सिरोही, महावीर जैन। राजस्थान के सिरोही जिले के रेवदर तहसील के जीरावल गांव मे स्थित २८०० वर्श प्राचीन तीर्थ मे जीरावला पार्ष्वनाथ का पंचषिखरी जिनालय की प्राण प्रतिश्ठा के चढावो मे नोटबंदी का कोई असर दिखाई नही दिया। ३६ हजार वर्गफीट के विषाल एवं पवित्रम भुभाग पर मकराना ष्वेत संगमरमर मे निर्मित इस नूतन जिनालय मे २ फरवरी २०१७ को प्रातः वेला मे भव्य प्रतिश्ठा एवं अंजनष्लाका होगी जिसमे हजारो की तादाद मे साधु-साध्वी एवं लाखो की तादाद मे देषभर से श्रद्धालु भाग लेगें। बडी तादाद मे साधु साध्वी भगवंत भी जीरावला पहुंचना प्रारम्भ हो गये है।
जिस तरह हिन्दु धर्म मे भगवान गणेष की प्रधानता एवं महिमा हैं। उसी तरह जैन धर्म मे भी जीरावला पार्ष्वनाथ की अपार महिमा हैं। हर धार्मिक आयोजन मे सबसे पहले श्री जीरावला पार्ष्वनाथ को स्मरण करने की आदिकाल की परम्परा आज भी जारी हैं।
तीर्थ के अध्यक्ष रमण भाई जैन ने बताया कि प्रतिश्ठा मे देषभर के संकल जैन संघो को आमंत्रित करने के लिए आमंत्रण पत्रिका मे जय जिनेन्द्र का चढावा लेने वाले पावापुरी तीर्थ जीव मैत्रीधाम के निर्माता के पी संघवी परिवार मालगांव-मुंबई-सुरत के प्रमुख किषोर भाई, कीर्ति भाई, अरविंद भाई, अमरिष भाई एवं अपूर्व भाई के कर कमलो से रविवार १५ जनवरी १७ को विजय मुहुर्त में ट्रस्ट मंडल, अनेको आचार्य भगवंतो एवं २०० साधु साध्वियों की पावन निश्रा में कुमकुम पत्रिका लिखी गई और पहली पत्रिका हर्षोल्लास के साथ नाचते गाते हुए दादा के दरबार मे मंगल भावनाओं के साथ दादा को अर्पित की गई। इस आमंत्रण पत्रिका मे सम्पूर्ण कार्यक्रम एवं विविध चढावे लेने वालो की सूचना अंकित हैं।
प्रतिमा का प्राचीन इतिहास
८०० वर्श पूर्व जैनाचार्य श्री मेरतुंगसूरिजी महाराज द्वारा हस्त लिखित भोजयंत्र के अनुसार ’’जब भगवान श्री पार्ष्वनाथ विहाररत थे उस समय उनके प्रथम गणधर श्री षुभस्वामीजी के सदुपदेष से अबुर्दाचल की तलहटी में स्थित रत्नपुर नगर के जिन धर्मपरायण चन्द्रयषा राजा ने इस प्रतिमा का निर्माण दुध बालु से करवाकर उन्ही के हाथो से अंजन प्रतिश्ठा करवाई थी। कालांतर मे भुमिगत हुई इस प्रभावसम्पन्न प्रतिमा संवत ११०९ मे एक नदी के मे प्रकट हुई। संवत ११९१ मे मंडार के आचार्य श्री अजितदेव उर्फ वादीदेवसूरीजी के हाथो से षिखरबद्द प्रासाद मे मुलनायक के रूप मे प्रतिश्ठा सम्पन्न हुई।
प्रतिमा विराजमान के चढावे मे होगी होड
अनेको बार इस प्राचीन चमत्कारी प्रतिमा का स्थान परिवर्तन अनेक कारणो से होता रहा हैं जिसका उल्लेख अनेक ग्रंथो मे हैं। अब इस प्रतिमा को विषाल जिनालय मे विराजमान करने का महाउत्सव २ फरवरी १७ को होगा जिसका लाभ किसको मिलेगा उसके लिए पुरे देष के जैन समाज की नजरे टिकी हुई हैं।
देश का पहला मंदिर जहां किसी का नाम या शिलालेख नही होगा
