GMCH STORIES

-आर्ष गुरुकुल पौंधा-देहरादून में सम्पन्न उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कारों की विस्तृत रिर्पोट

( Read 13723 Times)

21 Aug 17
Share |
Print This Page
यह वैदिक विधान है कि जब बालक या बालिका को गुरुकुल में प्रविष्ट कराया जाता है तो घर पर या गुरुकुल में उसका उपनयन व वेदारम्भ संस्कार सम्पन्न किया जाता है। जिसका उपनयन व वेदारम्भ संस्कार होता है उसे यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। इससे वह बालक द्विज अर्थात् भावी ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य बन जाता है। शूद्र शिक्षा व संस्कारविहीन अथवा पूर्णतयः अशिक्षित व्यक्ति को कहते हैं परन्तु उसकी गणना आर्यों में ही होती है। वह समाज में रहकर उच्च शिक्षित लोगों को उनके कार्यों में सहयोग करते हैं और इसके बदले में इन्हें सम्मान व जीवनयापन हेतु उपयुक्त धनराशि पारिश्रमिक के रूप में मिलती है। किसी से किसी प्रकार व किसी स्तर से कोई भेदभाव नहीं होता। महाभारत युद्ध के समय एवं बाद में वर्णव्यवस्था का वैदिक रूप कुछ विकृत हो गया था जिस कारण से समाज में जन्मना जातिवाद उत्पन्न हो हुआ जो आज भी जारी है। इस जन्मना जातिवाद के कारण हमारे आर्य वा हिन्दू समाज को बहुत हानि उठानी पड़ी है। आर्यसमाज के प्रचार से आज जन्मना जातिवाद के संस्कार कुछ कमजोर तो हुए हैं परन्तु इस जातीय महारोग का नाश नहीं हुआ है। हम जब विचार करते हैं तो हमें लगता है कि यह हमारे पुजारियों व पौराणिक पण्डितों के कारण विद्यमान है। यदि वह इसका जमकर विरोध करें तो उनके अनुयायी हिन्दू इसका व्यवहार बन्द कर दें। हिन्दू समाज के पुजारियों व पण्डितों के प्रति हमारी सम्मान की भावनायें हैं परन्तु जातीय हित व सुन्दर भविष्य के लिए हमें यह लिखना पड़ा है। आर्यसमाज का भी यही मत है, ऐसा हम समझते हैं। स्वामी दयानन्द जी ने जन्मना जातिवाद संबंधी वर्ण व्यवस्था को मरण व्यवस्था कहकर सम्बोधित करते हुए हमने हृदय का दुःख उजागर किया है परन्तु हमारा समाज गहरी नींद में सोया हुआ है। वह अपने विरोधियों व शत्रुओं को फलने फूलने का अवसर दे रहा है। यदि हिन्दू समाज जन्मना जातिवाद समाप्त कर संगठित हो जाये तो संसार का कोई समाज व जाति बल व शक्ति में हिन्दू-आर्य जाति का मुकाबला नहीं कर सकती है, ऐसा हम अनुभव करते हैं।

