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दस लक्षण पर्व के चोथे दिन मनाया उत्तम शौच धर्म दिवस

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30 Aug 17
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दस लक्षण पर्व के चोथे दिन मनाया उत्तम शौच धर्म दिवस उदयपुर.जीवन से लोभ, मोह, माया और कषाय जाएंगे तो क्षमा का भाव मन में आ सकता है। लोभी का कोई न ईमान होता है और ना ही कोई धर्म। लोभी में न स्थिरता होती है और न ही दृढता। यह संसार मोंह के वशीभूत होकर ही तो बसा है। संसार से आशय दुनियादारी से है परिवार से है। लोग मानते हैं कि संसार तो भगवान ने बसाया है लेकिन हकीकत में संसार यानि आपकी दुनिया आपका परिवार भगवान ने नहीं बल्कि मोह के वशीभूत होकर आपने स्वयं ने बसाया है। उक्त विचार आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज ने हुमड भवन में दस लक्षण पर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म दिवस के उपलक्ष्य में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि पवित्रता, शुचिता निर्मलता उत्तम शौच धर्म की पर्याय है। शौच का अर्थ शुद्धि है। तन की ही नहीं मन की भी शुद्धि करना। जिसने भी लोभ पर विजय पा ली उसने इस संसार में सब कुछ जीत लिया। लोभ चित्त को कलुषित करता है, लोभ ही सब पापो की जड है ,लोभ पाप का बाप है।
आचार्यश्री ने कहा- शुचेर्भावः शौच परिणामो की पवित्रता को शौच कहते है। शोच धर्म का तात्पर्य मन की पवित्रता से है। रात दिन माला जपते रहो ,सामाजिक पाठ करते रहो पर यदि मन में लोभ बैठा हुआ है तो सब कुछ बेकार है। लोभ की अंजलि में सातो समुद्र के रत्न भी थोडे है।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में सबसे बडा धन अगर कोई है तो वह है सन्तोष। जिसके पास सन्तोष है उसका लोभ आप ही छूट जाएगा। दुनिया में लोभ हर समस्या की जड है। लोभ के वशीभूत व्यक्ति किसी की हत्या करने से भी नहीं चूकता है। इसलिए धर्म ध्यान और सत्संग ही लोभ से बचने के उपाय है।
अध्यक्ष शंतिलाल वेलावत ने बताया कि हुमड भवन में प्रातः सन्मति साधना शिविर का आयोजन हुआ जिसमें प्रातः 5ः3॰ बजे से ध्यान तत्पश्चात अभिषेक शांतिधारा हुई उसके बाद नित्य नियम पूजन के साथ दश लक्षण विधान सम्पन्न हुआ ।

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