उदयपुर । फोर्टिस जे के हॉस्पिटल में हुए ईलाज से मिला नया जीवन। रोगी की कहानी भी उतनी ही गंभीर और दिल दुखः देने वाली है जितना यह रोग डिस्टेनिया मस्तिश्क की एक बीमारी है।
उदयपुर के महज १५ किमी दूर डबोक कि रहने वाली देव प्रकाष की मंजली पुत्री नेहा गवारिया को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण ८ साल से जिन्दगी और मौत के बीच जीवन प्रत्याषा को तलाषती रही। इसी कारण कक्षा नौ तक पढते पढते चलने में नाकामी की वजह से घर सहारा बन गया और स्कूल के साथ-साथ जीने की आस भी छोड दी।
नेहा(रोगी) ने बताया कि यह बीमारी २०१० में पहले पैरो से षुरू हुई, तथा बीमारी ने अपंग करते हुए अधमरा कर दिया।इसके बाद धीरे-धीरे हाथों ने काम करना भी बंद कर दिया।साथ ही चेहरा बाई तरफ मुडगया और पूरे षरीर अकड गया जिससे एक कदम भी चलना दुभर हो गया। ऐसी दुर्लभ बीमारी से परिवार सक्ते में आ गया कि आखिर यह बीमारी है क्या और बच्ची का भविश्य क्या होगा।पिता पेषे से टेक्सीड्राइवर है प्रति दिन डबोक एयरपोर्ट पर यात्रियों को षहर लाने ले जाने का कार्य करते है। पिता ने भी इलाज के लिए पूरे प्रयत्न किये यहां वहां कई जगह से ईलाज लिया लेकिन सब कुछ सिफर निकला। देवी-देवताओं का ही सहारा बचा था। आस-पास के सभी स्थानों पर जा आये लेकिन कही भी इस इलाज कि सुनवाई नहीं हुई कुछ अस्पतालों में ईलाज बहुत मंहगा बताया गया।अहमदाबाद, मोडासा में डॉक्टरों ने बीमारी को दुर्लभ एवं लाइलाज बताया तो उपचार की आस ही छोड चुका परिवार निराष हो गया।
फिर भी माता-पिता ने अच्छे ईलाज की आस नहीं छोडी इसी आस ने एक दिन टेक्सी की सवारी के रूप में सहारा मिला अमेरिकी महिला नीना का जो उदयपुर घूमने आई थी। उपचार की पूरी जिम्मेदारी लेकर फोर्टिस जे के हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विनीत बांगा के पास भेजा। जहां नेहा की बीमारी पर पूर्ण अध्ययन कर उपचार प्रारम्भ किया सफलता मिली।
डॉ विनीत बांगा ने बताया कि नेहा डिस्टोनिया से पीडित है जोकि एक न्यूरोजॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें मस्तिश्क में एक रसायन (डोपामीन) की कमी हो जाती है जिससे षरीर के अंग कमजोर होने लगते है। और यह धीरे-धीरे पूरे षरीर में बढने लगता है। इसके लक्षणों में हाथ-पैरो में कमजोरी, ऐठन, जकडन, टेडा होना इत्यादि हो सकते है। डिस्टोनिया कई तरह के होते है जिसमें से कुछ तरह के डिटोनिया का ईलाज संभव है। इसके अलावा मरीजो को हाथ-पैर का काँपना, सिरदर्द, भूलना इत्यादि की परे षानी भी हो सकती है। डॉ बांगा ने बताया कि नेहा की विस्तार से जांच की गई तथा अत्याधुनिक ट्रिटमेंट अपनाया गया । कुछ ही घण्टों के उपचार के परिणाम सामने आने लेगे तो उपचार को आगे बढाया गया। नेहा मात्र ८ घण्टे में ठीक होने लगी और इस बीमारी से उभरकर अपने स्वयं के कार्य कर रही है एवं उसे स्वस्थ हालत में आज अस्पताल से छुट्टी दे दी जायेगी। यह मेवाड ही नही मेडिकल सांइस में भी अध्ययन का विशय है कि ८ साल से डिस्टोनिया से पीडत कैसे इतना जल्दी ठीक हो गई।
डॉ. बांगा ने बताया कि अधिक तर मरीज अस्पताल में न जाकर बीमारी को उपरी प्रकोप समझ लेते है तथा बीमारी के साथ जीने की आदत डाल लेते है जो उम्र के साथ बढती यह बीमारी विक्राल रूप ले लेती है। समय पर स्तर दर स्तर उपचार को अपना कर मस्तिश्क की किसी भी बीमारी का उपचार सम्भव है। हॉस्पिटल के फेसिलिटी डॉयरेक्टर हरजीत सिंह भगत ने सभी मिडिया कर्मियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
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