डॉ.प्रभात कुमार सिंघल/ भारतीय नव वर्ष हर वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 18 मार्च को मनाया जा रहा है जब विक्रम सम्वत 2075 प्रारम्भ हो रहा है।
हमारी संस्कृति में प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक एवम् परम्परागत धारणाएं प्रचलित हैं।हर प्रव प्रकृति एवम् खुशहाली के रूप में कृषि से जुड़ा हुआ है। हम सभी पर्वों को पूरे आनंद एवम् उत्साह से भाईचारे की भावना से मनाते आये हैं।
भारतीय नव वर्ष को मनाने के पीछे पुराणों के अनुसार इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ कीथी।सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। बताया जाता है कि इस दिन विक्रमादित्य ने देश के सम्पूर्ण ऋण को चुका कर 57 ईसा पूर्व में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से इस पर्व को प्रारम्भ किया था।
माना जाता है कि प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। यह दिन शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन है। एक मान्यता है कि इसी दिन सिक्खों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म हुआ था। यह भी मन जाता है कि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया था। इसी दिन सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल प्रकट हुए थे। एक अन्य मान्यता के मुताबिक विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु इसी दिन को चुना था। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन होना माना जाता है।
जिस प्रकार भारतीय नव वर्ष के ऐतिहासिक महत्व के अनेक कारण हैं ठीक उसी प्रकार प्राकृतिक महत्व भी कम नही है। हमारी प्रिय वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंध बिखेर कर मन का आल्ल्दित करती है। नई फसलें पकती है और हमारे अन्नदाता धरतीपुत्रों को उनकी मेहनत का फल मिलने की ख़ुशी का यही समय होता है।
इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अतःकिसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
नव वर्ष को हम परस्पर एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ देते है। अपने मित्रों ,नातेदारों एवम् शुभचिंतकों कोशुभकामनाओ के सन्देशों का आदान प्रदान करते हैं। अपने घरों को खास कर द्वार को आम के पत्तों की बंदरवार से सजाते है। शुभ का प्रतीक भगवा पताका फहराते हैं। अपने धरों को साफ सुथरा कर रगोली आदि से सजाते हैं। इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के साथ साथ ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इस पर्व को चैत्र के नवरात्रों के रूप में मनाते है। मंदिरों एवम् घरों पर देवी की घट स्थापना कर जोर शोर से देवी का सप्ताह भर पूजन किया जाता है। इन दिनों में रामायण का सात दिन तक पाठ करने या अखंड रामायण करने की भी परम्परा है। शहरों में सार्वजनिक स्थानों चौराहो को सजाया जाता है।
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