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नेचुरल बनें, प्रदूषण से बचें कार्बन नियंत्रित करने के दो स्रेत

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20 Nov 17
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प्रसिद्ध पर्ल एक्वालकल्चर वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने वातावरण में कार्बन की मात्रा में अतिशय वृद्धि को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण बताया है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटने के अलावा इसका अन्य कोई ठोस उपचार नहीं है।दुनिया का सबसे बड़ा और महंगा काला मोती बनाने के लिए विश्वविख्यात डॉ. सोनकर का मानना है कि प्रदूषण को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच सबसे महत्वपूर्ण चिंता वातावरण में बढ़ते कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा है। यह न सिर्फ जलवायु परिवर्तन में बदलाव का मुख्य कारण बन रही है, बल्कि पूरे मानव अस्तित्व के सामने एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ी है। डॉ. सोनकर ने कहा कि वातावरण में स्थाई रूप से बढ़ रहे कार्बन डाईआक्साइड का अनुपात धरती पर जीवन को घातक स्थिति की ओर ले जा रहा है।पेड़ों में 50 प्रतिशत कार्बन होता है : पेड़ वातावरण से कार्बन डाईआक्साइड लेकर प्रकाश की मदद से उसमें से कार्बन ले लेते हैं और आक्सीजन वापस वातावरण में छोड़ देते हैं। किन्तु वातावरण में अतिरिक्त कार्बन डाईआक्साइड पेड़ों को अतिरिक्त कार्बन सोखने के लिए बाध्य करते हैं, जिस कारण पेड़-पौधों की मूल रचना में परिवर्तन हो रहा है और अतिरिक्त कार्बन के कारण पेड़ों में जल की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। ऐसा मनुष्यों के भोजन में उपयोग आने वाली फसलों के साथ भी हो रहा है। हमारे फल-सब्जियों में पोषक तत्वों व विटामिंस की वह मात्रा नहीं पाई जा रही है, जो आज से पचास वर्ष पहले हुआ करती थी।लोगों में गलत धारणा : डॉ. सोनकर ने कहा कि लोगों में यह गलत धारणा है कि मास्क पहन लेने अथवा घर में ‘‘एयर प्युरीफायर’ लगा लेने से वे खुद को सुरक्षित कर पा रहे हैं जबकि कार्बन का बढ़ता स्तर कई गंभीर चुनौतियों को जन्म दे रहा है जिससे निपटने का ठोस प्रयास करना होगा।एक आदमी को चाहिए प्रतिदिन करीब 550 लीटर हवा : हवा में आक्सीजन की मात्रा करीब 20 प्रतिशत होती है। इंसान का शरीर पांच प्रतिशत सोखता है और बाकी 15 प्रतिशत वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड के साथ वापस छोड़ देता है। एक औसत आदती प्रतिदिन 2.3 पौंड कार्बन डाईआक्साइड को वातावरण में छोड़ता है। किसी स्थान पर अगर कार्बन की मात्रा बढ़कर एक लाख पीपीएम हो जाए तो उसे धातक जमाव बोला जाता है। अगर किसी कमरे में सोने की परिस्थिति में यह स्थिति उत्पन्न हो जाए तो इंसान की मौत भी हो सकती है।नेचुरल बनें : इन खतरों से निपटने के लिए बहुत गंभीर प्रयास करने होंगे। जितना संभव हो प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटना होगा। जमीन से निकलने वाले कच्चे तेल को जलाना कम करने की आवश्यकता है और वैकल्पिक ईधन अपनाने की ओर कदम बढ़ाना होगा, जो वायुमंडल को कम से कम नुकसान पहुंचाए। वाहनों में एक ऐसे फिल्टर को लगाने के बारे में सोचा जा सकता है जो कार्बन को संग्रहित कर उन्हें इकट्ठा कर दे और कार्बन डाईआक्साइड से आक्सीजन को अलग कर दे जिसे अंजाम देना बहुत जटिल नहीं है।
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