वैदिक धर्म एवं संस्कृति की रक्षा व उन्नति का आधार वैदिक गुरुकुल हैं। महाभारत काल से पूर्व व बाद तक भी भारत की शिक्षा दीक्षा गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली पर आधारित थी। इतिहास प्रसिद्ध महापुरुष श्री राम, श्री कृष्ण, भीष्म पितामह, लक्ष्मण, भरत, चाणक्य आदि गुरुकुलों की ही देन थे। हमारा विश्वास है कि गुरुकुल व वैदिक शिक्षा में मनुष्य के जिस उच्च कोटि के चरित्र का निर्माण होता है वह व वैसा इतर शिक्षा प्रणालियां में नहीं होता और न कभी हो सकता है। धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली जिसमें नैतिक शिक्षा के स्रोत वेदों का अध्ययन व प्रचार करने की सुविधा न हो, उस प्रणाली में अपवाद स्वरूप ही अच्छे चरित्र के लोग उत्पन्न हो सकते हैं। आज देंखे तो देश चरित्र की समस्या से जूझ रहा है। सक्षम एवं योग्य प्रधानमंत्री मोदी जी व उत्तर प्रदेश में योग्यतम मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी के होते हुए भी देश भर में भ्रष्टाचार किसी न किसी रूप में जारी है जो कभी कभी अनाचार, कदाचार व बलात्कार के रूप में भी हमारे सम्मुख उपस्थित हो जाता है। इसका समाधान वैदिक शिक्षा पर आधारित गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली ही है जो यदि वेदर्षि गुरूवर ऋषि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रोक्त व उद्धारित पद्धति पर चले तो देश के लोग उच्च चरित्रवान तथा भ्रष्टाचार व कदाचार से मुक्त उत्पन्न किये जा सकते हैं। गुरुकुल में संस्कारवान एवं चरित्रवान नागरिक उत्पन्न किये जाते हैं जो ईश्वर-देश भक्त और मातृ-पितृ-आचार्य भक्त होते हैं। वैदिक शिक्षा प्रणाली पर आधारित गुरूकुल आज भी देश भर में आर्यसमाज एवं इसके विद्वानों व स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, स्वामी धर्मानन्द सरस्वती आदि अनेक ऋषिभक्तों द्वारा व्यवहारिक रूप में चलाये जा रहे हैं जहां से हमें संस्कृत, वेदों एवं शास्त्रों के विद्वान मिलते लगातार मिल रहे हैं।

आर्यसमाज के गुरुकुलों में परम्परा है कि श्रावणी पर्व व उसके कुछ दिन बाद नये ब्रह्मचारियों को उसमें प्रविष्ट कराया जाता है और इस अवसर पर ऋषि दयानन्द प्रोक्त संस्कार विधि निर्दिष्ट उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार सम्पन्न होता है। गुरुकुल पौंघा भी इस परम्परा का निर्वाह करता है। इसी के अनुसार आज यहां 28 नये ब्रह्मचारियों के प्रवेशार्थ उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार आर्यजगत के सुप्रसिद्ध एवं ऋषिभक्त विद्वान स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। आज प्रातः विधि विधान के अनुसार यज्ञ एवं सभी क्रियायें सम्पन्न की गईं। संस्कार के अन्तर्गत नव-ब्रह्मचारियों को पितृ उपदेश मनमोहन आर्य द्वारा कराया गया जिसे उन्होंने संस्कारविधि के अनुसार पढ़ कर सुनाया और सभी श्रोताओं ने उसे सुना। आचार्य धनंजय जी ने कहा कि ब्रह्मचारियों को नित्य प्रति परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिये कि वह सदा सत्य ही बोलेंगे। उन्होंने कहा कि यह संसार ईश्वर का बनाया हुआ है। ईश्वर ही इस संसार का कर्ता, धर्ता और संहर्ता है। हमारा यह प्रयत्न होना चाहिये कि हम इसी जीवन में जन्म व मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो जायें। हम सबको यह ज्ञात होना चाहिये कि ईश्वर की कृपा से ही हमारा जीवन आनन्द से युक्त वा पूर्ण हो सकता है। आचार्य धनंजय जी ने ब्रह्मचारियों को कहा कि इस प्रकार की प्रार्थनायें परमात्मा से प्रतिदिन करनी चाहियें। आचार्य जी ने आगे बताया कि वेदों में परमात्मा से प्रार्थनायें की गईं हैं कि हमारा जीवन उद्बुद्ध, तेजस्वी व ऊर्ध्वगामी हो।

