप ?

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12 Mar 17
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होलीआईहैं
रंगगयाआकाश ।
खडीमें द्वारपर
सोचतीरही
क्यों न आए आप ?
अंग- अंग
तडफतारहा
रंगपडा खामोश
पिचकारीहुईमौन
मैं,
हुईउदास ।
स्वपन देखाथा-
एक दिनमैने
रंगों के ताजमें
फाग के सुरमें
अबीर की सुगन्ध में
तुमहोगेंमेरे संग
खडीमैं द्वारपर
सोचतीरही
क्यों न आए आप ?
ख्वाब ये दिलका
क्यों न हुआसाकार ।

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