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श्रीराम कथा को आत्मसात करने के लिए शांत चित्त जरुरी

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07 Jun 18
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सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल उदाजी का गडा में चल रही श्री राम कथा के छठे दिन महामण्डलेश्वर श्रीमहंत श्री हरिओमदासजी महाराज ने कहा कि श्रीराम कथा को आत्मसात करने के लिए चित्त का शांत होना जरुरी है । जब तब हमारे चित्त में विचारों के झंझावात और सपनों के जंजाल चलते रहेंगे, मन लाभ-हानि के तराजू पर ऊपर-नीचे होते रहेगा, तब तक हम प्रभु कृपा को प्राप्त नहीं कर सकते ।महाराजश्री ने कहा कि जिसके भीतर दिशा और दृष्टि का अभाव होता है, उसके जीवन को दुर्दशा का शिकार होना पडता है । मन में किसी प्रकार का संशय न रहने दे ।
अज्ञानता को दें चुनौती - महामण्डलेश्वर हरिओमदास महाराज
हमारे पास जो भी विकलता, वेदना, दुःख, अभाव अवसाद है उसका मूल कारण अज्ञानता है । प्रमाद के कारण हम सत्य को नहीं जानते । अपनी अज्ञानता को चुनौती दे ताकि द्वंद - दुविधा अवसाद से मुक्त हो सके । लालीवाव मठ पीठाधीश्वर हरिओमदासजी महाराज ने बुधवार को श्री राम कथा में यह विचार व्यक्त किए । दिव्य जीवन कैसे पाएं, विषय पर चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि द्वंदों के आघात से मुक्त होने के लिए स्थायी समाधान का पहला साधन श्रवण है फिर मनन । उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक होने का अर्थ बहुत स्वाभाविक हो जाना है ताकि स्वप्न में भी आप हिंसा न करे सकें ।जो व्यक्ति धर्म के पथ पर चलकर नियम व नीति से जीवन जीता है, सुख स्वयं उसके पीछे दौडे चला आता है । बिना नीति के घर, परिवार, राजनीति और अर्थनीति नहीं चल सकती ।
महाराजश्री ने कहा मनुश्य वासनाओं में फंसा रहता है । परोपकार ही पुण्य है । आस्था में ही प्रभु की प्राप्ति का रास्ता है । यह कहना महाराज श्री ने कहा कि भक्त उसे कहते है।, जिस भय नहीं होता । मनुश्य तभी डरता है, जब उसकी ईष्वर से दूरी होती है । जब मनुश्य भगवान से प्रीत लगा लेता है, तो उसे सारे सुखों का स्त्रोत प्राप्त हो जाता है । भगवान फूल की माला सजाने से नहीं बल्कि विष्वास से मिलते है । जहां आस्था है, वहीं रास्ता है । उन्होंने कहा कि ज्ञान का अर्थ जानना तथा भक्ति का अर्थ मानना है । भक्ति स्वतंत्र होती है । जिस व्यक्ति ने अपने मन के विकारों को षुद्ध कर लिया, वह भक्ति प्राप्त कर लेता है । भक्ति ईष्वर का दूसरा नाम है । परोपकार ही पुण्य की परिभाशा है ।
भक्ति की कोई उम्र नहीं - महामण्डलेष्वर हरिओमदास महाराज
सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में चल रही श्री राम कथा के दौरान महामण्डलेष्वर हरिओमदासजी महाराज ने कहा भक्ति के लिए कोई आयु निष्चित नहीं होती है । जिस तरह ध्रुव ने बाल्यावस्था में भजन करके प्रभु को पा लिया, हमें भी वेसी लगन करने की जरुरत है । भजन के लिए बुढापे की प्रतीक्षा मत करो, बुढापे में देह सेवा हो सकती है, देव सेवा नहीं ।
महाराज श्री ने कहा कि संसार सागर में भक्ति एक नौका की तरह है नौका के बिना भव सागर से पार नहीं उतरा जा सकता है उसी तरह भक्ति के बिना मनुष्य जीवन पटरी पर नहीं चल सकता है। इस मौके पर महाराजश्री ने कहा कि ईश्वर भक्ति का मार्ग अपना कर मनुष्य को मोक्ष का मार्ग पर चलना चाहिए। ईश्वर भक्ति के बिना मनुष्य शरीर का कल्याण संभव नहीं होगा।
आज श्री राम कथा में महाराजश्री ने श्रोताओं को जयंत मोह, श्री भरत चरित्र, सुतीक्षण मिलन, भक्त षबरी सीताहरण की कथा विस्तार से सुनाई ।आज की कथा में गुजरात प्रदेष अध्यक्ष-आर्यावृत्त षट्दर्षन साधु मंडल,श्रीमहंत श्री षंकरदासजी महाराज वरनामा (गुज.), श्री हरिदासजी महाराज (गुज.) आदि संतों का सानिध्य एवं आषीवर्चन प्राप्त हुआ ।इसके साथ ही सायं ५ बजे भगवानजी को भोग एवं उसके बाद व्यासपीठ की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया ।

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