स्वामी प्रणवानन्द जी के सान्निध्य और उनके मार्गदर्शन में संस्कार यज्ञ का संचालन हुआ। उन्होंने कहा कि संस्कार के आरम्भ में ब्रह्मचारी अपने आचार्य से प्रार्थना करता है कि मैं आपका ब्रह्मचारी बन कर विद्या प्राप्त करना चाहता हूं। मुझे आप यज्ञोपवीत देकर वा उपनयन संस्कार कराकर अपना कुलवासी शिष्य बनाने की कृपा करें। स्वामी जी ने कहा कि ब्रह्मचारी गुरुकुल में लगभग 18 वर्ष तक आचार्य से विद्या प्राप्त करते हैं। आचार्य जी ब्रह्मचारियों की उन्नति में संलग्न रहते हैं। हमारे गुरुकुल के आचार्य जी वर्ष में एक बार दूर दूर गांवों में जाकर अन्न संग्रह करते हैं। आपके पास गुरुकुल के लिए आवश्यक पदार्थों की पूर्ति के लिए आते हैं। आप इनको सहयोग करते हैं। इससे गुरुकुल का साल भर का काम चलता है। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की एक विशेषता यह भी है कि ब्रह्मचारी भिक्षा वृत्ति करें और उस अन्न का ही आचार्य व ब्रह्मचारी मिलकर भक्षण करें। स्वामी जी ने कहा कि आचार्य को उदार होना चाहिये। ब्रह्मचारी जो अन्न लेकर आता है, आचार्य उसमें से थोड़ा सा अन्न ले। उन्होंने कहा आचार्य प्रायः बूढ़ा होता है। उसकी आवश्यकतायें कम होती है। ब्रह्मचारी को भर पेट भोजन मिलना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि आप ब्रह्मचारियों को दिल खोलकर भिक्षा दिया करें। इसके बाद वेदारम्भ संस्कार के अनुसार भिक्षा की प्रक्रिया पूर्ण कराई गई। इसके बाद संस्कार सम्पन्न हुआ। नये ब्रह्मचारियों में चार ब्रह्मचारियों ने इस अवसर पर एक भजन प्रस्तुत किया जिसकी पहली पंक्ति थी ‘सच्ची वैदिक मर्यादायें हैं सोलह संस्कार।’

इसके बाद सभाजनों को सम्बोधित करते हुए आचार्य धनंजय जी ने आज देश व विश्व के परिदृश्य को सम्मुख रखते हुए विचार प्रस्तुत किये। आचार्य जी ने कहा कि विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि आज हम विमान में बैठकर 16 घंटे में अमेरिका से भारत पहुंच जाते हैं। आज हमारा देश व विश्व के अनेक देश नैनो सैटेलाइट छोड़ रहे हैं। भारत का मानवरहित यान मंगल ग्रह तक जा पहुंचा है। इतनी प्रगति होने पर भी आज दिल्ली में बलात्कार की घटनायें सुनने को मिलती हैं। उन्होंने दुःख भरे शब्दों में कहा कि आज झण्डारोहण कर घर आती बच्ची तक से बलात्कार कर दिया जाता है। इसका कारण हमारी शिक्षा पद्धति का दोषपूर्ण होना है। लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति समय की मांग को पूरा नहीं कर पा रही है। वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षा पद्धति का नवीनीकरण करना आवश्यक हो गया है। आचार्य जी ने सरकार के नारे ‘बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं’ का भी उल्लेख किया और कहा कि बेटियों के भी पुरूषों के समान सोलह संस्कार होने चाहियें। उन्होंने कहा कि देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार पौराणिक मान्यताओं में भी संशोधन और परिवर्तन होने चाहियें जैसा कि वेदों के आलोक में स्वामी दयानन्द जी ने किया था।

देहरादून में स्वतन्त्र रूप से पुरोहित एवं वेदप्रचार कार्य करने वाले ऋषि भक्त पुरोहित पं. वेदवसु शास्त्री ने भी सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य धनंजय जी के कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सभी अपने जीवन में सुन्दर संस्कारों को उतारें। सद्गुणों का नाम ही संस्कार है। मनुष्यों का नाम वेद अर्थात् ज्ञानयुक्त प्राणी है। मनुष्य जन्म ज्ञान प्राप्ति के लिए होता है। आप अपने जीवन को पुण्यमय जीवन बनायें। आप वेद व ऋषि और आर्यसमाज के अनुयायी होने से भाग्यशाली हैं। आचार्य वेदवसु जी ने कहा कि आप वेद विद्या को प्राप्त करें और अपने जीवन में सद्गुणों को धारण करें। शास्त्री जी ने सबकी जीवन की उन्नति की कामना इस अवसर पर की। आचार्य धनंजय जी ने वेदानुसार पुरोहित शब्द की महिमा भी सभी श्रोताओं को बताई।

