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बाडोली के कलात्मक मंदिर

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22 Feb 17
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बाडोली के कलात्मक मंदिर पुरातात्विक महत्व के बाडोली के मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला की दृश्टि से विषेश महत्व रखते है। बाडोली का मंदिर समुह कोटा षहर से रावतभाटा मार्ग पर करीब ५१ किलोमीटर दूर चित्तोडगढ जिले में आता है। आठवीं से ग्यारवीं षताब्दी के मध्य निर्मित यह मंदिर स्पश्ट करते है कि यहां कभी षैव मत का केन्द्र रहा होगा। इन मंदिरों को कर्नल टॉड सर्वप्रथम १८२१ ई. में प्रकाष में लाये। कर्नल टॉड यहां से प्राप्त एक अभिलेख जो संवत् ९८३ चैत्र सूदी ५ का है में षिव मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख मिलता है। अभिलेख में षिव को झरेष्वर कहा गया है क्यों कि मंदिर समीप ही इस नाम से एक झरना बहता है।
बाडोली मंदिर समुह परिसर में कुल ९ मंदिर स्थापित हैं। इनमें एक और आठ संख्या के मंदिर नवीं षताब्दी, ४,५,६ और ७ नम्बर के मंदिर दसवीं षताब्दी तथा मंदिर संख्या २,३ व ९ दसवीं से ग्यारवीं षताब्दी के प्रारंभ के हैं। समुह में आठ मंदिर दो समुह में तथा एक से तीन मंदिर जलाष्य के पास हैं। कोई भी मंदिर जगती पर नहीं बना है और न ही कोई प्रदक्षिणा पथ या घेरा है। तीन छोटे मंदिरों के अतिरिक्त सभी के गर्भग्रह पंचरथ हैं और पीठ में तीन सादी गढनें हैं जिनमें वास्तुषास्त्र की दृश्टि से कलष, कपोत व कुंभ निर्मित हैं। कपोत पर चैत्य गवाक्ष उत्र्कीण है।
बाडोली मंदिर समुह में सबसे महत्वपूर्ण एवं सुरक्षित मंदिर घटेष्वर महादेव का है। मंदिर के गर्भग्रह से जुडा अन्तराल अर्थात अर्धमण्डप तथा इसके आगे रंगमण्डप (श्रृंगार चंवरी) बना है। गर्भग्रह में पंचायतन परम्परा में पांच लिंग योनि पर बने है। गर्भग्रह के ललाट बिम्ब पर षिवनटराज तथा षाखाओं पर द्वारपाल के उत्र्कीण एवं बाहरी ताखों में त्रिपुरान्तक मूर्ति, नटराज व चामुण्डा की मूर्तियां बनी है। गर्भग्रह पंचरथ प्रकार का है।
गर्भग्रह के प्रवेषद्वार के आधार एवं षीर्श पर कलात्मक प्रतिमाएंे उत्र्कीण हैं। आधार पर गंगा, यमुना एवं षैव द्वारपाल बनाये गये हैं। अर्धमण्डप भी अत्यन्त कलात्मक है जो छः अलंकृत स्तंभो पर निर्मित है। यह एक खुले मण्डप के रूप में है जिसमें चारों तरफ से आयत बाहर निकले है। सभा मण्डप के एक भाग पर अलंकृत तोरण द्वार कला में विषिश्ट महत्व का है। सभा मण्डप के अश्टकोणीय स्तंभो पर घंटियों एवं प्रत्येक दिषा में विभिन्न मुद्रा में एक-एक अप्सरा की मूर्तिया आर्कशक रूप तराषी गयी है। स्तंभो, मकर तोरण एवं अप्सराओं के अंकन की षैली खजुराहों के मंदिर के समान है। मंदिर का स्थापत्य भी कोणार्क एवं खजुराहों मंदिरों के सदृष्य है।
सभा मण्डप से आगे रंगमण्डप अर्थात श्रंगार चंवरी २४ कलात्मक स्तंभो पर बनाई गयी हैं। इस पर यक्ष, किन्नर, देवी-देवता की प्रतिमाओं के साथ महिला-पुरूश की युग्म प्रतिमाऐं तथा रंगमण्डप की बाहरी कला देखते ही बनती है।
मंदिर परिसर में गणेष मंदिर, महिशमर्दिणी, वामन, षिव आदि के मंदिरों के अवषेश भी दर्षनीय हैं। बाडोली मंदिर समुह की स्थापत्य एवं मूर्ति कला के वैषिश्ठय के कारण ही अनके विदेषी सैलानी भी मंदिर को देखने पहुंचते हैं।

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