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रजत आभा में ठाकुरजी के दिव्य दर्शन से हजारो भक्त हुए निहाल

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07 Jul 18
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रजत आभा में ठाकुरजी के दिव्य दर्शन से हजारो भक्त हुए निहाल निम्बाहेडा | त्रयोदश कल्याण महाकुंभ के अंतिम दिवस आषाढ कृष्णा अष्टमी शुक्रवार को चमत्कृत करने वाली रजत आभा में ठाकुरजी के दिव्य दर्शन कर हजारो भक्त निहाल हो गए। प्रातरू लगभग ११.३० बजे मंदिर पर ऋगवेद के वेद मूर्तियों एवं आचार्य रामानुज जी के मंत्रोच्चार, शांति सुक्त एवं ध्रूव मंत्र के साथ दिव्य ध्वजारोहण किया गया। इस दौरान समूचा वेदपीठ परिसर ठाकुरजी के जयकारो से अनवरत गूंजता रहा। इसी बीच शंखनाद, घंटा घडियाल, ढोल नगाडो की ध्वनि के साथ जोरदार आतिशबाजी के बीच ठी १२ बजकर ३२ मिनट पर जब ठाकुरजी के पट खोले तो खचाखच भरा परिसर गगन भेदी नारो से गूंज उठा। इस पावन अवसर पर अनेकानेक भक्त अपने आराध्य की अनुपम झलक को नेत्रो में बसाने के लिए इतने आतुर थे कि भरी दुपहरी की धूप का भी उन्हें एहसास तक नहीं हुआ। इस दौरान आचार्य रामानुज जी, द्वय वेदमूर्ति, मेवाड, वागड,मालवा सहित अन्य क्षेत्रों से बडी संख्या में आए ठाकुरजी के गादीपतियों और हजारो भक्तों ने अपने आराध्य ठाकुरजी के दिव्य दर्शन कर स्वयं को धन्य कर दिया। इस मौके पर उमडी जन गंगा और उनकी अगाध श्रद्धा ने कल्याण नगरी की भक्ति के इतिहास में एक नवीन रजत पृष्ट और जोड दिया। इस दौरान परिसर में ठाकुरजी को तोपो से सलामी दी गई, जिसे देखकर हर कोई दंग रह गया। कई भक्तों का कहना था कि लगातार १३ वें वर्ष ठाकुरजी के मन भावन दर्शन और अनुठी आभा के साथ यहां का महाकुंभ इतनी उंचाईयों पर पहुंच रहा है कि आने वाले कुछ ही समय में यह पवित्र स्थान देश का पंचम धाम साबित हो सकेगा।
मातृ पितृ पूजन में गणेश पूजा को ताजा किया,
वेदपीठ की और से प्रतिवर्ष महाकुंभ के दौरान यज्ञ के यजमानों के साथ श्रद्धालुओं को माता पिता के प्रति श्रद्धान्वनत करने की भावना से किए जाने वाले मातृ पितृ पूजन को देख आचार्य रामानुज जी ने कहा कि संस्कार में सभी तीर्थो से कई अधिक महत्व माता पिता के चरणों का माना गया है। इसी भावना के साथ सभी को मातृ पितृ पूजन करना चाहिए। इस बीच तीन पीढ से जुडे लोगो द्वारा जब वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मातृ पितृ पूजन किया गया तो हजारों लोगो को इस बात की अनुभूति हुई मानों यहां भी गणेश रूप में कई पुत्र शिव पार्वती सम माता पिता की पूजा अर्चना कर स्वयं को धन्य कर रहे हो। इसी बीच पायल सिंह और आचार्य संदीप शर्मा द्वारा मातृ भक्ति युक्त मन भावन रचानाएं प्रस्तुत की गई।
पूर्णाहुति के साथ वासुदेव महायज्ञ सम्पन्न,
महाकुंभ के दौरान पद्म यज्ञ शाला में शुक्रवार को प्रातरू पांच दिवसीय ५१ कुण्डीय वासुदेव महायज्ञ के अंतिम दिन दशवांश हवन एवं स्थापित देवताओं व ब्रम्हाण्ड के आमंत्रित सभी देवो के नाम २१ लाख से अधिक गोघृत एवं शाकल्य की आहुतियां देने के साथ ही जब ४०० से अधिक यजमानों द्वारा सामुहिक रूप से पूर्णाहुति की गई तो ऐसा लगा मानो यहां राजसू यज्ञ सम्पन्न हो गया हो और समस्त ब्रम्हाण्ड के देव तथा यजमानों के पूर्वज भी उन्हें पूरे आत्मिक भाव से आशीर्वाद देकर धन्य कर रहे हो।
