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ऋषि दयानन्द की कृपा से सुनने का अवसर प्राप्त होता है

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13 Jun 18
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ऋषि दयानन्द की कृपा से सुनने का अवसर प्राप्त होता है श्रीमदद्यानन्द ज्योतिर्मठ आर्ष गुरुकुल, देहरादून का तीन दिवसीय 18वां वार्षिकोत्सव 3 जून, 2018 को समाप्त हो चुका है। दिनांक 2 जून, 2018 को उत्सव के दूसरे दिन सायंकालीन सत्र में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डा. महावीर अग्रवाल सहित अन्य कुछ विद्वानों के उपदेश हुए। हम यहां वह उपदेश प्रस्तुत कर रहे हैं।

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डा. महावीर अग्रवाल ने अपने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि यदि दयानन्द भारत भूमि पर न आते तो न तो हम व्याख्यान देते और न आप उन व्याख्यानों को सुन पाते। हमें यह वेदों व देश हित के व्याख्यान देने व सुनने के अवसर प्राप्त न होते। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन का सर्वस्व वैदिक धर्म और संस्कृति की रक्षा, देश की स्वतन्त्रता और उन्नति आदि कार्यों के लिए समर्पित किया। आचार्य जी ने कहा कि वर्तमान में भी देश के आकाश में काली घटायें छायी हुई हैं। जिन धार्मिक एवं सांसारिक शिक्षाओं से मनुष्य का जीवन बनता है वह ज्ञान व शिक्षायें न जाने कहां खो गयीं हैं। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में यदि आशा कि कहीं कोई किरण है तो वह केवल हमारे ऋषि दयानन्द जी की पाठ विधि पर चलने वाले आर्ष गुरुकुल व गुरुकुलीय परम्परा हैं। आचार्य महावीर अग्रवाल जी ने कहा कि यदि आप देश के भौतिक विकास से समूचे भारत की उन्नति का अनुमान करते हैं तो यह सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि देश का निर्माण तब होगा जब देश में चरित्रवान आचार्य व युवक होंगे। आज स्थिति इसके सर्वथा प्रतिकूल है।

डा. महावीर अग्रवाल ने कहा कि आप गुरुकुल पौन्धा देहरादून के रुप में वैदिक धर्म एवं संस्कृति का एक उज्जवल केन्द्र देख रहे हैं। आचार्य महावीर जी ने आज के समाज में धन के महत्व की चर्चा की। उन्होंने आज के समाज में धन को अधिक महत्व देने से उसके दुष्परिणाम का एक उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि एक आर्थिक दृष्टि से समृद्ध धनवान परिवार में एक मां और उसका एक पुत्र था। मां मुम्बई के एक फ्लैट में रहती थी। मुम्बई में इस परिवार के दो फ्लैट थे जिनका मूल्य करोड़ो रुपये है। पुत्र अमेरिका में रहता था। जब अन्तिम बार पुत्र भारत आया तो मां ने अपने पुत्र से विनती की कि उसका मन घर में अकेले रहकर लगता नहीं है। उन्होंने अपने पुत्र को कहा कि या तो तू मुझे अमेरिका अपने साथ ले चल या फिर भारत में किसी वृद्ध आश्रम में रखवा दे। पुत्र ने कहा कि मुझे अमेरिका जल्दी जाना है। मैं जल्दी आऊंगा, तब इस समस्या को हल करेंगे। पुत्र अमेरिका चला गया और वहां जाकर ऐसा व्यस्त हुआ कि मां से हुई बातों को भूल गया। इधर मां मुम्बई के अपने फ्लैट में जैसे तैसे रहती रही। एक वर्ष से भी अधिक हो जाने पर पुत्र को मां की याद आई। उसे लगा कि यदि वह मुम्बई के अपने दोनों फलैट बेच दे तो उसे करोड़ों रुपये का धन प्राप्त हो जायेगा। वह भारत आया। घर पहुंच कर उसने फ्लैट का दरवाजा खटखटाया परन्तु अन्दर से कोई उत्तर नहीं मिला। उसने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि कई महीनों से उन्होंने बुढ़िया को नहीं देखा है। पुलिस बुलाई गई और दरवाजे को तोड़ा गया। दरवाजे के पीछे बुढ़िया का शरीर नहीं अपितु हड्डियों का अस्थि पंजर पड़ा मिला। कई महीने पहिले ही बुढ़िया की मृत्यु हो चुकी थी। आचार्य महावीर जी ने पूछा कि यदि यही धन है तो फिर दुःख कैसा होगा?

