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बढ़ रही है आयुर्वेदिक दवाओं की उपयोगिता

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14 Nov 17
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नई दिल्ली। देश में आयुष दवाओं की उपेक्षा होती है लेकिन यदि आयुष दवाओं को आधुनिक चिकित्सा मानकों की कसौटी पर परखा जाए तो ये दवाएं एलोपैथी से कम नहीं हैं। घरेलू दवा बाजार पर शोध करने वाले फार्मास्युटिक मार्केट रिसर्च आर्गेनाइजेशन (एआईओसीडी) का कहना है कि हर्बल दवाओें की उपयोगिता, प्रभावकारिता और मांग बढ़ रही है। दूसरे, इन दवाओं के निर्माण और विपणन प्रक्रिया भी पहले से बेहतर और योजनाबद्ध हुई है। एआईओसीडी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो सालों के भीतर बाजार में आने वाले 6414 दवा ब्रांडों में से टॉप-20 में स्थान पाने वाली दवाओं में सीएसआईआर विकसित मधुमेह रोधी दवा बीजीआर-34 भी शामिल है। इसे 20वां स्थान मिला है। लेकिन इन 20 दवा फार्मूलों को बीमारियों के इलाज के हिसाब से देखें तो टॉप पांच ब्रांडों में से चार मधुमेह के हैं जिनमें बीजीआर-34 भी शामिल है। इस प्रकार बीते दो सालों में बाजार में छानी वाली मधुमेह की चार दवाओं में से एक दवा आयुर्वेद के सिद्धान्तों पर आधारित है।दवा को विकसित करने वाली सीएसआईआर की प्रयोगशाला नेशनल बॉटनीकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) लखनऊ के वैज्ञानिक डा. एकेएस रावत ने कहा कि बीजीआर-34 को यह स्थान इसलिए हासिल हुआ क्योंकि यह एनबीआरआई-सीमैप के वैज्ञानिकों के गहन शोध के बाद बनी है। बाजार में लाने से पहले मनुष्यों पर इसके परीक्षण हुए हैं। इसमें इसकी प्रभावकारिता को परखा गया है। तीसरे, जिस कंपनी एमिल फार्मास्युटिकल को तकनीक हस्तांतरित की गई है, वह दवा के निर्माण में उच्च गुणवत्ता मानकों का पालन कर रही है।पिछले दिनों एआईओसीडी ने इस दवा को पुरस्कार प्रदान किया जिसे एमिल फार्मास्युटिकल के कार्यकारी निदेशक संचित शर्मा ने ग्रहण किया। उन्होंने एक बयान में कहा कि घरेलू दवा उद्योग में व्यापक प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में टॉप 20 दवाओं में आयुर्वेदिक दवा को स्थान मिलना हमारी चिकित्सा पद्धति के लिए गर्व की बात है। उनकी कंपनी इस दवा के विपणन के साथ लोगों में मधुमेह के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए शिविरों का भी आयोजन कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है।

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