वेदमूर्तियों का किया सम्मान,
बद्रीकाश्रम कथा मंडप में व्यासपीठ पर विराजित आचार्य रामानुज जी ने छोटी काशी के रूप में मान्य बांसवाडा से ऋगवेद शांखायन शाखा के आचार्य पं. इन्द्रशंकर झा, पं. हर्षद राय नागर का शॉल व उपरना ओढा, तुलसी माला पहनाकर अभिनन्दन करते हुए कहा कि संभवतह यह प्रथम अवसर था जब महाकुंभ के दौरान वेदमूर्ति द्वय का आगमन वेद भगवान की कृपा से ही हुआ हो। इस मौके पर दोनो वेद विद्वानों ने गद गद भाव से कहा कि वे यहां स्थापित हो रहे श्रीकल्लाजी वैदिक विश्व विद्यालय के डिजिटल ग्रंथागार के लिए स्वयं उनके पास एवं साथियों के सहयोग से लगभग ५०० वर्ष पुराने ग्रंथो तक की संहिताओं को डिजिटलाईजेशन के माध्यम से शिघ्र ही सुलभ कराएगें। उनके साथ आए चंदूलाल उपाध्याय की और से ३ कल्पवृक्ष के जोडे एवं ४ पारस पीपल के पौधे भी ठाकुरजी के लिए अनुपन भेंट के रूप में स्वीकार किए गए। इस दौरान वेदपीठ के प्रमुख छायाकार योगेश शर्मा की और से आचार्य रामानुज जी को उनकी विशाल छवि भेंट की गई। इस दौरान उनकी और से ठाकुरजी के दिव्य दर्शन, ध्वजारोहण, महाकुंभ के विभिन्न कार्यक्रमों एवं वैदिक विश्व विद्यालय की परिकल्पना को विशाल एलईडी पर दर्शाया गया, जिसकी सभी ने सराहना की।
कृष्ण सुदामा चरित्र से मैत्री भाव स्वीकार करें-आचार्य रामानुज,
भागवत मर्मज्ञ आचार्य रामानुज जी ने कहा कि संसार में अच्छे रिश्ते बनाने के लिए कृष्ण सुदामा के मैत्री भाव को अंगीकार करना होगा तभी विश्व बंधूत्व की भावना मान्य हो सकेगी। आचार्य श्री शुक्रवार को व्यासपीठ से श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा के अंतिम दिवस कृष्ण सुदामा चरित्र के साथ युधिष्ठर द्वारा राजसू यज्ञ, शिशुपाल उद्धार एवं राजा परिक्षित को मोक्ष एवं मुक्ति दायिनी कथा के कई मर्म समझाते हुए कहा कि श्रीमद भागवत मुक्ति का वह ग्रंथ है जिसके भाव को समझने पर इसी जीवन में मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होने के साथ ही मरणोप्रांत भी श्री हरि के चरणें में स्थान मिल जाता है। उन्होनें द्वारिकाधीश के १००८ रानियों से विवाह का मर्म समझाते हुए कहा कि भागवत के अंतिम स्कंध के मर्म को समझकर हमें गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए।
श्रीकृष्ण के विवाह से बुद्धि रूपी कन्या को समर्पित करने का संकल्प लें-आचार्य रामानुज,
भागवत मर्मज्ञ आचार्य रामानुज जी ने कहा कि प्रभू की भक्ति प्राप्ति के लिए रूकमणी और श्रीकृष्ण तथा तुलसी और शालीग्राम के विवाह प्रसंग के दौरान उन्हें दिए जाने वाले कन्यादान में अपनी बुद्धि रूपी कन्या को द्वारकाधीश को समर्पित करने का संकल्प करें, ताकि आपका जीवन धन्य हो सकें। आचार्य श्री गुरूवार रात्रि को बद्रीकाश्रम कथा मंडप के व्यासपीठ से श्रीमद भागवत महापुराण के रूकमणी विवाह प्रसंग का विस्तार कर रहे थे।
