नई दिल्ली : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इस डॉक्टर्स डे को ’डॉक्टरों और चिकित्सा संस्थानों एवं प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए इस दिन को हिंसा के प्रति शून्य सहनशीलता’ के रूप में मनाने की घोशणा की है। ज्ञातव्य है कि डॉक्टरों और क्लिनिकल प्रतिश्ठानों के खिलाफ हिंसा एक ज्वलंत समस्या है और यह चिकित्सा जगत के साथ-साथ चिकित्सा प्रतिश्ठानों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। यह मुद्दा अब बहुत ही गंभीर स्थिति तक पहुंच चुका है और इससे सबसे अधिक प्रभावित केवल मरीज हो रहे हैं। चिकित्सा समुदाय को सुरक्षित क्षेत्र घोशित करने के लिए, आईएमए 1 से 8 जुलाई 2018 तक सुरक्षित भाईचारा सप्ताह बनायेगा। आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.रवि वेंखेडकर ने कहा, ‘‘चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने का खर्च पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ा है, जिसके लिए डॉक्टरों को गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि काम करने के असमान घंटों और तनावपूर्ण वातावरण जैसी कई परेषानियों के बावजूद, डॉक्टर अभी भी अपनी सर्वश्रेष्ठ संभव सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। लेकिन जो लोग वास्तव में सरकारी स्वामित्व वाले अस्पतालों में जाते हैं, उन्हें ज्यादातर समय चिकित्सा समुदाय को लेकर गुमराह किया जाता है।’’
इस तरह के हिंसक व्यवहारों ने डॉक्टरों के लिए बेहद तनावपूर्ण कामकाजी परिस्थितियों का निर्माण किया है, और इससे स्वास्थ्य देखभाल में सेवा और सुरक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। अंत में इसके षिकार मरीज़ हो रहे हैं, जो पूरी तरह से डॉक्टरों द्वारा रक्षात्मक इलाज कराने के लिए मजबूर हैं। आईएमए के महासचिव डॉ. आर. एन. टंडन ने कहा, ‘‘साक्षरता की कमी, स्वास्थ्य देखभाल के बारे में जानकारी की कमी, बीमारियों, बीमारियों के प्राकृतिक इतिहास, प्रबंधन के नुकसान और फायदों, अनुचित उम्मीदों, निहित हितों के लिए राजनीतिक समर्थन और सरकार के स्वास्थ्य के कुप्रबंधन के खिलाफ क्रोध डॉक्टरों के खिलाफ हो रही बड़े पैमाने पर हिंसा के लिए जिम्मेदार है। आईएमए मौजूदा स्थिति का समाधान करने की मांग करता है। हम सुरक्षित, नैतिक, गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य देखभाल के लिए प्रतिबद्ध हैं जो हमारे डॉक्टरों को पेशेवरता प्रदान करते हैं। लेकिन साथ ही, हमारे डॉक्टरों को नैदानिक प्रतिष्ठानों में अस्वीकार्य हिंसा से बचाने और इलाज करने के लिए सुरक्षित, निडर वातावरण प्रदान करना हमारे एजेंडे में सबसे ऊपर है।’’
आईएमए नैदानिक प्रतिष्ठानों के साथ इस मामले को सुलझाने के लिए अपने हाथों में कानून लेने वाले अनौपचारिक तत्वों की बुराई के खिलाफ लोगों की चुप्पी से भी निराश है। डॉ. वानखेडकर ने कहा, ‘‘हालांकि 19 राज्यों ने मेडिकेयर एक्ट को अपना लिया है, लेकिन अब तक कई हिंसक घटनाओं के बावजूद किसी को अपराधी नहीं ठहराया गया है। इस तरह की हिंसक घटनाएं चिकित्सकों के आत्मविश्वास को घटाती है। हम स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सा संस्थानों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और सक्रिय पहल के तौर पर केन्द्रिय चिकित्सा कानून बनाए जाने की मांग करते हैं, जिन्हें सुरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। दोशियों के खिलाफ विशेष फास्ट ट्रैक कोर्टों में कार्रवाई की जानी चाहिए और इस अधिनियम को अपराधी के खिलाफ गैर-जमानती अपराध लागू करने के लिए पर्याप्त मजबूत होना चाहिए और क्लिनिकल प्रतिष्ठानों को हुए नुकसान को भी उनके द्वारा वसूल किया जाना चाहिए। आईएमए स्वास्थ्य देखभाल हिंसा में 7 साल की न्यूनतम कारावास की मांग करता है और इसके साथ ही इसे साइबर ट्रॉलिंग के रूप में देखे जाने की भी मांग करता है।
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