संस्कार यज्ञ में उपस्थित श्री सत्यपाल सरल ने अपने सम्बोधन में कहा कि महर्षि दयानन्द ने मनुष्यों को संस्कारित करने के लिए संस्कारविधि पुस्तक लिखी है। उन्होंने कहा कि संस्कार यज्ञ में जो क्रियायें की जाती हैं व जो वचन बोले जाते हैं उनका संस्कार व प्रभाव छोटे व बड़े सभी लोगों पर पड़ता है। जड़ पदार्थों से बने मोबाइल फोन का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि जब इसमें आवाज और चित्रों को सुरक्षित रखा जा सकता है तो आत्मा व परमात्मा तो चेतन सत्तायें हैं। संस्कारों का जीवात्मा पर प्रभाव अवश्य पड़ता है। सरल जी ने कहा कि शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के अनुसार बच्चों के तीन गुरू माता, पिता व आचार्य होते हैं जो बच्चे के जीवन को शिक्षा व विद्या देकर उसका निर्माण करते हैं। सरल जी ने हिन्दू माता-पिताओं की चर्चा कर दुःख भरे शब्दों में कहा कि कोई अपने बच्चों को संस्कृत का विद्वान बनाना नहीं चाहता जबकि मुसलमान अपने बच्चों को मदरसे में भेज कर अरबी भाषा की पुस्तक कुरआन पढ़वाते हैं व स्वयं भी पढ़ते हैं। विद्वान वक्ता ने अवकाश के दो महीनों में अपने बच्चों को गुरुकुल भेजकर संस्कृत पढ़वाने का सुझाव दिया। श्री सत्यापाल सरल जी ने यह भी कहा कि हिन्दू कभी अपने जीने के साधन नहीं करता। उन्होंने कहा की टीवी बच्चों के दिमाग को खराब कर रहे हैं। बच्चों के निर्माण पर आजकल के माता-पिताओं का ध्यान नहीं है। उन्होंने बच्चों में संस्कारहीनता के उदाहरण भी दिये। श्री सरल ने हिन्दी वर्णमाला के अक्षरों की महत्ता पर भी उदाहरणों सहित प्रभावपूर्ण शब्दों में प्रकाश डाला। आतंकवाद की चर्चा करते हुए अन्त में विद्वान वक्ता ने कहा कि अपने बच्चों को गुरुकुल पढ़ने भेजिये। वहां बच्चे राम, कृष्ण और दयानन्द बनकर निकलेंगे।