उन्होनें कहा कि तुलसी और रूकमणी जी के विदाई प्रसंग से इस बात का संकल्प लें कि देश में किसी भी नारी का कभी अत्याचार न हो और दहेज रूपी दानव का अंत हो सके। उन्होनें कहा कि यत्र नारी पूज्यंते तत्र रमंते देवता ये हमारी भारतीय संस्कृति का द्योतक है, इस अवधारणा को सच्चे मन से स्वीकारना होगा। इसी के साथ उन्होनें विवाह के साक्षी बने हजारों लोगो का आव्हान किया कि वे यहां स्थापित होने वाले कल्लाजी वैदिक विश्व विद्यालय में विद्वान ब्राम्हण तैयार करने के लिए तन मन धन से सहयोग कर स्वयं को धन्य करें। उन्होनें श्रीसुक्त और पुरूसुक्त का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि विवाह की रस्मों में किए जाने वाले मंत्रोच्चार में भी लक्ष्मी और नारायण की स्तुति निहित है। इसी कारण विवाहित युगलों का दाम्पत्य जीवन सफल हो पाता है। उन्होनें विवाह के दौरान वधू पक्ष की और से वर के चरण प्रक्षालन के महत्व को बताते हुए कहा कि कन्या पक्ष द्वारा वर पर भरोसा कर उनके चरण प्रक्षालन के साथ जब चरण पूजा की जाती है तो वर का भी दायित्व होता है कि वे आजीवन उनके भरोसे को बनाए रखे। आचार्य श्री ने विवाह में चार फोरो के महत्व को बताते हुए कहा कि वैदिक काल से विवाह के लिए चार फेरे और सप्तपदी का प्रावधान है। इस दौरान व्यासपीठ की सहस्त्र दीप ज्योति से की गई महाआरती का दृश्य समूचे कथा मंडप में झिलमिलाते सितारों को प्रकट करते हुए वेदपीठ को दैदिप्य मान नक्षत्र के रूप में निरूपित करते नजर आए।
धूमधाम से निकली ठाकुरजी की बारात,
महाकुंभ के दौरान रूकमणी व कृष्ण तथा तुलसी व शालीग्राम विवाह के लिए गोधुली वेला में रामेश्वर महादेव विवेकानन्द वाटिका से ढोल नगाडो, बैण्ड बाजो, सतरंगी आतिशबाजी व गगन भेदी जयकारो के साथ रजत रथ में विराजित शालीग्राम एवं लड्डू गोपाल की बारात का मनोहारी दृश्य देखते ही बनता था, जिसमें मुख्य बाराती ठाकुर श्री कल्लाजी के साथ ही सैंकडो लोग अपने आराध्य की बारात में द्वारिकावासी बनकर इतने आनन्दित हो रहे थे कि उनके आनन्दन का कोई पारावार नहीं था। यह बारात मंथन गति से कल्याण चौक, राधाकृष्ण कॉलोनी होते हुए जब आनन्द वन रूपी वेदपीठ परिसर में पहुंची तो जोरदार आतिशबाजी व पुष्प वर्षा के साथ कन्या पक्ष की और से अदभूद स्वागत हुआ। वहीं समूचा वेदपीठ परिसर और कथा मंडप श्रीकृष्ण एवं ठाकुरजी के जयकारो से गूंज उठा। इसी बारात में चित्रकूट से आए लक्ष्मीनारायण दास द्वारा सजीव झांकी के रूप में सुसज्जित अश्वारोही श्रीकृष्ण बलराम और इन्द्र की झांकी भी ऐसी शोभायमान थी कि मानों इस बारात में ब्रम्हाण्ड के देवता भी शामिल हो गए है।
जब वर को कथा मंडप के विवाह मंडप में ले जाना था तो द्वार पर मान मनोहार के साथ उनकी अगवानी कर तोरण की रस्म अदा करने के पश्चात उन्हें विवाह मंडप में विधिवत विराजित कर आचार्य श्री के मंत्रोच्चार के साथ वैदिक परम्परा अनुसार यज्ञ कुण्ड के चारो और फेरे दिलवा कर कृष्ण रूकमणी एवं शालीग्राम तुलसी का विवाह कराया गया, जिसमें हजारो भक्तों ने साक्षी के रूप में शामिल होकर स्वयं को धन्य किया। इस मौके पर श्याम सोनी परिवार की और से आचार्य रामानुज जी को मेवाडी शिरोपाव बंधवा एवं शॉल ओढाकर जब अभिनन्दन किया गया तो समूचा कथा मंडप तालियो से गूंज उठा। कथा विराम के दौरान सहस्त्र दीप ज्योति से व्यासपीठ की महाआरती की गई। वहीं दूसरी और ठाकुरश्री कल्लाजी की संध्या महाआरती में भी हजारो लोग पूरी श्रद्धाभाव के साथ शामिल हुए।
लेहरूदास की भजन संध्या ने भोर तक बांधे रखा श्रोताओं को,
