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कोटि-कोटि जनास्थओं का श्रृद्धा स्थल-खाटूधाम

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29 Jul 16
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षेखावटी जनपद और सीकर जिले में स्थित खाटूधाम के प्रति लाखों करोडो लोगो के मन में श्रृद्धा, आस्था एवं विष्वास की भावना प्रबल है। इस धाम में श्री ष्याम बाबा के दर्षन कर श्रद्धालु आत्मविभोर हो जाते हैं। वे जिस असीम आस्था और उमंग के साथ खाटू धाम आते हैं उसी उत्साह के साथ वापस प्रस्थान करते है।
श्री कृश्ण के ष्याम नाम को धन्य करने वाले खाटूधाम जाने के लिए आगरा-बीकानेर राश्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या ११ से सम्फ सडके बनी हुई हैं। इनमें से एक सम्फ सडक रींगस से तथा दूसरी पलसाना के निकट मंढा मोड से खाटू जाती है। रींगस से खाटू की दूरी लगभग १५ किमी तथा मंढा मोड से करीब १२ किमी हैं। इसके अलावा जयपुर से लगभग ८० किमी तथा सीकर से करीब ४५ किमी की दूरी पर खाटूष्याम स्थित है जो प्रषासनिक दृश्टि से जिले की दांतारामगढ पंचायत समिति का एक ग्राम पंचायत मुख्यालय हैं। कहने का यह ग्राम है किन्तु श्रद्धालुओं की आस्था ने इस गांव को एक भव्य लघु नगर का स्वरूप दे दिया है। धर्मषालाऐं, विश्राम गृह, अच्छा-खासा बाजार व तमाम जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता ने खाटूधाम को एक मिनी सिटी जैसा बना दिया है।
यूं तो खाटूष्यामजी में श्रद्धालुओं का आवागमन प्रायः रोज ही बना रहता है किन्तु हर माह षुक्ल पक्ष की एकादाषी को यहां आगन्तुकों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक रहती हैं। वर्श में दो बार इस आस्था स्थल पर मेला भरता है। एक कार्तिक मास में और दूसरा फाल्गुन म। इनमें फाल्गुन माह के षुक्ल पक्ष की एकादषी व द्वादषी को भरने वाला मेला विराट होता है जिसमें हर वर्श लगभग १५-२० लाख श्रद्धालु आते हैं। खाटू एक प्राचीन स्थान है। हर्श के षिलालेख, जो विक्रमी संवत् १०३० का बताया जाता है, में इस स्थान का उल्लेख खट्टकूप के नाम से किया गया है।
इतिहास के पन्नों में जाएं तो खाटू के पुराने जागीदार केसरी सिंह के वंषज बताये जाते है। कहते है कि यहां के ठाकुर बाघसिंह को पुरस्कार में दस गांव प्राप्त हुए थे जिनमें से एक खाटू भी था। यहां का वर्तमान मंदिर वि.सं. १७७७ में बना था। यह तथ्य मंदिर में लगे एक षिलालेख से ज्ञात होता है।
अब चर्चा करें खाटू के ष्याम बाबा की। यह सुविख्यात नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है क्योंकि देष का ऐसा कोई हिस्सा नही है जहां बाबा की कीर्ति पताका नहीं फहराती हो। प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार महाभारत काल में पाण्डु पुत्र भीम पर अज्ञातवास के दौरान हिडिम्बा नामक एक राक्षसी आषक्त हुई जिसको घटात्कच नाम का पुत्र हुआ। इसी घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था जो कुषाग्र बुद्धि और बाहु बल का धनी था। इस बालक ने कठोर तप के बल पर अमोद्य षक्ति प्राप्त कर ली थी।
एक बार वीर बालक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की और वह रणभूमि की ओर चल पडा। श्री कृश्ण ने कदाचित इस बालक की वीरता और अदम्य षक्ति से युद्ध को अप्रभावित रखने का उदेष्य से उसे रास्ते में ही रोक लिया और एक ब्राह्मण के रूप में इस अपराजेय बालक को अपने मोह पाष में लेकर उसे षीष का दान मांग लिया। वीर बर्बरीक ने षीष तो दान कर दिया लेकिन महाभारत युद्ध देखने की अपनी तीव्र इच्छा प्रकट कर दी। श्री कृश्ण ने बालक की इच्छा पूरी करते हुए उसके षीष को एक पहाडी षिखर पर स्थापित कर दिया जहां से महाभारत युद्ध के सम्पूर्णा दृष्य उस षीषदानी बालक ने देखे। अन्ततः श्री कृश्ण ने षीष को वरदान दिया कि कलयुग में मेरे ष्याम नाम से तुम्हारे यष व कीर्ति की पताका फहरेगी और तुम कोटि-कोटि जन आराध्य बनोगे।
इसके बाद की दन्तकथा भी काफी रोचक है। कहते है, श्री कृश्ण ने महाभारत युद्ध के पष्चात वीर बर्बरीक के षीष को नदी के प्रवाह में बहा दिया और कालान्तर में यही षीष खाटू में एक खुदाई के दौरान प्रकट हुआ। चारागाह में जाने वाली गायों में एक गया रोज षाम को गोधुलि के समय रास्ते में रूक जाति जहां उसके उसकी दूध की धारा स्वतः जमीन के अन्दर जाती देखी गई। गाय के मालिक ने उस स्थान की खुदाई की तो उससे यह षीष प्रकट हुआ। कुछ दिन इस षीष की पूजा उस गाय के मालिक द्वारा अपने घर पर की गई तत्पष्चात खाटू के तत्कालीन षासकों को सपने में मंदिर बनाकर इस षीष को विग्रह स्वरूप् में स्थापित करने का दृश्टान्त हुआ। इस प्रकार खाटू में ष्याम बाबा विराजित हुए। इस लघु नगरी में खुदाई वाले स्थान पर आज ष्याम कुण्ड स्थित है जहां कहते है, पवित्र स्नान के बाद श्रद्धालुओं के सभी कश्टों का निवारण होता है।
आज देष भर में लाखों -करोडो ष्याम भक्त है। ष्याम बाबा की महिमा का वर्णन करने वाले सैकडो गीत व लघु फिल्में सुनी व देखी जा सकती है। इनके ऑडियो-वीडियो कैसेट, सीडी आदि भी उपलब्धी है। मेले के समय श्रद्धालुओं की आस्था देखते ही बनती है। वे ष्याम भक्ति में आकंठ डूबे रहते हैं। कई श्रृद्धालुओं पेट के बल पर तो कई लम्बी पद यात्रा करके खाटू धाम पहुंचते हैं। जिला प्रषासन, मेला व मन्दिर कमेटी और ग्राम समन्वित रूप से इन श्रद्धालुओं की सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखती हैं और सभी के मिले जुले प्रयासों से या यूं कहें ष्याम बाबा की असीम कृपा से हर वर्श फाल्गुन माह में यह लक्खी मेला सम्पन्न होता है।



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