दिल्ली हाईकोर्ट से केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने कहा कि एलजी के पास ही नियुक्ति का अधिकार रहेगा। यह उपराज्यपाल का अधिकार है कि वह किस अधिकारी को तैनात करे किसे न करे। दिल्ली सरकार एलजी को सिर्फ सुझाव दे सकती है। सुझाव का मानना या न मानना एलजी का अधिकार है।
इससे पहले भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) के अधिकार क्षेत्र को दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी मुंह की खानी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा 21 मई को जारी अधिसूचना को जारी रहने का आदेश दिया है। मामले में केंद्र सरकार की विशेष याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र के अधिसूचना (नोटिफिकेशन) को 'संदिग्ध' बताने वाली हाई कोर्ट की टिप्पणी को आधारहीन करार देते हुए खारिज कर दिया। मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से भी इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट किसी टिप्पणी के दबाव में न आए और इस पर फैसला करे।
इससे पहले केंद्र ने याचिका में कहा था कि हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार का पक्ष सुने बिना ही दिल्ली सरकार को भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) पर अधिकार का फैसला दे दिया जो कि गलत है। यह महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दा है। इसमें केंद्र सरकार की प्रशासनिक शक्ति का सवाल शामिल है इसे केंद्र का पक्ष सुने बिना नहीं तय किया जा सकता। हाई कोर्ट ने इस पर भी विचार नहीं किया कि संविधान के अनुच्छेद 239 एए(3)(ए) के तहत दिल्ली विधानसभा को सिर्फ वही अधिकार प्राप्त हैं जो केंद्र शासित प्रदेशों को हैं।
हाई कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा को सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची यानी समवर्ती सूची के विषयों में कानून बनाने का अबाधित अधिकार प्राप्त है। दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और उसकी प्रशासनिक और विधायी शक्तियां सीमित हैं और संसद को दिल्ली के बारे में कानून बनाने का विशेष अधिकार है।