जैन तीर्थो मे यह ऐसा नूतन एकमात्र तीर्थ होगा जिसमे अनेक भगवान विराजमान होंगे लेकिन विराजमान करवाने वाले भाग्यषालियो के साथ साथ प्रतिश्ठा की निश्रा प्रदान करने वाले आचार्य भगवंतो का भी कोई नाम या शिलालेख मंदिर परिसर मे नही होगा।
प्रमुख चढावों के लाभार्थी
जिनालय प्रतिश्ठा मे जय जिनेन्द्र के चढावे का लाभ तीर्थ की नव निर्माण समिति व प्रतिश्ठा महोत्सव समिति के अध्यक्ष एवं पावापुरी तीर्थ जीव मैत्रीधाम के संस्थापक संघवी बाबुकाका के पी संघवी परिवार ने, फले चुंदडी का लाभ जालोर जिले के मांडवला निवासी एवं श्रेश्ठीवर्य संघवी रमेष भाई मुथा एम एम एक्सपोर्ट, शाहीकरबा का लाभ बंगलुर के व्यवसायी एस. कपुरचंद परिवार (तवाव), गुरू भगवंतो के सामैया का लाभ संघवी रूगनाथमलजी समरथमलजी दोषी परिवार मंडार एवं तीर्थ के अनेक ट्रस्ट्रियो ने भी महत्वपूर्ण चढावो का लाभ लेकर अपनी लक्ष्मी का उपयोग कर नया इतिहास रचा हैं।
तीर्थ मे भोजनषाला भवन, संघ भोजनषाला एवं विषिश्ठ अतिथि भवन बनाने का लाभ दानवीर श्री रसिकलाल एम धारीवाल (पुना), पेढी कार्यालय, उपासरा का लाभ के पी संघवी परिवार-मालगांव-सुरत, अतिथि भवन, यात्रिक भवन के मुख्य लाभार्थी बनने का लाभ मोनटेक्स ग्रुप एवं तीर्थ के चेयरमेन रमणभाई जैन परिवार ने लिया।
१० बनेंगे स्थायी स्वागत द्वार
तीर्थ प्रचार-प्रसार समिति के संयोजक ट्रस्टी बाबुलाल बी जैन ने बताया कि दानवीर रसकलाल माणिकचंद परिवार ने तीर्थ के चारो तरफ १० आकर्शक ’’स्वागत द्वार‘‘ बनाने का लाभ लेकर तीर्थ की सुन्दरता मे चार चाँद लगाये हैं।
शिल्पकला एवं नक्काशी होगी प्राचीन
तीर्थ के चेयरमेन रमण भाई (मोन्टेक्स ग्रुप) ने बताया कि इस अतिप्राचीन तीर्थ का जीर्णोद्वार १३ वर्श से चल रहा है तथा इसमे माउंट आबू के देलवाडा और राणकपुर जैन मंदिर की नक्काषी व जैसलमेर व राणकपुर मंदिर की षिल्पकला का समावेष किया गया हैं। मंदिर निर्माण समिति के सदस्य एवं ट्रस्टी पोपटभाई जैन ने बताया कि जिनालय निर्माण की योजना परम पूज्य षिल्पज्योतिशाचार्य श्रीमद् विजय पदमसूरीष्वरजी महाराज ने प्रदान की ओर सोमपुरा मनहरभाई हरीलाल भाई अहमदाबाद ने षिल्पकार के रूप मे कार्य किया। पुरा मंदिर मकराना के सफेद संगमरमर से बना है जबकि धर्मषालाएं ओर अन्य भवन जैसलमेर के पत्थरो से बना हैं। मंदिर और धर्मषाला के अलावा २५ हजार वर्गफीट मे श्रावक-श्राविका उपासरे, पेढी कार्यालय, स्वागत कक्ष और हॉल बना हैं।
मुख्य शिखर मे विराजित होगें जीरावला दादा
मंदिर के पांच विषाल षिखर बने हैं। मुख्य षिखर के नीचे मूलनायक श्री जीरावला पार्ष्वनाथ दादा की २८०० वर्श पुरानी महान चमत्कारी मनमोहक प्रतिमा विराजित होगी ओर इसके विराजमान का लाभ लेने मे अनेक भाग्यषाली चढावो मे बढ चढकर भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं। आस पास के चार षिखरो मे मुलनायक षंखेष्वर पार्ष्वनाथ, नूतन जीरावला पार्ष्वनाथ, नेमीनाथ ओर श्री महावीर स्वामी विराजमान होगें। इन सब को विराजमान करने के चढावे एवं कलष घ्वज के चढावे ३१ जनवरी १७ को जाजम पर होंगे।
