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बर्फ से ढकी चोटियां मानों बर्फ का रेगिस्तान हो

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15 Mar 18
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बर्फ से ढकी चोटियां मानों बर्फ का रेगिस्तान हो बर्फ से ढकी चोटियां मानों बर्फ का रेगिस्तान हो, रेत के टीले, सुबह के घने बादल, मनोहारी प्राकृतिक के कई अजूबे अपने में समाए लद्दाख समुद्र तल से ३५०० मीटर ऊँचाई पर ९७ हजार वर्ग कि.मी. में कश्मीर प्रदेश का सबसे बडा क्षेत्र है। यह एक तरफ चीन एवं दूसरी तरफ पाकिस्तान की सीमा से जुडा है। लद्दाख के उत्तर में काराकोरम तथा दक्षिण में हिमालय स्थित है। बताया जाता है कि चीनी यात्री फाहियान में जब इस क्षेत्र की यात्रा की तब उसके बाद इसका नाम लद्दाख रखा गया है।

लद्दाख ने जहां झोलीभर कर प्राकृतिक सौन्दर्य लुटाया है वहीं यहां की संस्कृति, धार्मिक एवं ऐतिहासिक विरासत इसे महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल बना देती है। लद्दाख के धर्म स्थल गोम्पा कहे जाते हैं। इनमें रक्खी गई पीतल की बडी-बडी मूतियां मंत्रमुग्ध करती हैं। बडे-बडे प्रेयर व्हील ;प्रार्थना पहियेद्ध घुमाकर प्रार्थना करना अपने-आप में एक अनोखा अनुभव होता है। मान्यता है कि इन पहियों को घुमाने से मंत्र उच्चारण का प्रभाव उत्पन्न होता है। यहां के लोगों में फिरोजी पत्थर का नग विशेष रूप से लोकप्रिय है। इससे आकर्षक गहने बनाये जाते है।

महल के संग्रहालय में रानियों के ताज में भी इनकी सुन्दरता झलकती है। महिलाएं इस नग को सुहाग की निशानी मानती है और हर महिला नग को धारण करती है। यहां के रसोईघर भी देखने लायक होते हैं जहां एल शेप में लगाई गई चौकियों पर भोजन परोसा जाता है। यहां कि संस्कृति पर तिब्बति संस्कृति का प्रभाव होने से इसे छोटा तिब्बत भी कहा जाता है।


सर्दियों में यहां देश-विदेश के सैलानी बडी संख्या में आते हैं और बर्फ गिरने, बर्फ के मैदान तथा इस पर बर्फ क्रीडा का लुप्त उठाते हैं। वैसे लद्दाख को देखने के लिए किसी भी समय पहुँचा जा सकता है। गर्मियों का मौसम भी आने वालों को शीतलता प्रदान करता है। दुनिया की सबसे ऊँची खारी झील भी लद्दाख में है। लद्दाख जाने का सर्वथा अनुकूल समय मई से अक्टूबर माह का है। आईस हॉकी का मजा दिसम्बर से फरवरी तक लिया जा सकता है। पर्वतारोहण करने वालों के मध्य लद्दाख सर्वाधिक लोकप्रिय जगह है।


लद्दाख में जून में आयोजित होने वाला हेमिस उत्सव जिसे मुखौटा नृत्य कहा जाता है को देखने के लिए देश-विदेश के सैलानी यहां आते हैं। हर वर्ष नवम्बर माह में आयोजित होने वाला लोसर उत्सव भी लोकप्रिय है। यह उत्सव १५ वीं शताब्दी पुराना है और आजतक निरन्तर आयोजित किया जा रहा है। यह एक युद्ध पूर्व का उत्सव है, जिसे यह सोचकर मनाया जाता है कि युद्ध में मारे जायेगे या बचेगें। अगस्त माह में पर्यटन विभाग द्वारा लद्दाख उत्सव का आयोजन विशेष रूप से पर्यटकों के लिए किया जाता है। इस दौरान पर्यटकों को बौद्धमठों में होने वाले धार्मिक आयोजनों को भी निकट से देखने का अवसर प्राप्त होता है। यहां का दूसरा सबसे बडा कस्बा कारगिल है। यह श्रीनगर-लेह राजमार्ग के बीच आता है। कारगिल में हरास, सुरूघाटी, मुलबेक बुरदान आदि दर्शनीय स्थल हैं। लद्दाख पहुँचने के लिए लेह होकर जाना पडता है.




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