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देश में ज्वार अनुसंधान को नई दिशा देने की आवश्यकता. प्रो. उमा शंकर शर्मा

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27 Apr 16
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देश में ज्वार अनुसंधान को नई दिशा देने की आवश्यकता. प्रो. उमा शंकर शर्मा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के भारतीय लघु अनाज (कदन्न, मिलेट्स) अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर में ज्वार पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (आईसीएआर) पर तीन दिवसीय ४६ वीं वार्षिक बैठक व कार्यशाला का औपचारिक उद्घाटन मंगलवार को आर.सी.ए. सभागार में हुआ। बुधवार को वार्षिक बैठक व कार्यशाला का समापन होगा।
अनुसंधान निदेशक डॉ. जी. एस. आमेटा ने आगन्तुकों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय समन्वित कृशि ज्वार परियोजना उदयपुर १९७० में षुरू की गई थी। इस केन्द्र से अनाज के लिए एसपीवी९६ एवं एसपीवी२४५, सीएसवी१०, पीजे१४३०, एसपीएच८३७ व सीएसवी२३-द्विउद्धेष्य किस्में, सीएसवी१७-अनाज की जल्दी पकने वाली किस्म और राजस्थान चरी१, राजस्थान चरी२ और प्रताप चरी१०८० आदि किस्में चारे के लिए जारी की गई हैं। इस स्टेषन का प्रदर्षन राश्ट्रीय स्तर पर बहुत बार प्रथम स्थान पर रहा है तथा सबसे अच्छे एआईसीआरपी केन्द्र के रूप में सम्मानित किया गया है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कृषि अनुसंधान परिषद के सह महानिदेशक (खाद्यान्न व चारा फसल) डॉ. आई.एस. सोलंकी ने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि पिछले चार दशकों के दौरान देश में ज्वार का रकबा घटा हैं परन्तु अच्छी उत्पादन क्षमता वाली संकर किस्मों के उपयोग से प्रति हैक्टेयर ज्वार का उत्पादन बढा है। जिसका श्रेय हमारे कृषि वैज्ञानिकों व पादप प्रजनकों को जाता है। उन्होंने महाराणा प्रताप व भामाशाह का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार प्रताप ने बहादुरी व संयम से अपनी शक्तियों को एकत्र कर अपनी खोई हुई शक्ति व सेना का पुर्गठन किया था। उन्होंने वैज्ञानिकों को आव्हान् करते हुए कहा कि हमें नवीन विचारों को लेकर अनुसंधान करने व ज्वार का रकबा बढाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. यू.एस. शर्मा ने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि राजस्थान जैसे राज्य में चारे व खाद्यान्न के रूप में ज्वार एक महत्वपूर्ण फसल है। दूध के उत्पादन व गुणवत्ता में सुधार हेतु फसलों को गुणवत्ता पूर्वक चारा उपलब्ध करवाना हमारी प्राथमिकता है। अतः ऐसी किस्मों का विकास करना चाहिए जिससे ज्वार व चारे का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढाया जा सके। उन्होंने विश्वास जताया कि इस मीटिंग से देश में ज्वार अनुसंधान को नई दिशा मिलेगी।
भारतीय कन्दन अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. वी.ए. तोनापी ने विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों के कार्य का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और बताया कि परियोजना के तहत नवीन प्रजातियों के शस्य ट्रायल लिये जाते हैं व उनकी उत्पादकता व अन्य आंकडे एकत्रित कर उनका नियमित विश्लेषण किया जाता है। डॉ. तोनापी ने बताया कि कन्दन अनुसंधान संस्थान से संचालित ज्वार अनुसंधान परियोजना के अन्तर्गत नवीन प्रजातियों की उत्पादन क्षमता, चारे व अनाज के रूप में ज्वार की विभिन्न किस्मों की उपयोगिता व ज्वार के मूल्य संवर्धन पर अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं। मूल्य संवर्धन के तहत ज्वार के चारे के पैलेट्स और ब्लॉक बनाए जा रहे है। वहीं बिग बाजार सहित अनेक विपणन केन्द्रों पर ज्वार से बने उत्पाद- उपमा, पोंगल, स्नैक्स व रवा इत्यादि उत्पाद बनाकर बेचे जा रहे हैं जो कि उपभोक्ता द्वारा पसन्द भी किए जा रहे हैं।
उद्घाटन सत्र में टेक्सास (अमेरिका) की ऐ एण्ड एस यूनिवर्सिटी में फल व सब्जी उन्नयन केन्द्र के निदेशक डॉ. भीमू पाटिल ने विकसित राष्ट्रों में खाद्य जनित रोगों का जिक्र करते हुए बताया कि मृत्यु दर के तीन प्रमुख कारण डायबिटीज, हृदय रोग व मस्तिष्क आघात है। वहीं अविकसित राष्ट्रों में कुपोषण व भुखमरी मुख्य कारण हैं। दोनों ही परिस्थितियों मे ज्वार सरीखे लघु अनाज द्वारा इनसे मुक्ति मिल सकती है इसलिए राष्ट्रों को अपनी खाद्य सुरक्षा परियोजनाओं में गुणवत्तायुक्त व पोषक तत्वों से भरपूर ज्वार के उत्पादन व ज्वार के मूल्य संवर्धित उत्पादों को बढावा देना चाहिए।
इस अवसर पर ज्वार परियोजना से पूर्व में जुडे वरिष्ठ वैज्ञानिकों को विशिष्ट पुरस्कारों से नवाजा गया। इनमें डॉ. एम.एस. शक्तावत, डॉ. लता चौधरी, डॉ. विठ्ठल शर्मा, डॉ. डी.के. जैन, डॉ. ए.एल. माली, डॉ. टी. हुसैन, डॉ. बी.एस. राणा, डॉ. बेलम रेड्डी, डॉ. आर.पी. ठाकुर, डॉ. कुसुम माथुर प्रमुख थे। इस अवसर पर दो पुस्तकों, ५ हेंड बुक्स व चार पेम्पलेट का विमोचन भी अतिथियों ने किया।
कार्यक्रम का संचालन शस्य विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. विरेन्द्र नेपालिया ने किया व धन्यवाद् आयोजन सचिव डॉ. बी.आर. रणवा ने ज्ञापित किया। आयोजन सचिव डॉ. बी. आर रणवा ने बताया कि इस वार्षिक बैठक व कार्यशाला में देश भर के १० राज्यों के १७ विश्वविद्यालयों व २४ केन्द्रों के १३० वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।
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