वायुसेना में कार्यरत गुरुकुल के पूर्व ब्रह्मचारी श्री दीपेन्द्र कुमार वा दीपक का एशियन खेलों में निशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर पर चयन होने के उपलक्ष्य में पूर्वखेल मंत्री श्री नारायण सिंह राणा जी की ओर से उन्हें शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। तत्पश्चात श्री नारायण सिंह राणा जी का सम्बोधन हुआ। अपने सम्बोधन में उन्होंने देश की प्राचीन गौरवमयी स्थिति का वर्णन किया। देश पर मुसलमानों के आक्रमणों व भारत के लोगों को गुलाम बनायें जाने की भी उन्होंने चर्चा की। उन्होंने कहा कि उनके शासन काल में हिन्दू धर्म को नष्ट करने के अनेकानेक अमानवीय कार्य किये गये। मन्दिरों को तोड़ा गया तथा देश को लूटा गया। राणाजी ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी व अंग्रेजी राज्य की चर्चा सहित उनके द्वारा देश को गुलाम बनाने का वर्णन किया। राणा जी ने कहा कि मुसलमानों ने हिन्दुओं पर तलवार का प्रयोग किया और अंग्रेजों ने बन्दूक का या गोली का। मुसलमानों की तरह उन्होंने भी हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया। 90 वर्षों तक हिन्दुओं ने कुर्बानियां दीं। बलिदानों से देश आजाद हुआ। मैकाले की शिक्षा पद्धति का उल्लेख कर उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य देश को मानसिक रूप से गुलाम बनाना था। इस शिक्षा का प्रभाव बताते हुए उन्होंने दुःख भरे शब्दों में कहा कि आज विश्व विद्यालयों में 90 प्रतिशत बच्चे ड्रग्स ले रहे हैं। राणा जी ने कहा कि उन्हें लगता है कि देश फिर गुलाम होने वाला है। आने वाले समय के लिए देश सुरक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि बच्चों को निशानेबाजी का प्रशिक्षण लेना चाहिये और शस्त्रों के प्रयोग व ज्ञान से ही हमारे शास्त्र व धर्म सुरक्षित रह सकेंगे। राणा जी ने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री देवव्रत जी की चर्चा की और कहा कि उन्होंने राजभवन में मांस व शराब का प्रयोग बन्द कर वहां गोशाला स्थापित कर क्रान्तिकारी कार्य किया है। स्वामी रामदेव जी की चर्चा कर उन्होंने कहा कि उन्होंने भी योग व आयुर्वेद के क्षेत्र में क्रान्ति की है। इन सभी आर्यसमाज के अनुयायियों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने गुरुकुल के महत्व को रेखांकित किया।

आयोजन में गुरुकुल के ब्रह्मचारी श्री शिवकुमार द्वारा सम्पादित व संस्कृत में अनुदित आर्याभिविनय पुस्तक का विमोचन व लोकार्पण किया गया। यह पुस्तक संस्कृत अनुवाद व विमर्श सहित प्रकाशित है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि यह उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में निर्धारित है। पुस्तक गुरूकुल के ‘आचार्य प्रणवाननन्द विश्वनीड-न्यास’ की ओर से प्रकाशित है। मूल्य रू. 35 है तथा पुस्तक में कुल 4+68=72 पृष्ठ हैं। पुरोवाक् एवं आशीर्वचन संस्कृत में ही लिखे गये हैं। आयोजन में ग्राम प्रधान श्री सुरेन्द्र तोमर जी का पौंधा के मुख्य मार्ग तक लगभग 1 किमी. लम्बी सीमेन्ट की सड़क बनाने के लिए शाल ओढ़ा कर अभिनन्दन किया गया।