नया इतिहास बनेगा ३१ जनवरी को
देष के जैन तीर्थो एवं मंदिरो मे प्राण प्रतिश्ठा एवं ध्वजा के चढावो का जो इतिहास अब तक हैं उससे कई गुना अधिक मे ये चढावे जाऐगे ओर जैनषासन का एक नया इतिहास इस तीर्थ मे लिखा जायेगा ऐसी चर्चा देष के हर जैन बंधु के मन व मस्तिश्क में है। हर दृश्टि से विषिश्ठता से होने वाली इस प्रतिश्ठा मे निश्रा प्रदान करने वाले आचार्य भगवंतो एवं साधु-साध्वीयों की भी संख्या अब तक का रेकर्ड तोड देगी।
वैयावच्च का लाभ लिया अलर्ट ग्रुप ने
तीर्थोद्वार-प्रतिश्ठा-अंजनष्लाका महामहोत्सव मे निश्रा प्रदान करने वाले आचार्य भगवंत सुविषाल गच्चाधिपति श्रीमद् जयघोशसूरीष्वरजी, दीक्षा दानेष्वरी आचार्य श्री गुणरत्नसूरी, आचार्य यषोविजयसूरी, आचार्य रत्नाकरसूरी के अलावा २० से अधिक आचार्य भगवंत अपने समुदाय के हजारो साधु-साध्वीयों के साथ उपस्थित रहकर इस विषाल प्रतिश्ठा मे भक्तो को आषीर्वाद प्रदान करेंगे। उनके विहार की व्यवस्था एवं साधु साध्वीयों की वैयावच्च का लाभ गुजरात के अलर्ट ग्रुप ने लिया। यह ग्रुप साधु रूपी जीवन जीने वाले सुश्रावक समाजसेवक कुमारपाल भाई वी षाह एवं दानवीर कल्पेष भाई षाह के नेतृत्व में विषिश्ठ वैयावच्च सेवा देषभर मे करता हैं।
२८ जनवरी को होगा सामैयाः ३ फरवरी को खुलेगा द्वार
तीर्थ के मंत्री एवं प्रतिश्ठा समारोह के संयोजक प्रकाष के संघवी ने बताया कि महोत्सव २३ जनवरी से ३ फरवरी तक चलेगा। तीर्थ मे जीरावला नदी पर एक विषाल स्वागतद्वार बनाया गया। इस स्वागत द्वार की भव्यता से ही यह एहसास होता है कि यह प्रतिश्ठा अनुठी एवं अनुपम होगी ओर इसके लिए तीर्थ ट्रस्ट मंडल लम्बे समय से तैयारी कर रहा हैं।
तीर्थ के उपाध्यक्ष संघवी रमेष कुमार मुथा (एम एम एक्सपोर्ट चैन्नई के चेयरमेन) व तीर्थ सहमंत्री किषोर कुमार गांधी ने बताया कि प्रतिश्ठा मे आने वाले दानवीरो, श्रेश्ठवर्यो, के साथ साथ लाभार्थियों के आने की मिल रही सूचनाओ पर उनके आवास के लिए वरमाण, मंडार, भेरूतारकधाम, पावापुरी तीर्थ एवं मानपुर तीर्थ मे भी व्यवस्था की जा रही हैं। भक्तों के लिए जीरावला तीर्थ मे अस्थायी निवास की व्यवस्था की जा रही हैं।
तीर्थ के अध्यक्ष रमण भाई जैन व प्रचार-प्रसार समिति के संयोजक बाबुलाल बी जैन ने बताया कि २८ जनवरी को गुरू भगवंतो का भव्य सामैया होगा, २९ जनवरी को जन्मकल्याणक महोत्सव, ३० जनवरी को ५६ दिककुमारी जन्म उत्सव, ३१ जनवरी को राज्याभिशेक, गीत-सांझी एवं प्रतिष्ठा के महत्वपूर्ण चढावें, १ फरवरी को दीक्षा कल्याणक का भव्य वरघोडा अंजनष्लाका विधान, १०८ अभिशेक एवं २ फरवरी को प्रातः षुभवेला मे प्राण प्रतिश्ठा एवं ध्वजारोहण व १०० ओली की तपस्या के पारणे होगें। प्रतिश्ठित मंदिर का द्वार उद्घाटन ३ फरवरी को प्रातः होगा।
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