आचार्य महावीर अग्रवाल जी ने कहा कि देश को सुखी व समृद्ध बनाने का उपाय गुरुकुल है। उन्होंने बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को कहा कि अपनी सन्तानों को गुरुकुल में पढ़ायें। ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान भारत में ऐसा दिन लायें जब घर-घर में वेदों की ऋचायें गूंजे। इसी के साथ आचार्य महावीर जी ने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

उत्सव में उपस्थित स्थानीय विधायक श्री सहदेव सिंह पुण्डीर जी का सम्बोधन भी हुआ। उन्होंने कहा कि मैं गुरुकुल में वेदों के ज्ञान और संस्कारों की शिक्षा देने के लिए आचार्य डा. धनंजय जी का आभार व्यक्त करता हूं। विधायक जी ने आज के माता-पिता की समस्याओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आज कल बहुत से लोगों के पुत्र व पुत्रियां विदेशों में रहते हैं। ऐसे लोगों के माता-पिताओं की सेवा करने वाला कोई नहीं है। विधायक जी ने कहा कि हमारे बच्चे अपने धर्म और संस्कृति की जानकारी नहीं रखते। वह पाश्चात्य संभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं। इस कारण वह अपने वैदिक धर्म और संस्कृति की उपेक्षा करते हैं। विधायक श्री सहदेव सिंह पुण्ज्ञीर जी ने अपनी विधायक निधि से गुरुकुल को निर्माण कार्यों के लिए पांच लाख रुपये देने की घोषणा की। उन्होंने कहा निकटवर्ती स्थानों, हमारे जनपद सहित देश भर में वैदिक धर्म व संस्कृति का प्रचार प्रसार हो इसके लिए मैं गुरुकुल, इसके आचार्य और आप सबको अपनी शुभकामनायें देता हूं।

आर्यसमाज के विद्वान एवं अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों के सम्पादक डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने भी सभा को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि मुझे यहां अपार भीड़ देखकर गुरुकुल कांगड़ी के पुराने समय के उत्सवों की स्मृति ताजा हो गई है। मैं इस गुरुकुल और यहां ऋषिभक्तों की भारी संख्या देखकर आह्लादित हो रहा हूं। वर्षों बाद मैंने आर्यों का ऐसा विशाल जनसमूह देखा है। उन्होंने कहा कि आज देश को गुरुकुलीय शिक्षा की आवश्यकता है। आचार्य डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी ने गुरुकुलों में पढ़ाये जाने वाले सीबीएसई पाठक्रमों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि गुरुकुल पौंधा के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने देश में आठ गुरुकुलों की स्थापना की है। वह उनका सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं। इन गुरुकुलों में एक कन्या गुरुकुल भी है। इन महद् कार्य को करके व गुरुकुलों को सफलतापूर्वक चलाकर स्वामी जी ने एक आदर्श एवं प्रशंसनीय कार्य किया है। उन्होंनें प्रसन्नता के शब्दों में कहा कि स्वामी प्रणवानन्द जी के सभी गुरुकुलों में आर्ष व्याकरण पद्धति से शिक्षा दी जा रही है। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने भी स्वामी दयानन्द जी की भावना के अनुसार संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण की शिक्षा देने के लिए गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना व उसका संचालन किया था। डा. विनोद विद्यालंकार जी ने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि गुरुकुल पौंधा उस परम्परा में चल रहा है। स्वामी प्रणवानन्द जी और आचार्य डा धनंजय जी को आर्ष पद्धति से गुरुकुल चलाने के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया। डा. विनोद जी ने कहा कि संस्था चलाने के लिए बड़ी धनराशि की आवश्यकता होती है। इसके लिए भामाशाहों व सरकारी सहायता की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मैं अपनी अनन्त शुभकामनायें इस गुरुकुल व आर्ष पद्धति से चलने वाले गुरुकुलों के लिए करता हूं।

आज उत्सव में गुरुकुल के ब्रह्मचारियों द्वारा तैयार संस्कृत के व्याकरण ग्रन्थ ‘उणादि-कोश’ के पांचवें भाग का विमोचन किया गया। आचार्य धनंजय जी ने कहा कि उणादि कोष पढ़ाने व पढ़ने की प्रेरणा ऋषि दयानन्द जी ने की है। जिन ब्रह्मचारियों ने उणादि कोष का संग्रह व सम्पादन कार्य किया, उन्हें गुरुकुल व इसके आचार्य धनंजय जी की ओर से शाल व एक घड़ी देकर सम्मानित किया गया। गुरुकुल के प्रतिभाशाली पूर्व ब्रह्मचारी श्री मोहित कुमार जी ने उत्तर प्रदेश की लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण की है। इसकी जानकारी दी गई। स्वामी प्रणवानन्द जी ने उनका सम्मान किया। आचार्य धनंजय जी ने बताया कि मोहित जी एक निजी कम्पनी में सीओ हैं और वहां अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद का कार्य करते हैं।

गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी श्री शिवदेव आर्य गुरुकुल की विख्यात मासिक पत्रिका ‘आर्ष ज्योति’ का सम्पादन करते हैं। हरिद्वार में आयोजित गुरुकुल सम्मेलन के वह मीडिया प्रभारी बनाये गये हैं। ऐसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य वह करते हैं और गुरुकुल के बच्चों को पढ़ाते भी हैं। श्री शिवदेव आर्य को आज के कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। इस वर्ष गुरुकुल में आठ नये स्नातक तैयार हुए हैं। उन सबका भी सम्मान इस अवसर पर स्वामी प्रणवानन्द जी और आर्य विद्वानों ने किया। सभी नवस्नातकों ने अपने आचार्य डा. धनंजय जी और आचार्य चन्द्र भूषण शास्त्री का भी सम्मान किया। आज ‘आर्ष-ज्योति’ मासिक पत्रिका के ‘वेद-वेदांग विशेषांक’ का लोकार्पण भी किया गया जिसका सम्पादन श्री शिवदेव आर्य ने बहुत योग्तयापूर्वक किया है।

स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि ब्रह्मचारियों को दीक्षा देते समय आचार्य की मन की स्थिति भावुकता से पूर्ण होती है। आचार्य की इस मनोदशा का स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती ने सजीव चित्रण किया। उन्होंने कहा कि आचार्य अपने ब्रह्मचारियों का सर्वांगीण विकास करता है। स्वामीजी ने संस्कार विधि में दिये गये पितृ उपदेश की मुख्य बातों को भी प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि माता पिता की भावना होती है कि उनका पुत्र विद्याध्ययन समाप्त करके ज्ञान विज्ञान से पूर्ण होकर उनके सामने घर आये। यह कार्य गुरुकल के आचार्य द्वारा ही किया जाता है। स्वामी जी ने कहा कि चारों वेद पढ़ने में 48 वर्ष लगते हैं। यदि देश में यह व्यवस्था होती तो देश व समाज का भव्य रूप बनता। ऋषि दयानन्द का स्वप्न था कि देश ऐसा बनें कि यहां वेदों के चोटी के विद्वान बड़ी संख्या में हों। देश व विश्व वेद मार्ग पर चलें। ऋषि दयानन्द अविद्या का नाश होना देखना चाहते थे। स्वामी जी ने कहा कि ऋषि देश को चक्रवर्ती राज्य के रूप में देखना चाहते थे। आचार्य अपने शिष्यों को विद्या और संस्कार देता है। उन्होंने कहा कि आचार्य दीक्षा देते हुए कहता कि मेरे शिष्यों! तुम मेरे जीवन की अच्छाईयों को अपनाना और मेरे जीवन की जो बुराईयां हां, उन्हें छोड़ देना वा मत अपनाना। स्वामी जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी की शिक्षाओं से ही भारत विश्व गुरु और महान बन सकता है। अपनी वाणी को विराम देते हुए स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आर्ष गुरुकुल हमारी धर्म व संस्कृति के दिव्य स्तम्भ हैं। उन्होंने गुरुकुल पौंधा के कार्यों की प्रशंसा कर अपने वक्तव्य को विराम दिया।

आज के सत्र में व्याख्यान आरम्भ होने से पूर्व प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. नरेशदत्त आर्य जी के भजन हुए। उनका पहला भजन था ‘वेद पढ़ो और पढ़ाया करो। वेद सुनों और सुनाया करो।।’ इस भजन का एक-एक शब्द हृदय को छू रहा था। सभी श्रोता भाव विभोर होकर उनका यह भजन सुन रहे थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने दो अन्य भजन भी प्रस्तुत किये जिसमें तुलसीदास जी की कुछ वेदानुकूल चौपाईयां थीं। स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी के सम्बोधन के बाद सामूहिक सन्ध्या हुई और सायंकालीन सत्र का समापन हुआ। गुरुकुल पौन्धा के उत्सव के कार्यक्रमों की जो गतिविधियां हमने नोट की थी वह सब सामग्री भी हम इस लेख के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। यह गुरुकुल के उत्सव पर हमारा अन्तिम लेख है। हमने गुरुकुल के उत्सव से संबंधित समाचारों को लगभग 25 किश्तों में प्रस्तुत किया है। बहुत से पाठकों ने इसे देखा और पसन्द भी किया है। हम सबके प्रति अपना आभार और कृतज्ञता प्रस्तुत करते हैं। ओ३म् शम्।

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