अध्यक्षीय भाषण स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने किया। उन्होंने कहा कि माता-पिता केवल बालक का शरीर बनाते हैं। जन्म से हम सब शूद्र पैदा हुए हैं। संस्कारों से हम द्विज अर्थात् द्विजन्मा, दो जन्म वाले, बनते हैं। स्वामी जी ने कहा कि आज यह नये ब्रह्मचारी गुरुकुल में माता-पिता से प्राप्त हुए शरीर के साथ आये हैं। गुरुकुलों में आचार्य संस्कार देकर इन्हें ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य आदि वर्ण का बनाता है। स्वामी जी ने चरक ऋषि की चर्चा कर उनका वचन बताते हुए कहा कि उनके अनुसार संस्कारों से मनुष्य की शारीरिक कमियों की पूर्ति हो जाती हैं। इसको स्पष्ट करने के लिए उन्होंने भोजन की दाल में घृत आदि का छौंक लगाने का उदाहरण प्रस्तुत किया। स्वामी जी ने कहा कि विद्यारूपी संस्कार से मानव जीवन संस्कारित, सार्थक व सुगन्धित बन जाता है। स्वामी जी ने कहा कि आज गुरुकुल में ब्रह्मचारियों का उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार सम्पन्न हुआ है। उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि वेद कठिन हैं और मैं कहता हूं कि वेद सरल हैं। वेद स्वाभाविक ज्ञान है। संसार के अन्य ज्ञान स्वाभाविक ज्ञान नहीं है। ज्ञान की प्राप्ति हमें परिश्रम करने पर होती है। परमात्मा का ज्ञान वेद मनुष्य मात्र के लिए है। इस पर किसी वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं है। स्वामी जी ने श्रोताओं को मन्त्र याद करने के लिए उसे छोटे छोटे भाग बनाकर दोहराने की पद्धति भी बताई। स्वामी जी ने आगम, स्वाध्याय, प्रवचन और व्यवहार की भी चर्चा की और कहा कि इससे मनुष्य का ज्ञान स्थिर होता है। गायत्री मन्त्र के तीन पादों की चर्चा कर स्वामी जी ने कहा कि वेद ज्ञान का दाता परमात्मा हमारा वरणीय है। वह परमात्मा हमारा गुरु और आचार्य है। आचार्य वह होता है जो सबका अग्रणीय हो। उन्होंने कहा कि परमात्मा हमारा आचार्य है परन्तु हमारा आचार्य भी आचार्य है। हमारा आचार्य परमात्मा के बाद हमारा आचार्य है। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा ही धारण करने योग्य है। स्वामी जी ने आर्य समाज का दूसरा नियम ‘ईश्वर सच्चिदानन्द-स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है’ बोला। इसी नियम के अनुरूप हमें परमात्मा को धारण करना है। वही परमात्मा हमारा उपासनीय एवं वरेण्य है। हमें ध्यान व उपासना भी उसी परमात्मा की करनी है।

स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करता है। उन्होंने कहा कि वेद मंत्रों को जितनी बार बोलते व पढ़ते हैं उतना ही हमारा ज्ञान बढ़ता जाता है। ईश्वर का ध्यान करो व उसी से बुद्धि की याचना करो। उसी से मनुष्य ज्ञानी बनता है। स्वामी जी ने आरम्भ के गर्भधारण, पुंसवन एवं सीमन्तोनयन संस्कारों की चर्चा कर उनके महत्व पर प्रकाश डाला। स्वामी जी ने कहा कि पिता अपने पुत्र को कहता है कि तेरा नाम वेद है। सोने की श्लाका से मधु लेकर शिशु की जिह्वा पर ओ३म् लिखते हैं। मधु मिठास का प्रतीक है। हमें जीवन में मीठा बोलना है। सोना धन-धान्य का प्रतीक है। ऐसा करके हमारा धन-धान्य बढ़ता है। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जानने वाला होता है। उन्होंने कहा कि वैदिक विज्ञान जीवन का निर्माण करने के साथ रक्षा भी करता है जबकि आधुनिक विज्ञान संहार करता है। स्वामी जी ने अपनी अमेरिका यात्रा का उल्लेख कर एक ऐसे 12 वर्षीय बालक का उदाहरण प्रस्तुत किया जिसने संस्कृत, हिन्दी व अंग्रेजी में वहां भाषण किया। स्वामी जी ने उस बालक के माता-पिता को साधुवाद दिया। स्वामी जी ने कहा कि यदि हमारा शस्त्र मजबूत होगा तो हमारे शास्त्र भी सुरक्षित होंगे। स्वामी जी ने सरकार के नारे बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं की चर्चा भी की। उन्होंने आचार्य डा. यज्ञवीर जी की प्रशंसा में कहा कि वह गुरुकुल में पढ़ाकर विद्या की प्रतिष्ठा कर रहे हैं। स्वामी जी ने सभी श्रोताओं वा आगन्तुकों का धन्यवाद भी किया। सभा को श्री कुंवंर पाल शास्त्री ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचर्य पुण्यदायी कर्म है। ब्रह्ममुहुर्त में उठ कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ब्रह्म की उपासना करना सबसे अधिक पुण्यदायी कर्म है। उन्होंने आचार्यकुल और गुरुकुल के अर्थ भी बतायें। इसी के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हो गया। इसके बाद प्रीतिभोज हुआ और सभी आगन्तुक विसर्जित होना आरम्भ हो गये।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121

Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like