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हिन्दुत्व की छाया में इण्डोनेशिया ग्रंथ का लोकार्पण

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02 Aug 17
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हिन्दुत्व की छाया में इण्डोनेशिया ग्रंथ का लोकार्पण
देवीसिंह बडगूजर जोधपुर। डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक हिन्दुत्व की छाया में इण्डोनेशिया का लोकार्पण सोमवार को राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. इन्दुशेखर ‘तत्पुरुष’ तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं क्षेत्रीय संगठन मंत्री विपिनचंद्र शर्मा द्वारा किया गया।
पुस्तक का लोकार्पण गांधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र में अंतर प्रांतीय कुमार साहित्य परिषद द्वारा आयोज्य प्रेमचंद जयंती संगोष्ठी में सम्पन्न हुआ।
लोकार्पण के पश्चात् पुस्तक की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए राजस्थान साहित्य आकदमी उदयपुर के अध्यक्ष डॉ. इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’ ने कहा कि कुछ विमर्श एक खास विचार के तहत अब तक दबाए गए थे। उन मुद्दों पर भी विमर्श होना चाहिए। आज तक जो विमर्श हुए हैं वे थोपे हुए मुद्दों पर हुए हैं लेकिन यह पुस्तक नए विमर्श प्रदान करती है जिसका साहित्य जगत में स्वागत होना चाहिए।
इस किताब को सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर देखने की जरूरत है न कि राजनीतिक दृष्टिकोण से। पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं क्षेत्रीय संगठन मंत्री विपिन चंद्र शर्मा ने कहा कि लेखक ने इण्डोनेशिया में जाकर वहां फल-फूल रही हिन्दू संस्कृति को अपनी आंखों से देखा, वहां स्थित सांस्कृतिक सम्पदा के सैंकडों चित्रों को जुटाया एवं अपनी लेखनी के माध्यम से जीवंत वर्णन करके, इस पुस्तक के माध्यम से भारत-वासियों का ध्यान आकर्षित किया है तथा यह सिद्ध किया है कि भारतीयों को भारत से बाहर रह रहे हिन्दुओं से सरोकार होना चाहिए ताकि हिन्दू संस्कृति का यह स्वरूप सुरक्षित रह सके।
इस पुस्तक का प्रकाशन शुभदा प्रकाशन जोधपुर द्वारा किया गया है।
ज्ञातव्य है कि इस पुस्तक का लेखन डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा इण्डोनेशिया के जावा एवं बाली द्वीपों पर स्थित जकार्ता, योग्यकार्ता, सेंट्रल जावा, कु-ता, देनपासार, उबुद, मेंगवी आदि नगरों एवं अनेक मंदिरों की यात्रा के अनुभवों के आधार पर किया गया है। पुस्तक में इण्डोनेशियाई द्वीपों की जनता पर विगत हजारों वर्ष से चले आ रहे प्राचीन हिन्दू संस्कृति के प्रभाव का रोचक एवं तथ्यात्मक वर्णन किया गया है। इन द्वीपों की हिन्दू एवं मुसलमान जनता आज भी राम तथा रामायण से अपना निकटतम सम्बन्ध बनाए हुए है।
जावा एवं बाली की अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा रामलीलाओं का नियमित मंचन कराया जाता है। जावा, समुमात्रा एवं बाली द्वीपों पर स्थित हजारों साल पुराने मंदिरों से हिन्दुओं का नाता आज तक बना हुआ है। इन द्वीपों के हिन्दू आज भी वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों का अध्ययन करते हैं। बाली द्वीप की कुछ संस्थाएं संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के साथ-साथ शाकाहार अपनाने के लिए भी प्रयासरत हैं।
इस अवसर पर डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. कैलाश कौशल, डॉ. पद्मजा शर्मा, डॉ. सावित्री डागा, चांद कौर जोशी, डॉ. भावेन्द्र शरद जैन, डॉ. छोटा राम, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, सुषमा चौहान, डॉ. सरोज कौशल, डॉ. कुक्कू शर्मा, डॉ. संध्या शुक्ला, डॉ. रमाकांत शर्मा, डॉ. शैलेन्द्र आचार्य, डॉ. संजय श्रीवास्तव, डॉ. आकाश मिड्ढा सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित थे।



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