महाकुंभ के सप्तम दिवस गुरूवार रात्रि को मेवाड के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त भजन गायक लेहरूदास एण्ड पार्टी के कलाकारो द्वारा भजनानन्दी स्वर लहरियों के बीच दी गई मन भावन भजनो की प्रस्तुतियों के फलस्वरूप भोर होते तक समूचा कथा मंडप भक्ति रस सरिता में इतने गोते लगाता रहा कि गायक और श्रोता इतने एकाकार हुए कि भजन सम्राट की गायिकी ने मानों उन्हें बरबस ही भक्ति मोह पाश से बांध लिया हो। महेश माली द्वारा गणपति वंदना के साथ प्रारंभ हुई प्रारंभ हुई भजन संध्या में लेहरूदास वैष्णव ने रामायण की प्रसिद्ध चोपाई मंगल भवन अमंगल हारी से भजनों की शुरूआत करते हुए वीरवर कल्लाजी राठौड की गौरव गाथा, महाराणा प्रताप की वंदना करते हुए मायड थारो वो पुत कटे सुनाकर वातावरण को वीर रस से भर दिया। वहीं एकादश रूद्रावतार हनुमानजी, भगवान शंकर, भैरव जी सहित कई देवी देवताओं के एक से बढकर एक भजन सुनाकर पूरी रात भक्तों को खूब आनन्दित किया। भजन संध्या का संचालन हरिश वैष्णव द्वारा किया गया। इस दौरान लेहरूदास की प्रसिद्ध रचना मां की ममता को श्रोताओं ने सुनकर खूब आनन्द उठाया। इस दौरान भजन संध्या आयोजन के लिए इन्दौर की ज्योति सहित समस्त कलाकारो एवं गायको का वेदपीठ की और से आत्मिक स्वागत अभिनन्दन किया गया।
एतिहासिक रहा १३ वां कल्याण महाकुंभ,
वेदपीठ पर विराजित ठाकुरजी सहित पंच देवो के विग्रहो के विगत द्वादश वर्षो में आयोजित महाकुंभ के बाद इस वर्ष हुए महाकुंभ ने पिछले वर्षो रिकार्ड तोडते हुए ऐसे कई प्रतिमान स्थापित किए, जिसके फलस्वरूप वेदपीठ के इतिहास में यह महाकुंभ स्वर्णिम पृष्ट बनकर आने वाली पीढयों को प्रेरणा देता रहेगा, जिसमें १२ करोड के लक्ष्य के मुकाबले १५ करोड ओम नमों भगवते वासुदेवाय के जाप, प्रथम बार मेवाड अंचल में १२१ तुलसी शालीग्राम विवाह, वेदमूर्तियों का आगमन, कल्पवृक्ष के जोडो की प्राप्ति, एक से बढकर एक भजन संध्या, शोभायात्रा में एक लाख से अधिक भक्तों की भागीदारी, प्रतिदिन फूल बंगले में नित नए श्रृंगार और छप्पन भोग सहित कई अनुष्ठानों ने इस महाकुंभ को द्विगुणित कर दिया।
वेदपीठ की और से जताया आभार,
कल्याण महाकुंभ के भव्य आयोजन की सफलता में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करने वालों के प्रति वेदपीठ के न्यासियों की और से आत्मिक आभार जताते हुए कहा गया कि इतने बडे अनुष्ठान को निर्विघन एवं शांति पूर्वक सम्पन्न कराने में जिला एवं पुलिस प्रशासन, प्रेस एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, व्यापारिक, स्वयंसेवी एवं विभिन्न संगठनो, हजारो कल्याण भक्तों, वीर वीरांगनाओं, शक्ति ग्रुप की बालिकाओं, कृष्णा शक्ति दल की माता बहनों, वेदपीठ के आचार्यो, बटुको, कल्याण नगरी वासियों सहित हजारो लोगो के तन मन और धन से दिए गए सहयोग के फलस्वरूप ही यह महाकुंभ गगन भेदी उंचाईयों के साथ सानन्द सम्पन्न हो सका है। न्यासियों द्वारा वेदपीठ पर विराजित ठाकुरजी सहित ब्रम्हाण्ड के समस्त देवों के प्रति भी आत्मिक भाव से कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हें अनुनय आग्रह किया कि वे सभी भक्तों के घर परिवार, समाज, देश प्रदेश और विश्व में करूणा की वर्षा करते हुए सर्वत्र सुख समृद्धि और मंगल करें।

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