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दो तरह का स्वरूप था व्यवसायिक-पंचायतों का

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07 Oct 17
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बीकानेर इतिहास दर्शन डॉ. शिव कुमार भनोतयद्यपि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि, इस दूसरी प्रकार की पंचायत के व्यवसाय से संबंधित विवरण हमारी सामग्री में बहुत कम है। जो कुछ भी विवरण उपलब्ध है, उससे विदित होता है कि अधिकांशत: उनके विवाद सामाजिक स्तर के ही थे, जिनके विषय में हम पूर्व में विशद् चर्चा कर चुके हैं। व्यवसाय की दृष्टि से अधिकांशत: विवाद की स्थिति तभी उत्पन्न हुई है जब एक विशिष्ट जाति के व्यक्ति ने अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़ कर कोई अन्य व्यवसाय अपना लिया हो अथवा अन्य जाति के सदस्य ने उनके जातिगत पैतृक व्यवसाय को अपना लिया हो।यह स्थिति समान रूप से हिंदू तथा मुस्लिम दोनों समाज पर लागू होती थी। रामपुरिया रिकार्ड, बीकानेर की कागदों री बही में एक उल्लेख अाया है कि किस प्रकार इस्लाम धर्मावलंबी रंगारों की जाति ने एक मुस्लिम चूड़ीगर द्वारा उसका व्यवसाय अपना लिये जाने पर उसका प्रबल विरोध किया था। किंतु, यह स्थिति प्रथम श्रेणी की पंचायतों पर लागू नहीं होती है। यद्यपि, वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में वैश्य जाति का प्रभाव था तथापि उनके अतिरिक्त अनेक वर्ण जातियां भी इसमें सलंग्न थी। विशेषकर ब्राह्मणों ने भी एक सीमा तक इस क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित कर रखा था। जैसलमेर और बीकानेर राज्य के सीमा क्षेत्र पर बसी पलीवाल नामक ब्राह्मण जाति मुख्य रूप से व्यापारी जाति ही थी। अठारहवीं शताब्दी में चारण और भाट जातियों ने भी इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। स्वयं वैश्य भी, जिन्हें बनिया कहा जाता था, मुख्य रूप से तीन जातियों- ओसवाल, माहेश्वरी और अग्रवाल में बंटे हुए थे।
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